सुमेर मुकेश ७००२ सुमेर एश पुं० [म सुमेरु] १ सुमरु पर्वत । उ० - (क) शाभित चरण में १६ पार किमी ने २० मानाएं मानी है। पर यह सु दर केशव कामिनि । जिमि सुमर पर घन सहगामिनि । गवसमत नहा है । ६ एक विद्याधर (को०) । गिरिधर (शब्द०) । (य) सपति सुमेर की कुबेर की जु पावै सुमेरु'--१० १ बढ़त ऊँचा । २ बहुत मु दर । ताहि तुरत लुटावत विनय उर धार ना। पद्माकर सुमेरुजा--पश सो० [सं०] सुमेरु पयत म निकली हुई नदी । (शब्द०)। २ गगाजल रखने का बडा पान्न । सुमेरु'-सज्ञा पुं० [१०] १ एक पुराणापा पयत जो सोने का महा सुमेरुवृत्त--Zar Ko [40] यह रेग्गा जो उत्तर पृय गे २३॥ प्राण गया है। सुमेरुगमुद्र--राशा पुं० [सं०] उत्तर महापागर । विशेष भागवत के अनुसार सुमेग पर्वतो का गजा है । यह मोने मुम्न--पशा पुं० [म०] १ ऋगा। मन । २ प्रानद। प्रसन्नता। का है । इस भूमडल के सात द्वीपो मे प्रथम द्वीप जवू द्वीप ३. रुपा । अनुग्रह । रक्षण। ४ पग (फो०) । के--जिमकी लबाई ४० लारा कोस और चौडाई चार लाख सुम्नी-वि० [मे० गुम्निन्] १ दयानु । पालु । मेहरबान । २ प्राकून। कोस है--नौ वर्षों मे मे इलावृत्त नामक अभ्यतर वर्ष मे यह सुम्मा--गश पुं० [दश०] १ बाग (बाजार)10 दे० 'मुगा'। स्थित है। यह ऊनाई मे उक्त द्वीप के विस्तार के समान है। इस पर्वत का शिरोभाग १२८ हजार वोन, मूल देश ६४ गुम्मी-गका पी० [देश ] १ गुगारी या एक अौजार जिममे ये घुजी और ती गीना उमाउते हैं । २२० 'मुनो। हजार कोस और मध्य भाग चार हजार फोग ग है। उसके चारो ओर मदर, मेरुमदर, सुपार्श्व और कुमुद नामक चार ग्राश्रित सुम्मोदार सवरा- पुं० [fz० गुम्मी + फा० दार (प्रत्य॰)+ पर्वत है। इनमें से प्रत्येक की ऊंचाई और फैलाव ४० हजार कोम नवग ( = योगार)] वह नवग जिममे कगेरे पगन में बुंदकी निकालते हैं। है । इन चारों पर्वतो पर पाम, जामुन, कदव और बड के पेड हैं जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई चार मी कोम है। इनके पास सुम्ह --मया पुं० [सं० गुम्भ] ए7 जाति का नाम । ही चार ह्रद भी हैं जिनमे पहला दूध का, दूसरा मधु ना, सुम्ह'-सा पुं० [फा० सुम] २० 'मुग' । तीसरा ऊख के रम का और चौया शुद्ध जल का है। चार सुम्हार--मक्षा पं० [देश॰] एक प्रकार का धान जो उत्तर प्रदेश में उद्यान भी है जिनके नाम नदन, चैत्ररथ, वैभ्राजक और होता है। सर्वतोभद्र हैं । देवता इन उद्यानो मे सुरागनाओ के साथ विहार सुय--प्रव्य० [सं० स्वयम्] २० 'स्वयम्' । करते हैं । मदार पर्वत के देवच्युत वृक्ष और मेरुपर्वत के जवू मुयनित-वि० [सं० नुयन्दिन] १ मली प्रकाः कोलित । प्रारक्षित । वृक्ष के फूल, बहुत स्यूल और विराट्काय होते हैं । इनसे दो २ मली प्रकार बंधा हुना। सुबद्ध । ३ मयत । जितेंद्रिय नदियां-अरुणोदा और जबू नदी-वन गई है । जबू नदी के प्रात्मनिग्रही। किनारे की जमीन की मिट्टी तो रम से सिक्त होने के कारण सुयवर-सरा पुं० [सं० स्वयम्बर] ३० 'स्वयपर'। सोना ही हो गई है। सुपार्श्व पर्वन के महाकदव वृक्ष से जो सुयजु--सग पुं० [सं० सुयजुम्] महाभारत के अनुमार भूमजु के एक मधुधारा प्रवाहित होती है, उसको पान करनेवाले के मुंह से पुत्र का नाम। निकली हुई सुगध चार मी कोस तक जाती है। कुमुद पर्वत सुयज्ञ---सरा पुं० [सं०] १ रुचि प्रजापति के एक पुत्र का नाम जो का वट वृक्ष तो कल्पतरु ही है। यहां के लोग पाजीवन मुख प्राकृति के गर्भ से उत्पन्न हुना था। २ वसिष्ठ के एक पुत्र का भोगते है । सुमेरु के पूर्व जठर और देवकूट, पश्चिम मे पवन नाम । ३ ध्रुव के एक पुत्र का नाम । ४ उशीनर के एक राजा और पारियान, दक्षिण मे कैलास और करवीर गिरि तथा का नाग। ५ उत्तम यश। उत्तर मे निशृग और मकर पर्वत स्थित है। इन सबकी ऊँचाई कई हजार कोस है । सुमेरु पर्वत के ऊपर मध्यभाग मे यज्ञ-वि० उत्तमता या सफलता से यज्ञ करनेवाला। जिसने उत्त- ब्रह्मा की पुरी है, जिसका विस्तार हजारो कोस है। यह पुरी मता से यज्ञ किया हो। भी सोने की है । नृसिंहपुराण के अनुसार सुमेरु के तीन प्रधान सुयज्ञा-मला सी० [सं०] महाभौम की पत्नी का नाम । शृग है, जो स्फटिक, वैदूर्य और रत्नमय है । इन शृगो पर २१ सुयत--वि० [सं०] १ उत्तम रूप से सयत । सुसयत । २ जितेंद्रिय । स्वर्ग हैं जिनमे देवता लोग निवास करते है। सुयम-सा पुं० [सं०] पुराणानुसार देवतानो का एक गण जिनका २ शिव जी का एक नाम । ३ जपमाला के बीच का वडा दाना जन्म सुयज्ञ की पत्नी दक्षिणा के गभ से हुग्रा था। जो और सब दानो के ऊपर होता है। इसी से जप का प्रारम सुयमा-सा स्त्री॰ [स०] प्रियगु । और इसी पर इमकी समाप्ति होती है। ४ उत्तर ध्रुव । सुयवस-सा पुं० [सं०] १ उत्तम गोचर भूमि । २ हरी हरी उत्तम विशेप दे० 'ध्रुव' । ५ एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे घास (को०)। १२+ ५ के विश्राम से १७ मात्राएँ होती हैं, अत मे लघु गुरु सुयश-संज्ञा पुं० [सं०] अच्छा यश। अच्छी कोति। सुख्याति । नहीं होते, पर यगण अत्यत श्रुतिमधुर होता है। इसकी १, ८ सुकीर्ति । सुनाम । जैसे,--पाजकल चारो ओर उनका सुयश और १५ वी मात्राएँ लघु होती हैं। किसी किसी ने इसके एक फैल रहा है।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८२
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