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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३७१

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सुपालि ६०६१ सुपेशल सुपालि-वि० [स०] ज्ञात । प्रतिबोधित [को०] । सुपुष्प'--सशा पु० [सं०] १ लौग। लवंग । २. पाहुल्य । तरवट । सुपास-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] सुख । आगम । सुभीता । उ०--(क) चलो तरवड । ३ प्रपौडरीक। पुडेरिया। पु डेरी। ४ परिपा- वसी वृदावन माही । सकल सुपास सहित सो पाही।--विधाम श्वत्थ । परास पीपल । ५ मुचकुद वृक्ष । ६ शहतूत । तूत । (शब्द०)। (ख) जाया ताकी सवन निहारी। बैठा सिमिटि ७ ब्रह्मदारु । ८ पारिभद्र । फरहद । ६. शिरीष। सिरिस । सुपास विचारी।-विश्राम (शब्द०)। (ग) यात्रियो के १० हरिद्रु। हलगा। ११ बडी सेवती। राजतरुणी । १२ लिये सब तरह का सुपास और आराम है।-गदाधर सिंह श्वेतार्क। सफेद आक । १३ देवदारु। देवदार। १४ स्त्री (शब्द०)। का रज (को०)। सुपासी-वि० [हिं० सुपास + ई (प्रत्य॰)] १ सुख देनेवाला । सुपुष्प-वि० सु दर पुष्पो या फूलोवाला । जिसमे सुदर फूल हो आनददायक । उ०—(क) बालक सुभग देखि पुरवासी। होत सुपुष्पक-सज्ञा पुं॰ [स०] १ शिरीष वृक्ष । सिरिस। २ मुचकुद । भए सब तासु सुपासी।-रघुराज (शब्द०)। (ख) षोडश ३ श्वेतार्क । सफेद आक । ४ हरिद्रु । हलदुआ। ५ गर्दभाड। भक्त अनन्य उपासी । पयहारी के शिष्य सुपासी। रघुराज परास पीपल । ६ राजतरुणी । वडी सेवती। (शब्द०)। २ सुखी । सुपास युक्त । सुखयुक्त । उ०-कहत सुपुष्पा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ कोशातकी । तरोई। तुरई । २ द्रोण- पुरान रची केशव निज कर करतूति कलासी। तुलसी बसि पुष्पी । गूमा। ३ शतपुष्पा । सौफ। ३ शतपत्री। सेवती। हरपुरी राम जपु जो भयो चहै सुपासी।--तुलसी प्र०, सुपुष्पिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ एक प्रकार का विधारा । जीर्णदार । पृ० ४६५। २ शतपुष सोफ। ३ मिथेया। सोना। ४ पाटला। पाढर । सुपिंगला-सज्ञा स्त्री॰ [स० सुपिङगला] १ जीवतो। डोडी शाक । ५ माहिपवल्ली। पाताल गारुडी। ६ शतपुप्पी । वनसनई । २ ज्योतिष्मती। मालकगनी। सुपुष्पित-वि० [स०] जो अच्छी तरह पुष्पयुक्त हो। जिसमे खूब सुपीडन-सञ्ज्ञा पु० [स० सुपीडन] १ अगमर्दन । शरीर दवाना। फूल खिले हो (को०]। मालिश । चपी। २ जोर से दवाना (को०)। सुपुष्पी-सज्ञा स्त्री० [स०] १ श्वेत अपराजिता । सफेद कोयल लता। सुपीत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ गाजर। गर्जर। २ पीली कटसरैया । २ शतपुष्पी। सौफ। ३ मिश्रेया। सोया । ४ कदली। केला। पीत झिटी। ३ पीतसार या चदन। ४ ज्योतिष मे पांचवे ५ द्रोणपुष्पी। गूमा । ६ वृद्ध दारू | विधारा। मुहूर्त का नाम । सुपूत'-वि० [स०] अत्यत पूत या पवित्र । सुपीत -वि० १ उत्तम रूप से पीया या पान किया हुआ । २ विलकुल सुपूत -वि० [स० सु+ पुन, प्रा० पुत्त, हिं० पूत] अच्छा पुत्र। पीला । गहरा पीला। सुपुत्र । सपूत। सुपीन--वि० [स०] बहुत मोटा या बडा । सुपूती- -सज्ञा स्त्री० [हिं० सुपूत + ई (प्रत्य॰)] १ सुपूत होने का भाव । सुपीवा--वि० [स० सुपीवन्] अच्छी तरह पीनेवाला (को०] । सपूतपन । उ०-करे सुपूती सोड सुत ठीको । --कबीर सुपुख-वि० [स० सुपुडख] जिसमे भली प्रकार पख लगे हो (को०] । (शब्द०)। २ अच्छे पुन वाली स्त्री। सुपुंसी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] वह स्त्री जिसका पति सुपुरुप हो । सुपूर'--सञ्ज्ञा पु० [सं०] वीजपूर । विजौरा नीबू । सुपुट-सज्ञा पु० [स०] १. कोलकद । चमार अालू । २. विष्णुकद । सुपूर-वि० सहज मे पूर्ण होने या भरा जाने योग्य । सुपुट'-वि० सु दर पुट या नथुनोवाला [को०)। सुपूरक-सज्ञा पु० [स०] १ अगस्त । वकवृक्ष । २ विजौरा नीबू । सुपुटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सेवती। वनमल्लिका । सुपेता-वि० [फा० सुफैद] दे० 'सफेद'। सुपुत्र-सञ्ज्ञा पु० [स० सुपुत्र] १ जीवक वृक्ष । २ उत्तम पुन । सुपेती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० सुफैदी] १ दे० 'सफेदी'। २ विछाने की सुपुत्र वि० जिसका पुत्र सु दर और उत्तम हो। अच्छे पुत्रवाला । चादर या तोशक । उ०-सुभग सुरभि पय फेनु समाना । कोमल कलित सुपेती नाना।-मानस,१।३५६ । सुपुत्रिका-सश स्त्री० [सं०] जतुका लता । पपडी। सुपुत्रिका-वि० सुदर या उत्तम पुत्रवाली। सुपेद - वि [फा० सुफैद] दे० 'सफेद' । सुपुर-सज्ञा पुं॰ [स०] सुदृढ दुर्ग । सुपेदी -सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० सुफैदी] १ सफेदी। उज्वलता। २ अोढने की रजाई। ३ विछाने की तोशक । ४ विछौना । विस्तर। सुपुरुष-सञ्चा पु० [स०] १ सुदर पुरुष । २ सत्पुरुष । सज्जन । सुपेली- --सज्ञा झी- [हिं० सूप + एली (प्रत्य॰)] १ छोटा सूप । भलामानस। २ दे० 'सुपलिया। सुपुर्द 1-सञ्ज्ञा पु० [फा०] दिया हुआ । सीपा हुा । हवाले किया हुआ। सुपेश-सज्ञा पुं॰ [स०] उत्तम बुना हुआ वस्त्र । बारीक बुना हुआ सुपुर्दगी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] सुपुर्द करने का भाव । सुपुर्द करना। कपडा (को०] । सुपुष्करा-सज्ञा स्त्री० [स०] स्थल कमलिनी । स्थल पद्मिनी । सुपेशल-वि० [स०] अत्यत सलोना या श्लक्ष्ण [को॰] ।