पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८१

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७००१ २ सुमाली' सुमेध्य मुमाली-सहा पु० [फा० शुमाल] एक अरब जाति । राई। राजिका। राजमर्पप । १५ वर्नवर्वरी । जगली वर्वरी। विणेप-अफ्रिका के पश्चिमी किनारे पर तथा अदन में इस जाति १६ श्वेत तुलसी। १७ मुदर मुख । १३ एक प्रकार का भवन का निवाम है। गुलामो का व्यवसाय करनेवाले अफ्रिका से (को०) । १४ नख की खरोच । नमक्षत (को०) । इन्हें ले आए थे। मुमुख'--वि० १ सुदर मुम्ब वाला। २ सुर। मनोरम । मनोहर । सुमाली लेड--सज्ञा पु० [अ०] अफ्रीका का पूर्वी तटवर्ती एक देश । ३ प्रसन्न । ४ अनुकूल । कपालु । ५ जिनकी नोक अच्छी हो । मुमाल्य-मज्ञा पुं० [स०] महापद्म के एक पुत्र का नाम । धारदार । अनीवाला जैसे, वारण (को०)। ६ जिमके दरवाजे सुमाल्यक-सज्ञा पु० [स० पुराण के अनुसार एक पर्वत का नाम । नुदर हो । सुदर द्वारवाला (को॰) । सुमावलि-सहा [स०] पुप्पहार । सुमुखा--सज्ञा बी० [म०] मुदर मुखवाली स्त्री। सुदरी स्त्री। सुमित्र' - सरा पु० [म०] १ श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम । सुमुखी--सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ वह स्त्री जिमका मुख सुदर हो । सुदर अभिमन्यु के सारथि का नाम । ३. मगध का एक राजा जो मुखवाली स्त्री। २ दर्पण । पाईना। ३ संगीत मे एक प्रकार अर्हत् सुव्रत का पिता या। ४ गद के एक पुत्र का नाम । ५ की मूछना। ४ एक अप्सरा का नाम । ५ एक वृत्त जिसके श्याम का एक पुत्र । ६ शमीक का एक पुत्र । ७ वृष्णि का प्रत्येक चरण मे ११ अक्षर होते है। इनमे से पहला, पाठवा एक पुत्र। ८ इक्ष्वा वश के अतिम राजा सुरथ के पुत्र का तथा ग्यारहवाँ लघु और अन्य अक्षर गुरु होते है। ६ नील नाम । ६ एक दानव का नाम । १० सौराष्ट्र के अतिम राजा अपराजिता। नीली कोयल। ७ शखपुप्पी। शखाहुली। का नाम। कौटियाली। विशेष-कर्नल टाड के अनुसार ये विक्रमादित्य के सममामयिक मुष्टि -सज्ञा पु० [स०] वकायन । विपमुष्टि । महानिव । थे। इन्होने राजपूताने मे जाकर मेवाड के राणा वश की मुमूर्ति सज्ञा पुं० [स०] शिव के एक गण का नाम । स्थापना की थी। भागवत मे इनका उल्लेख है। सुमूल'--सञ्शा पु० [स०] १ सफेद सहिजन । श्वेत शिग्रु । २ ११ अच्छा मिन । सन्मित्र । वफादार दोस्त (को०)। उत्तम मूल। सुमित्र-वि० उत्तम मित्रोवाला। सुमूल-वि० उत्तम मूलवाला । जिसकी जड अच्छी हो । सुमित्रभू-सज्ञा पुं० [२०] १ जैनियो के चक्रवर्ती राजा सगर का सुमूलक-सज्ञा पु० [सं०] गाजर । नाम । २ वर्तमान अवसर्पिणी के बीसवें अर्हत् का नाम । सुमूला--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सरिवन । शालपर्णी। २. पिठवन । सुमिना-सशा स्त्री॰ [स०] १ दशरथ की एक पत्नी जो लक्ष्मण तथा पृष्णिपर्णी। शत्रुघ्न की माता थी। २ मार्कडेय की माता का नाम । ३ एक यक्षिणी का नाम (को०)। सुमृग--सज्ञा पु० [स०] वह भूमि जहाँ बहुत से जगली जानवर हो। शिकार खेलने के लिये अच्छा मैदान । सुमित्रातनय--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'सुमित्रानदन'। सुमित्रानदन--सञ्ज्ञा पु० [स० सुमित्रानन्दन] १. लक्ष्मण । २ शत्रुघ्न । सुमृत'--वि॰ [स०] मृत । मरा हुग्रा [को०] । सुमित्राभू--सञ्ज्ञा पु० [स०] दे० 'सुमित्रानंदन'। सुमृत--सबा पु० [स० स्मृति] दे॰ 'स्मृति'। उ०-श्रुति गुरु सुमिन्य-वि० [स०] उत्तम मित्रोवाला । जिसके अच्छे मित्र हो। माधु सुमृत समत यह दृश्य सदा दुखकारी।--तुलसी (शब्द०)। सुमिरण-सज्ञा पुं० [स० स्मरण] दे० 'स्मरण' । सुमृति पु-मज्ञा स्त्री० [म० स्मृति] दे० 'स्मृति'। उ०--देव कवितान पुण्य कीरति वितान, तेरे सुमृति पुराण गुणवान श्रुति भरिए । सुमिरन--सज्ञा पु० [स० स्मरण] दे० 'सुमिरण' । -देव (शब्द०)। सुमिरना--क्रि० स० [स० स्मरण] दे॰ 'सुमरना' । ३०-जेहिं सुमेखल'--सञ्ज्ञा पु० [स०] मूंज • मुजतृण । सुमिरत सिधि होइ गणनायक करिवर वदन ।-तुलसी (शब्द०)। सुमेखल'--वि० जिसको मेखला मु दर हो। सु दर मेखलावाला सुमिरनील---सज्ञा नी० [हिं० सुमिरन + ई (प्रत्य॰)] २० 'सुमरनी'। सुमेध-संशा पु० [सं०] रामायण के अनुसार एक पवत का नाम । उ.--अथवा सुमिरनी डारि दीन्ह्यो तुरत ही धारा वढी। सुमेडी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] खाट बुनने का वाध । रघुराज (शब्द०)। सुमेध-- वि० [१० सुमेधम्] दे॰ 'सुमेधा' । उ०-ताहि कहत पाच्छेय सुमिरिनिया@~-सशा सी० [हिं० सुमिरनी+इया (प्रत्य॰)] दे० हैं भूपन सुकवि सुमेध ।- भूपण (शब्द०)। 'सुमिरनी' । उ०-पीतय हक सुमिरिनिया मुहि देइ जाहु । -रहीम (शब्द०)। सुमेधा'--वि० [स० सुमेधस्] उत्तम वद्धिवाला । सुबुद्धि । बुद्धिमान् । सुमुख'-सा पुं० [स०] १ शिव । २ गणेश । ३ गण्ड के एक पुत्र सुमेधा--मज्ञा पुं० १ चाक्षुप मन्वतर के एक ऋपि का नाम। २. का नाम । ८ द्रोण के एक पुत्र का नाम । ५ एक नागासुर । वेदमित्र के एक पुत्र का नाम । ३ पाँचवें मन्वतर के विशिष्ट ६ एक अनुर । ७ किन्नरो का राजा । ८ एक अपि । एक देवता । ४ पितरो का एक गण या मेद । वानर । १० पडित । प्राचार्य । ११ एक प्रकार का जलपक्षी। सुमेधा'--सशा मी० मालक गनी । ज्योतिग्मती लता। १२ एक प्रकार का शाक। १३ एक राजा का नाम । १४ सुमेध्य-वि॰ [सं०] अत्यत पवित्र । वहुत पवित्न ।