पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुरक' ७००४ सुरखुरू नदन कानन। सुरक'--पज्ञा पुं० [सं० सुर] नाक पर का वह तिलक जो भाले की सुरक्त--वि० [सं०] १ सुदर रेंगा हुआ। अच्छी तरह रंगा हुया । प्राकृति का होता है । उ०- खौरि पनिच भृकुटी धनप वविकु २ गाढ रक्त वर्ण का। ३ प्रभावित । वशीभूत । ४ अनुरक्त । समरु, तजि कानि। हनतु तम्न मृग तिलकसर सुरक भाल, ५ मधुर ध्वनियुक्त । ६ अत्यत सुदर । वहुत खूबसूरत [को०] । भरि तानि ।--विहारी (शब्द०)। सुरवतक--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कोशम । कोशाम्र। विशेप दे० 'कोशम'। सुरक'--सज्ञा स्त्री० [हिं० सुरकना] सुरकने की क्रिया या भाव । २ एक प्रकार का अाम्रफल (को०)। ३ सोन गेर। स्वर्ण सुरकना--क्रि० [अनु॰] १ किसी तरल पदार्थ को धीरे धीरे हवा के गरिक। साथ खीचते हुए णना । हवा के साथ ऊपर की अोर धीरे धीरे सुरक्ष'--संज्ञा पुं० [स०] १ एक मुनि का नाम । २ पुराणानुसार खीचना। एक पर्वत का नाम। सुरकरीद्र--पज्ञा पु० (स० सुरकरीन्द्र] देवहस्ती। ऐरावत [को॰] । सुरक्ष'--वि० उत्तम रूप से रक्षित । जिमकी भली भाँति रक्षा की गई हो। यौ०--मुरकरीद्रदर्यापहा = गगा का एक नाम । सुरक्षण--सज्ञा पु० स०] उत्तम रूप से रक्षा करने की क्रिया। रख- सुरकरी--मज्ञा पुं० [स० सुरकरिन् ] देवतानो का हाथी । सुरराज का वाली। हिफाजन। हाथी । ऐरावत दिग्गज । उ०--जु तू इच्छा वाके करि विमल सुरक्षा--भज्ञा स्त्री० [स०] सुरक्षण । सम्यक् रक्षा [को०] । पानी पियन की। झुके प्राधो लबे तन गगन मे ज्यो सुरकरी । सुरक्षित--वि० । सं०] जिसकी भली भांति रक्षा की गई हो। उत्तम -राजा लक्ष्मण सिंह (गब्द०). रूप से रक्षित। अच्छी तरह रक्षा किया हुआ। सुरकली-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सुर + कली] एक रागिनी का नाम । सुरक्षी--सज्ञा पु० [स० मुरक्षिन्] उत्तम या विश्वस्त रक्षक । अच्छा सुरकाज सज्ञा पुं० [स० सुरकार्य] देवताओ का काम या हित । अभिभावक या रक्षक । वह काम जो देवताग्रो को इष्ट हो। उ०--(क) सुरकाज सुरक्ष्य--वि० [स०] । जो सम्यक् रक्षणीय हो। २ सरलतापूर्वक धरि कर राज तनु चले दलन खल निसिचर अनी ।--मानस, जिसकी रक्षा की जा सके (को०] । २।१२६ । (ख) उठे हरखि सुरकाजु सँवारन ।-मानस ३।२१ । सुरखडनिका--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुरखण्डनिका एक प्रकार की वीणा सुरकानन सज्ञा ० [सं०] देवताओं के विहार करने का वन । जो 'सुरमडलिका' भी कहलाती है। सुरकामिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] देवागना। सुरागना । अप्सरा [को०] । सुरख-वि० [फा० सुर्ख] दे॰ 'सुर्ख' । उ०--हरपि हिये पर तिय धरयो सुरख सीप को हार ।-पद्माकर (शब्द०)। सुरकारु-सज्ञा पु० [स०] देवताओ के शिल्पकार, विश्वकर्मा । सुरखा--वि० [फा० सुर्ख] दे० 'सुर्ख'। उ०--सुरखा अरु संजाब सुरकार्मुक--सज्ञा पु० [स०] इंद्रधनुष । सुरमई अवलख भारी।--सूदन (शब्द०)। सुरकार्य--संज्ञा पुं० [सं०] देवताओ को तुष्टि के लिये किया हुआ सुरखा-मज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का लबा पौधा जिसमे पत्ते कर्म । देवकार्य । जैसे--पूजन हवन प्रादि । बहुत कम होते हैं। सुरकाष्ठ--सज्ञा पुं० [स०] देवदार । देवकाष्ठ । सुरकुदाव--सज्ञा पुं० [सं० सुर ( स्वर), स० कु+ हिं० दॉव सुरखाव'--सज्ञा पु० [फा० सुरखाब] चकवा । (= धोखा)] स्वर के द्वारा धोखा देना। स्वर बदलकर मुहा०--सुरखाव का पर लगना = विलक्षणता या विशेपता बोलना, जिससे लोग धोखे मे आ जायें । उ०--चौक चारु करि होना । अनोखापन होना । जैसे--तुम मे क्या कोई सुरखाद का कूप ढारु घरियार वाँधि घर । मुक्ति मोल करि खड्ग खोलि पर है, जो पहले तुम्हे दे। सिंघिहि निचोल वर । हय कुदाव दे सुरकुदाव गुन गान रग सुरखाब'--सज्ञा स्त्री॰ [फा० सुरखाव] एक नदी का नाम जो बलख मे को । जानु भाव शिवधाम धाव धन ल्याउ लक को।-केशव बहती है। (शब्द०)। सुरखिया--मज्ञा पु० [फा० सुर्ख + इया (प्रत्य॰)] एक प्रकार का सुरकुनठ -सज्ञा पुं० [सं०] बृहत्सहिता के अनुसार ईशानकोण मे स्थित पक्षी। एक देश का नाम । विशेष-यह सर से गरदन तक लाल होता है। इसकी पीठ भी सुरकुल-सज्ञा पुं० [सं०] देवतानो का निवासस्थान । लाल होती है, पर चोच पीली और पैर काले होते है । सुरकृत्'--सज्ञा पुं० [म०] विश्वामिन के एक पुत्र का नाम । सुरखिया बगला--सशा पुं० [हिं० सुर्ख + बगला] १ एक प्रकार का सुरकृत्---वि० देवताओ द्वारा किया हुआ। वगला जिसे गाय बगला भी कहते है। सुरकृता--सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] गिलोय । गुडुची। सुरखी-सञ्ज्ञा खी० [फा० सुर्ख] १ ईंटो का बनाया हुअा महीन चूरा सुरकेतु--सचा पु० [सं०] १ देवतानो या इद्र की ध्वजा। २ इद्र । जो इमारत बनाने के काम मे आता है । २ दे० 'सुर्थी' । उ०-द्वारपाल के वचन सुनत नृप उठे समाज समेतू । लेन यौ०-सुरखी चूना । चले मुनि की अगुवाई जिमि विधि कहँ सुरकेतू ।--रघुराज सुरखुरू-वि० [फा० सुर्खरू] दे॰ 'सुर्खरू' । उ०-अलहदार भल तेहि (शब्द०)। करगुरू । दीन दुनी रोसन सुरखुरु,-जायसी (शब्द॰) ।