पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३६१

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पुवो सुद्रष्ट ६०८१ सुधराई उस समय वैवस्वत मनु का पुत्र इड शिकार के लिये वहाँ जा सुधन'मा पु० [4] परावसु गधर्व के नौ पुत्रो मे से एक जो पहुँचा। महादेव जी ने उसे शाप दिया, जिससे वह स्त्री हो ब्रह्मा के शाप से (कोलकल्प मे) हिरण्याक्ष दत्य के गया । एक बार सोम का पुत्र बुध उसे देख कामासक्त हो गया मे से एक हुप्रा था। और उसके महवास से उसके गर्भ से पुरुरवा का जन्म हुआ। सुधन' --वि० [म.] बहुत धनी । बडा अमीर । अत को बुध को पाराधना करने पर महादेव जी ने उसे शाप सुधना--कि० अ० [हिं० शोधना] शुद्ध होना। ठीक होना। मुक्त कर दिया और वह फिर पुरुप हो गया। सूधा होना। सुद्रप्ट----वि० [म० सदृष्ट] सौम्य दृष्टिवाला । जो दयावान हो। कृपा सुधनु--मज्ञा पुं० [स० सुधनुस] १ राजा कुरु का एक पुत्र जो सूर्य युक्त कृपालु । (डि.)। की पुत्री तपती के गर्भ से उत्पन्न हुआ था । २ गौतम बुद्ध सुद्रष्टा-वि० [सं० सुद्रष्ट्ट] जिसकी दृष्टि तीपण या पैनी हो । के एक पूर्वज। सुद्विज-वि० [सं०] सु दर दाँतोवाला । सुधन्वा--वि० [स० सुधन्वन] १ उत्तम धनुष धारण करनेवाला । मुद्विजानन--वि० [स०] जिसका मुख सु दर दतपक्तियो से युक्त हो। २ अच्छा बनुर्धर । सुधंग-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सीधा + अग या सु + ढग?] अच्छा ढग । सुधन्वा --सज्ञा पु० १ विष्णु। २ विश्वकर्मा । ३ आगिरस । ४ उ०-(क) नृत्य करहिं नट नदी नारि नर अपने अपने रग। वैराज का एक पुत्र । ५ सभूत का एक पुन। ६ कुरु का एक मनहुँ मदनरति विविध वेप धरि नटत सुदेहु सुधग। -तुलसी पुन । ७ शाश्वत का एक पुत्र । ८ विदुर । ६ एक राजा (शब्द॰) । (ख) कबहुँ चलत सुधग गति मो कबहुँ उघटत जिमे माधाता ने परास्त किया था। १० वात्य वैश्य और वैन । लोल कुडल गडमडल चपल नैननि सैन ।—सूर (शब्द॰) । सवर्णा स्त्री से उत्पन्न एक जाति । ११ अनत । शेपनाग सुध-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शुद्ध (बुद्धि) या सु+धी] १ स्मृति । स्मरण । (को०)। याद । चेत। सुधन्वाचार्य-सञ्ज्ञा पु० [म०] व्रात्य वैश्य और सवर्णा स्त्री से उत्पन्न क्रि० प्र०—करना । रखना । होना। एक सकर जाति। मुहा०--सुध दिलाना = याद दिलाना । स्मरण करना । सुध न सुध बुध--सज्ञा स्त्री० [स० सु+धी + बुद्धि] होश हवास । चेत । ज्ञान । रहना = विस्मृत हो जाना। भूल जाना। याद न रहना। दे० 'सुध'। जैसे,—तुम्हारी तो किसी को सुध ही नही रह गई थी। सुध मुहा०-सुध बुध जाती रहना होश हवास जाता रहना। सुध विसरना = विस्मृत होना भूल जाना। सुध बिसराना या बुध ठिकाने न होना = बुद्धि ठिकाने न होना। होश हवास बिसारना = किसी को भूल जाना। किसी को स्मरण न रखना। दुरुस्त न होना । सुध बुध न रहना, सुध बुध मारी जाना- उ०--तुम्हे कौन अनरीत सिखाई, सजन सुध विसराई।--गीत बुद्धि का लोप हो जाना। होश हवास न रहना। सुध बुध (शब्द०)। सुध भूलना = दे० 'सुध बिसरना' । सुध भुलाना = विमराना = अचेत करना। होश मे न रहने देना । उ०--कान्हा दे० 'सुध बिसराना'। ने कैसी बाँसुरी बजाई, मेरी सुध बुध बिसराई।-गीत । २ चेतना । होश। (शब्द०)। यौ०--सुध बुध -होश हवास । मुहा०-सुध विसरना = अचेत होना। होश मे न रहना। सुध सुधमना + वि० [हिं० सुध ( = होण) + मन] [वि॰ स्त्री सुधमनी] जिसे होश हो । सचेत । उ०-जब कहूँ के सुधमनी होति तव विसराना = अचेत करना । होश मे न रहने देना । सुध न रहना - होश न रहना । अचेत हो जाना । उ०-सुध न रही देखतु सुनौ एहो रघुनाथ गात तकि पाए परिक। भावते की मूरति रहै कल न लखै बिनु तोहिं । देखै अनदेखै तुहे कठिन दुई विधि को ध्यान पाए ल्यावति हे आँखै मुदि गावति है अाँमुन सो भरिकै ।--रघुनाथ (शब्द०)। मोहिं ।-रतनहजाग (शब्द॰) । मुध सँभालना = होश संभालना । होश में आना । सुधर' सज्ञा पुं० [म०] एक अर्हत् का नाम । (जैन)। सुधर--सज्ञा पुं० [डि०] वया नामक पक्षी। ३ खबर। पता। मुहा०-सुध लेना = पता लेना । हालचाल जानना । सुध सुधरना-क्रि० अ० [स० शोधन, हिं० सुधना] बिगडे हुए का बनना । रखना = चौकसी रखना। उ०--(क) जब प्रसमन की विलंब दोष या त्रुटियो का दूर होना। सशोधन होना। सस्कार भयो तब सवाजित सुध लीन्ही ।—सूर (शब्द॰) । (ख) होना। जैसे,--काम सुधरना, भापा मुधरना, चाल सुधरना, दरदहिं दै जानत लला सुध ले जानत नाहिं। कहो विचारे घर सुधरना। नेहिया तव घाले किन जाहिं । -रतनहजाग (शब्द०)। सयो० क्रि०--जाना। सुध'--वि० [म० शु] दे० 'शुद्ध' । उ०-सुकृत नीर मे नहाय ले सुधरवाना-क्रि० स० [हिं० मुधरना सुधार कराना । मुधार करने के भ्रम भार टरे सुध होय देह । --कबीर (शब्द॰) । लिये किसी को प्रेरित करना। सुंधर--सजा सी० [स० सुधा] दे० 'सुधा । उ०-जाके रस को इंद्रहु सुधराई--सज्ञा ली० [हिं० सुधरना + ग्राई (प्रत्य॰)] १ सुधारने की तरसत मुधहु न पावत दाँज ।--देव स्वामी (शब्द०) । क्रिया । सुधारने का काम । मुधार। २ मुधारने को मजदूरी। हिं० १०१०-४४