पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४३

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सुखाश ६०६३ सुखोष्ण सुख । चैन। सुखाश-वि० जिमे सुख की प्राशा हो । सुखी - सज्ञा पुं० यति । सत (को०] । सुखाराक--सज्ञा पु० [सं०] तरबूज । सुखीन सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पक्षी जिसकी पीठ लाल, छाती और गर्दन सफेद तथा चोच चिपटी होती है। सुखाशा-सज्ञा स्त्री० [सं०] सुख की आशा । आराम की उम्मीद । सुखाश्रय-वि० [स०] जिसपर सूख अवलवित हो। सुखाधार । सुखीनल--सज्ञा पुं॰ [स०] पुराणानुसार राजा नृचक्षु के एक पुत्र का नाम। सुखासक्त'-- सज्ञा पु० [म.] शिव का एक नाम । सुखासक्त'-वि० सुख के प्रति आसक्तियुक्त । सुख मे डूवा हया। सुखेतर'-सज्ञा पु० [स०] सुख से भिन्न अर्थत् दुख । क्लेश । कष्ट । सुखासन-सञ्ज्ञा पु० [म०] १ वह अासन जिसपर बैठने से सुख हो। सुखेतर'- वि० सुखरहित । सुखहीन । अभागा किो०)। सुखद आसन । २ पद्मासन (को०)। ३ नाव पर बैठने का उत्तम सुखेन'--सज्ञा पुं० [सं० सुषेण] दे० 'सुपेण' । उ०-सुग्रीव विभी- आसन। ४ एक प्रकार की पालकी या डोली। सुखपाल । पण जाववत । अगद केदार सुखेन सत। सूर (शब्द॰) । उ.-कहेउ वनावन पालकी सजन सुखासन जान । -मानस, (ख) वरुन सुखेन सरत परजन्यहु । मारुत हनुमानहि उत- २।१८६। पन्यहु।--पद्माकर (शब्द०)। सुखासिका~-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. स्वास्थ्य। तदुरुस्ती । २ आराम । सुखेन'-क्रि० वि० [सं०] सुखपूर्वक । सहर्प । उ०-जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ। करि अनाथ जन परिजन गाऊँ।-मानस, २१५७ । सुखास्वाद'--वि० [म०] १ मधुर स्वाद का। मीठा । २ अानद सुखेलक-सज्ञा पु० [म०] एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे दायक । रुचिकर [को०)। न, ज भ, ज, र, पाता है। इसे 'प्रभद्रिका' और 'प्रभद्रक' भी सुखारवाद-सज्ञा पु० १ मधुर गध । प्रिय गध । २ अानदानुभूति । कहते है। सुखानुभूति [को०]। सुखेष्ट सुखेष्ठ-मज्ञा पुं० [म०] णिव । महादेव । सुखासीन-वि० [स०] आराम से बैठा हुआ किो०] । सुखैघित-वि० [स०] सुख मे पला हुअा को०] । सुखिश्रा--वि० [सं० सुख + हिं० इया (प्रत्य॰)] दे॰ 'सुखिया'। सुखैनापु+--वि० [स० सुख + अयन] सुख देनेवाला । सुखदायक । उ०-कहु नानक सोई नर सुखि ग्रा राम नाम गुन गावै। अऊर उ.-तो शभुइ भावं मुनिजन ध्यावै कागभुशुडि सुखना। सकल जगु माया मोहिया निरभ पद नहि पावै ।-तेगबहादुर विश्राम । (शब्द०)। (शब्द०)। सुखित'@-वि० [हिं० सूखना] सूखा हुा । शुष्क । उ०--पथ थकित सुखैषी--वि० [सं० सुखैषिन्] [वि० सी० सुखैषिणी] सुख का अभि- लापी । सुख चाहनेवाला [को०] । मद मुकित मुखित सरसिंदुर जोवत । काकोदर करकोश उदर तर केहरि सोवत । -केशव (शब्द०)। सुखोषित-वि० [स०] १ सुख के उपयुक्त या योग्य । २ जो सुख आराम आदि का आदी हो । सुख का अभ्यस्त । सखित'-वि० [स०] सुखी । आनदित । प्रसन्न । खुश । उ०--(क) औरनि के भौगुननि तजि कविजन राव होत है सुखित तेरो सुखोत्सव-मज्ञा पुं० [सं०] १ पति । स्वामी। कितिवर न्हाय के।--मतिराम (शब्द०)। (ख) दृग थिर, आनद (के। वौहे अधखुले देह थकोहैं ढार । सुरत सुखित सी देखियत, सुखो क--सज्ञा पुं० [स०] गरम जल । सुखसलिल । दुखित गरभ के भार ।-विहारी (शब्द॰) । सुखोदय--सञ्ज्ञा पु० [म०] सुख का उदय या आगम। सुख की सुखित'-सज्ञा पु० ग्रानद । प्रसन्नता। सुख । हर्प [को०] । प्राप्ति । २ एक प्रकार का मादक पेय। ३ पुराणानुसार एक सुखिता - सचा सी० [सं०] सुखी होने का भाव । सुख । प्रानद । वप या भूखड [को॰] । सुखित्व-सज्ञा पुं० [स०] सुखी होने का भाव । मुख । सुखिता। सुखोदक-वि० [स०] सुखद परिणामवाला [को०] । पानद । प्रसन्नता। सुखोद्भवा--सझा स्त्री॰ [स०] १ हरीतकी। २ छोटा आँवला [को०) । सुखिया-वि० [हिं० सुम्न + इया (प्रत्य॰)] जिसे सब प्रकार का सुख सुखोद्य--वि० [स०] सुख से उच्चारण योग्य । जिसके उच्चारण मे हो। सुखी। प्रसन्न । उ०-लखि के सुदर वस्तु अर मधुर कोई कठिनाई न हो (शब्द, नाम, ग्रादि।। गीत सुनि कोइ । सुखिया जनह के हिये उत्कठा एहि होइ। सुखोपविष्ट--वि० [सं०] मुख से बैठा हुग्रा । चैन से बैठनेवाला [को०] । लक्ष्मण सिंह (शब्द॰) । सुखिर-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] साँप के रहने का विल । वाँबी। उ०- सुखोपाय-सज्ञा पु० [स०] १ सुख की प्राप्ति का उपाय । २ सुगम साधन या उपाय [को०। याकी असि साँपिनि कढत म्यान सुखिर सो लहलही श्याम महा चपल निहारी है। -गुमान (शब्द॰) । सुखोपाय-वि० [स०] सुलभ । महज । प्राप्य [को०] । सुखी--वि० [सं० सुखिन्] सुख से युक्त । जिसे किसी प्रकार का कष्ट सुखोजिक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] सज्जी मिट्टी । सर्जिकाक्षार। न हो, सब प्रकार का सुख हो । प्रान दित । खुश । जैसे,—जो सुखोष्ण'-सज्ञा पुं० [स०] थोडा गरम जल । कुनकुना जल । लोग सुखी है, वे दीन दुखियो का हाल क्या जाने । सुखोए -वि० थोडा गरम । कुनकुना [को०] । २ प्रसन्नता।