पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३५०

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प्रकार का। सुचितो ६०७० सुचिती वि० [हिं० मुचित + ई (प्रत्य॰)] १ जिसका चित्त किसी तुम सुचेत रहो, केटो की दृष्टि वडी पैनी है।--तोताराम वात पर स्थिर हो। जो दुविधा मे न हो। स्थिरचित्त । शात । (शब्द०)। २ प्रज्ञावान् । बुद्विमान (को०) । उ०-(क) सुचिती हूँ और सबै समिहि विलीकै प्राय । (ख) क्रि० प्र०--करना । —होना ।--रहना। ससिहि विलौकै प्राय सवै करि करि मन सुचिती।- सचेतन:--सञ्ज्ञा पुं० [मं०] विष्णु । (डि०)। अविकादत्त (शब्द॰) । २ निश्चित । चितारहित । वेफिक्र । उ०-धाय सो जाय के धाय कह्यौ कहूँ धाय के पूछि करते सुचेतन'--वि० दे० 'सुचत' । ठई है। वैठि रही सुचिती सी कहा मुनि मेरी सबै सुधि भूलि सुचेता'- वि० [स० मुचेतस्] दे० 'मुचेत' । उ.--स दरता मौभाग्य गई है। -सुदरीसर्वस्व (शब्द॰) । निकेता । पकज लोचन ग्रहहिं सुचेता।--श० दि० (शब्द०)। सुचित्त-वि० [म०] १ जिसका चित्त स्थिर हो। स्थिरचित्त । शात । सुचेता --मा पु० प्रचेता के एक पुत्र का नाम । २ जो (किसी काम से) निवृत्त हो गया हो । जो छुट्टी पा सुचेतोकृत-वि० [सं०] भली भांति मावधान किया हुआ । गया हो । निश्चित । उ०—(क) ब्राह्मणो को नाना प्रकार के सुचेल--वि० [स०] उत्तम वस्त्रयुक्त । दे० 'मुचेलक' [को०] । दान दे नित्य कर्म से सुचित हो।--लल्लू० (शब्द॰) । (ख) सचेलक'-सञ्ज्ञा पुं० [स] सुदर और महीन कपडा । पट । कन्या तो पराया धन है ही, उसको पति के घर भेज दिया, सुचेलक'-वि० जिसका वस्न उत्तम हो। सुचित हो गए।--संगीत शाकुतल (शब्द॰) । क्रि० प्र०--होना। सुचेष्टरूप--मशा पुं० [सं०] वुद्धदेव । सुचित्तता--मज्ञा स्त्री॰ [म०] निश्चितता ।। इत्मीनान । मुच्छदg+--वि० [स० स्वच्छन्द] दे० 'स्वच्छद'। उ०---बैठि इकत होय सुच्छदा । लहिए मर्छ परमानदा।-निश्चल (शब्द॰) । सुचित्ती-मज्ञा स्त्री० [स० सुचित्त] दे० 'सुचित्तता' । सुचित्र'-सज्ञा पु० [स०] एक सर्प । सुच्छ -वि० [५० स्वच्छ, प्रा० सुअच्छ] उ०-(क! मुच्छ पर हत्थ तन सुच्छ अबर धरे तुच्छ नहिं वीर रस रग रत्ते ।- सुचित्र'--वि० [१०] १ रग विरगा। विभिन्न रगो का। २ विभिन्न सूदन (शब्द॰) । (ख) कही मै तो नून तुच्छ बोले हमहू ते सुच्छ जाने कोऊ नाहि तुम्हें मेरी मति भीजिए । नाभादास सुचित्रकर्म-सज्ञा पु० [म०] मुर्गावी । मत्स्यरग पक्षी । २ चिनसर्प । (शब्द०)। चितला साँप । ३ अजगर । सुच्छत्र-भज्ञा पुं० [स०] शिव को०] । सुचित्रक'--ति० रगविरगा । विभिन्न प्रकार का किो०] । सुच्छत्रा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सतलज नदी। सुचित्रबोजा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] बायविडग । विडग । सुच्छत्री-सरा स्त्री० [सं०] शतद्रु या सतलज नदी का एक नाम । सुचित्रा--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] चिभिटा या फूट नामक फन । सुच्छद-वि० [सं०] सु दर पत्ती या आवरण से युक्त [को०] । सुचिमत-वि० [स० शुचि + मत्] शुद्ध आचरणवाला। सदाचारी। सुच्छम'-वि० [स० सूक्ष्म] दे० 'सूक्ष्म' । शुद्धाचारी । पवित्र। उ०—सो सुकृती सुचिमत सुसत मुशील सयान सिरोमनि ख्वै । सुरतीरयता सुमनावन पावत पावन सुच्छम'-सज्ञा पुं० [?] घोडा । (डि०)। होत हे तात न वै ।--तुलसी (शब्द॰) । सुच्छाय-वि० [स०] १ जिसको छाया अच्छी हो। २ (रल आदि) जिसकी प्रभा सुदर हो (को०] । सुचिर'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बहुत अधिक समय । दीर्घकाल । सुछद-वि० [स० स्वच्छन्द, प्रा० सुछ्द] दे० 'स्वच्छद'। उ०- सुचिर'--वि० १ वहुत दिनो तक रहनेवाला । २ पुराना । प्राचीन । निपट लागत अनम ज्यो जल चरहिं गमन सुछद । न जर जे सुचिरायु-सज्ञा पुं० [स० सुचिरायुस्] देवता। नजर रहै प्रीतम तुव मुखचद।-रतनजारा (शब्द॰) । सुचो--सज्ञा स्त्री॰ [स० शची] दे० 'शची' । उ०--सोइ सुरपति जाके सुजगो-सशा धुं० [गढवाली] भांग के वे पौधे जिनमे वीज होते हैं। नारि सुची सी। निस दिन ही रंगराती, काम हेतु गौतम गहि विशेष -गढवाल मे भाँग के वीजदार पौधो को सुजगो या कलगो गयऊ निगम देतु हे साखी ।-कवीर (शब्द०)। कहते हैं। सुचोरा--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] दे॰ 'सुचारा' । सुजव-वि० [सं० सुजङ्घ] सुदर उरु या जांघोवाला [को०] । सुचीपाध्वज-सज्ञा पु० [स०] कुभाडो के एक राजा का नाम (बौद्ध)। सुजघन-वि० [सं०] १ जिसकी श्रोणी, नितब या कटि सुदर हो। सुचुक्रिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] इमली। २ जिसका अत या परिणाम भला हो [को०] । सुचुटी-संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ चिमटा। २ कैची । ३ सँडसी। सुजड --सज्ञा पुं० [हिं०] तलवार। सुचेत-वि० [स० सुचेतस्] चौकन्ना। सतर्क । होशियार । उ० सुजडी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [टिं०] कटारी। (क) कोई नशे मे मस्त हो कोई सुचेत हो। दिलवर गले से सुजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ सज्जन । सत्पुरुष । भलामानस । भला लिपटा हो सरसो का खेत हो।-नजीर (शब्द॰) । (ख) भाई यादमी। शरीफ। २ इद्र के सारथी का नाम (को०)।