पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३६३

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आधार। सुधावीरं ६०६३ मुंधावदात सुधावार- दु० [म०] १. चद्रमा। २ सुधा का सुधामय'-वि० [सं०] [वि सुधामयी] १ सुधा से भरा हुआ। अमृतपान । अमृतस्वरूप । २ चूने का बना हुआ। मुघावो-वि० [८० नुपा- धौ] नुधा के समान । सुधायुक्त । अमृत सुधामय'--शा पु० १ राजभवन । राजप्रासाद । २ ईट या प्रस्तर के तुल्य । उ०-या कहि कौशिल्यहि वह आधी । देत भए स बना हुमा मकान (को०)। नृप वीर सुधाधी । पद्माकर (शब्द.)। सुधामयूख-पशा पुं० [सं०] चद्रमा । सुधावीत-वि० [०] चूना किया हुआ । सक्दो किया हुआ। सुधामुखो -सहा खी [०] एक अप्सरा का नाम । सुघानजर-वि० [स० नुधा या हिं० सूधा (= सीधी) + अ० नजर] सुधामूली -सभा सी० [सं०] सालम मिसी। सालव मिस्री। दयावान् । कृपालु । (डि०)। सुधाना'-क्रि० स० [हिं० सुध ( = स्मृति)] सुध कराना। चेत सुधामोदक-प्रज्ञा पुं० [स०] १ यवास शर्करा । शीर खिश्त । २ कपूर । कर्पूर (को०)। ३ बसलोचन । वशकर्पूर । विशेष दे० कराना । स्मरण कराना । याद दिलाना। 'वसलोचन'। सुघाना-क्रि० स० १ शोधने का काम दूसरे से कराना। दुरुस्त सुधामोदकज-सधा पुं० [सं०] तुरजविन की खाँड। तवराज खड। कराना । ठीक कराना। २ (लग्न या कुडली आदि) ठीक कराना। उ०—(क) पालनो आन्यो बनाइ, अति मन मान्यौ सुघाय-सज्ञा पुं० [सं०] सुख शाति । आराम चैन [को०)। सुहाइ । नीको सुभ दिन सुधाइ झूलौ हो झुलया । सूर०, सुधायोनि-सञ्ज्ञा पु० [स०] चद्रमा । १०॥४१ । (ख) लिय तुरत ज्योतिषी बुलाई। लग्न घरी सब सुधार'-तज्ञा पुं० [हिं० सुधरना] सुधरने की किया या भाव। दोष भांति सुधाई।-रघुराज (शब्द॰) । या त्रुटियो का दूर किया जाना । सशोधन । सस्कार । इस- सुधानिधि- सज्ञा पु० [स०] १ चद्रमा। उ०-मनहुँ सुधानिधि वर्षत लाह। घन पर अमृत धार चहुँ ओर । —सूर (शब्द०)। २ समुद्र । क्रि०प्र०—करना । होना। उ०-श्रीरामानुज उदार सुधानिधि अवनि कल्पतरु ।-नाभा- सुधार-वि० तीक्ष्ण धारवाला जिसकी धार या नोक अत्यत तीक्ष्ण दास (शब्द॰) । ३ कपूर (को०)। ४ दडक वृत्त का एक भेद, हो, जैसे, वाण (को०)। जिसमे ३२ वर्ण होते हैं और १६ बार क्रम से गुरु लघु सुधारक-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सुधार + क (प्रत्य)] १ वह जो दोषो या त्रुटियो का सशोधन या सुधार करता हो। सस्कारक । सुधानिधि रस-सज्ञा पुं० [स०] वैद्यक मे एक प्रकार का रस जो सशोधक । २ वह जो धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक पारे, गधक, सोनामक्खी और लोहै आदि के योग से बनता सुधार या उन्नति के लिये प्रयत्न या आदोलन करता हो । है । इसका व्यवहार रक्तपित्त मे किया जाता है। सुधारना'--क्रि० स० [हिं० सुधरना] १ दोष या बाई दूर करना । सुधापय-सज्ञा पु० [स० सुधापयस्] थूहर का दूध । स्नुहीक्षीर । बिगडे हुए को बनाना । दुरुस्त करना । सशोधन करना। २ सुधापाणि-सच्चा पुं० [स०] धन्वतरी। पीयूषपाणि । सस्कार करना। संवारना। उ०-दुहु कर कमरा सुधारत विशेष-पुराणो के अनुसार समुद्रमथन के समय धन्वतरी जी वाना |--मानस, ६।११। हाथ मे सुधा या अमृत लिए हुए निकले थे, इसी से उनका सुधारना-वि० [वि० लो सुधारनी] सुधारनेवाला। ठीक करनेवाला । नाम सुधापाणि या पीयूपपाणि पडा। (क) उ०-भगति गोपाल को सुधारनो है नर देह, जगत सुधापाषाण-सज्ञा पु० [स०] सफेद खली। सेतखरी। अधारनी है जगत उधारनो।--गिरधर (शब्द०)। सुधापूर-सज्ञा पुं० [स०] अमृत का प्रवाह या धारा। सुधारश्मि-सञ्ज्ञा पुं० [स०] चद्रमा । सुधाभवन -सज्ञा पु० [३०] अस्तरकारी किया हुआ मकान । सुधारस--सज्ञा पुं० [सं०] १ सुधा । अमृत । २ दुग्ध । दूध को। सुधाभित्ति - सज्ञा स्त्री० [स०] १ सफेदी को हुई दीवार । २ इष्टका सुधारा-वि० [हिं० सूधा+ पारा (प्रत्य०)] सीधा । रारत। निर्मित भित्ति। इंटे की दीवाल (को०)। ३ पांचवें मुहूर्त की निष्कपट । उ०--यायो घोप बडो व्यापारी । लादिगि आख्या या नाम (को०)। गुणगान योग की व्रज मे पानि उतारी। फाटक दै के हाटया सुधाभुज-सज्ञा पुं॰ [स० सुधाभुक्] अमृत भोजन करनेवाले, देवता। मांगत भोगे निपट सुधारी। इनके कहे कौन उहाय ऐसा योग सुधाभृति - सञ्चा पु० [सं०] १ चद्रमा । २ कपूर (को०) । ३ यज्ञ । अनागे।-सूर (शब्द०)। सुधाभोजी-सच्या पुं० [सं० सुधाभोजिन्] अमृत भोजन करनेवाले, देवता। [हिं० सुधार + ऊ (प्रत्य॰)] सुधारनवाला । सुघाम-सञ्ज्ञा पु० [स० सुधामन्] १ चद्रमा। २ एक प्राचीन ऋपि नेवाला । संशोधग। का नाम । ३ रैवतक मन्वतर के देवताओ का एक गण। ४. ० [सं०] एक प्रकार की गिलोय। पुराणानुसार क्रौच द्वीप के अतर्गत एक वर्ष के राजा का [सं०सुधा+अवदात] २० 'गुध गपुं० [सं०] एक पर्वत का । आते हैं। नाम।