पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८५

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सुरगंड ७००५ सुरतरु सुरगड-सया पुं० [सं० सुरगण्ड] एक प्रकार का फोडा । सुरजेठोल-संज्ञा पुं० [सं० सुरज्येष्ठ] ब्रह्मा । (डि०) । सुरग@----सहा पुं० [सं० स्वर्ग] दे० 'स्वर्ग' । उ०--जीत्यो सुरग सुरज्येष्ठ-सज्ञा पुं० [सं०] देवतागो मे वडे, ब्रह्मा । जीति दिसि चारयौ ।--लाल कवि (शब्द०) । सुरझन@---सज्ञा स्त्री० [हिं० सुलझना] दे॰ 'सुलभन' । उ०-गरजन सुरगज-सज्ञा पुं० [सं०] देवतानो या इद्र का हाथी। मैं पुनि श्राप ही वरसन में पुनि पाप । सुरझन में पुनि पाप त्यो सुरगए--सशा पुं० [सं०] १ शिव । २ देवगण। देवताओं का वर्ग उरझन में पुनि श्राप ।-रसनिधि (शब्द०)। या समूह। सुरझना-कि० अ० [हिं०] दे॰ 'सुलझना'। उ०--अरी करेज नैन सुरगति--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ दैवी गति । भावी। २ देवताओ की तुव सरसि करेजे वार। अजहूँ सुरझत नाहिं ते सुर हित करत स्थिति या अवस्था (को०)। पुकार ।--रसनिधि (शब्द०)। सुरगन--सज्ञा [स० सुरगण] देवतानो का रामूह । देवगण । सुरगण। सुरझाना-क्रि० स० [हिं० सुलझाना] दे० 'सुलझाना' । उ०-यो उ०-सुरगन सहित सभय सुरराजू।-मानस, २२२६४ । सुरझाऊँ री नंदलाल सो अरुझि रह्यो मन मेरो।-सूर सुरगवेसां-सज्ञा स्त्री० [स० स्वर्गवेश्या] अप्सरा। (डिं०) । (शब्द०)। सुरगर्भ---सज्ञा पुं० [सं०] देवसतान । सुरमावना-क्रि० स० [हिं० सुलझाना] दे० 'सुलझाना' । उ०- सुरगाय--सञ्ज्ञा स्त्री० [पुं० सुर+गो] कामधेनु । उरझ्यो काहू रूख मे कहूँ न वल्कल चीर। सुरझावन के मिस सुरगायक-सज्ञा पु० [स०] देवताओ के गायक । गधर्व । तऊ ठिठकी मोरि शरीर।-लक्ष्मणसिंह शब्द०)। सुरगायन--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरगायक' । सुरटीप-सज्ञा स्त्री० [हिं० सुर+टीप] स्वर का पालाप । सुर की तान। सुरगिरि-सज्ञा पुं० [सं०] देवताओ के रहने का पर्वत, सुमेरु । सुरगीg---सज्ञा पुं० [सं० स्वर्गीय] देवता । (डि०) । सुरत-सज्ञा पुं॰ [स० | १. रतिक्रीडा । कामकेलि । सभोग । मैथुन । सुरगी नदीg-सज्ञा स्त्री॰ [स० स्वर्गीय+नदी] स्वर्नदी। देवनदी। उ०-मुरत ही सब रैन बीती कोक पूरण रग । जलद दामिनि सग सोहत भरे पालस सग ।-सूर (शब्द॰) । गगा। (डि.)। यो०-सुरतकेलि, सुरतक्रीडा रतिक्रीडा । सुरतगुप्ता। सुरत- सुरगुरु-सच्चा पु० [स०] देवताओ के गुरु, बृहस्पति । उ०-वचन गुरु = पति । शौहर । सुरतगोपना । सुरतग्लानि । सुरत- सुनत सुरगुरु मुसकाने ।-मानस, २२२१७ । ताडव= तीव्रतम कामवेग । प्रचड सभोग । सुरसताली। सुरत- सुरगुरुदिवस-सज्ञा पुं० [स०] बृहस्पतिवार । प्रसग = कामक्रीडा मे आसक्ति। सुरतभेद =एक प्रकार का सुरगृह-सचा पुं० [सं०] देवताग्रो का मदिर । सुरकुल । रतिवध । सुरतमृदित = रतिक्रीडा मे मसल दिया हुआ । सुरगैया@-सज्ञा स्त्री० [स० सुर+ हिं० गया] कामधेनु । सुरतरगी सभोग मे यासक्त । सुरतवाररानि = सुरत क्रीडा सुरग्रामणी--सज्ञा पुं॰ [स०] देवतापो का नेता, इद्र । की रात । सुरतविशेष = एक रतिवध । सुरतस्य । सुरचाप--संज्ञा पुं० [सं०] इद्रधनुष । २ उत्कृष्ट प्रानद की अनुभूति (को०)। ३ एक बौद्ध भिक्षु का नाम । सुरच्छन--मशा पु० [स० सुरक्षण] दे० 'सुरक्षण'। उ०-रन सुरत --सज्ञा सी० [सं० स्मृति ध्यान । याद । सुध। उ०-(क) परम विचच्छन गरम तर धरम सुरच्छन करम कर ।--गि० धीर मढत मन छन नही कढत बदन तें बैन । तुरत सुरत की दास (शब्द०)। सुरत के जुरत मुरत हंसि नैन ।-शृगार सतसई (शब्द॰) । सुरज फल-सज्ञा पुं० [स०] कटहल । पनस । (ख) करत महातम विपिन वधि चलो गयो करतार । तह अखड लागी सुरत यथा तैल की धार।-रघुराज (शब्द०)। सुरज'--वि० [स० सुरजस्] (फूल) जिसमे उत्तम या प्रचुर पराग हो । क्रि० प्र०--करना।--दिलाना।--होना ।-लगना। सुरज-सशा पुं० [सं० सूर्य] दे० 'सूर्य' । मुहा०--सुरत विसारना= भूल जाना। विस्मृत होना। सुरत सुरजन'--सम्झा पुं० [स०] देवताग्रो का वर्ग । देवसमूह । सँभालना होश संभालना। सुरजन-वि० [सं० सज्जन] १ सज्जन । सुजन । २ चतुर । चालाक । उ०--कहो नैक समुझाड मुहिं सुरजन प्रीतम आप। सुरतगुप्ता, सुरतगोपना--तज्ञा सी० [सं०] दे० 'सुरतिगोपा' (फो०)। वस मन मैं मन को हरी क्यो न विरह सताप ।-रसनिधि सुरतग्लानि-सशा सी० [स०] रति या सभोगजनित थकान, ग्लानि या (शब्द०)। शिथिलता। सुरजनपन-सया पुं० [हिं० सुरजन+पन (प्रत्य॰)] १ सज्जनता। सुरततालीसा सी० [सं०] १ दूती। २ शिरोमाल्य । सेहरा । भलमनसत । २ चालाकी। होशियारी । चतुराई। सुरतवध-संशा पुं० [सं०] सभोग का एक प्रकार । सुरजा--तशा ती० [सं०] १ एक अप्सरा का नाम। २ पुराणानुसार सुरतरगिएो-सशा स्त्री० [० सुरतरङ्गिणी] गगा। एक नदी का नाम। सुरतरु-सा पु० [सं०] देवतर। कल्पवृक्ष । दि० २०१०-४७