पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८८

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७००८ सुरवहार सुरभिषक् सुरवहार-सक्षा पु० [हिं० सुर+फा० बहार] सितार की तरह का विद्वान् (को०)। ५ उत्तम। श्रेष्ठ । वढिया। ६ सदाचारी। एक प्रकार का वाजा। सद्भावयुक्त । गुणवान् । सुरवाला-सचा सी० [सं०] देवता की स्त्री । देवागना। सुरभिकदर--सशा पु० [स० सरभिकन्दर] एक पर्वत का नाम सुरवुली-सज्ञा स्त्री० [सं० सुरवल्ली ?] एक पौधा जिसकी जड से लाल सुरभिकाता--सज्ञा स्त्री॰ [म० मुरभिकान्ता] वासती पुष्प वृक्ष । नेवारी। रग निकालते हैं। चिरवल । सुरभिका--संज्ञा स्त्री॰ [स०] स्वर्ण कदली । सोना केला । विशेष--यह पौधा वगाल और उडीसा से लेकर मद्रास और सुरभिगव'-मज्ञा पुं० [० सुरभिगन्ध] तेजपत्ता । सिंहल तक होता है। इसकी जड की छाल से एक प्रकार का सुदर लाल रंग निकलता है जिससे मछलीपट्टन, नेलोर आदि सुरभिगव'--वि० सुगधित । सवासित । खुशबूदार । स्थानो मे कपडे रंगे जाते है। सुरभिगवा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] चमेली। सुरवृच्छणा-संज्ञा पुं० [स० सुरवृक्ष] कल्पवृक्ष । दे० 'सुरवृक्ष'। सुरभिगधि-वि० [स० सुरभिगन्धि] सुगधियुक्त (को०] । उ०-मुख ससि मगर अधिक वचन श्री अमृत ऐसी । सुर सुरभिगघो--सशा स्त्री० [स० सुरभिगन्धी] सुगधित वस्तु । सुरभी सुरवृच्छ देनि करतल मह वैसी ।-गि० दास सुरभिगोत्र-सज्ञा पु० [सं०] गाय बैलो का झुड । पशुसमूह [को०)। (शब्द०)। सुरभिघृत-सज्ञा पु० [स०] अच्छी तरह तपाया हुआ सुगधित घो। सुरवेल-सज्ञा स्त्री॰ [स० सुर+वल्ली] कल्पलता । गोघृत (को॰] । सुरभग-सज्ञा पु० [सं० स्वरभडग] प्रेम, आनद, भय आदि मे होने- सुरभिचूर्ण- सखा पुं० [स०] सुवासित बुकनी या चूरा । वाला स्वर का विपर्यास जो सात्विक भावो के अंतर्गत है। सुरभिच्छद-सञ्चा पु० [सं०] १ कैथ । कपित्य । २ सुगधित जवूफल । उ०-(क) स्तभ स्वर रोमाच सुरभग कप वैवर्ण । अश्रु सुरभित-वि० [सं०] १ सुगधित । सुवासित । २ विख्यात । प्रसिद्ध । प्रलाप बखानिए आठो नाम सुवर्ण ।-केशव (शब्द॰) । (ख) मशहूर (को०)। निसि जागे पागे अमल हित को दरसन पाइ। बोल पातरो सुरभितनय-सशा पु० [सं०] वैल । साँड । होत जो सो सुरभग वताइ ।-काव्यकलाधर (शब्द॰) । (ग) सुरभितनया-सशा स्त्री० [स०] गाय । क्रोध हरख मद भोत ते वचन और विधि होय । ताहि कहत सुरभिता-मज्ञा स्त्री० [सं०] १ सुरभि का भाव। २ सुगधि । खुशबू । सुरभग है कवि कोविद सब कोय ।- मतिराम (शब्द०)। सुरभित्रिफला-सञ्ज्ञा सी० [स०] जायफल, सुपारी और लोग इन सुरभवन- सञ्चा पुं० [सं०] १ देवतायो का निवासस्थान । मदिर । २ सुरपुरी । अमरावती। सुरमानुल-सचा पुं० [सं० सुर+भानु] १ इद्र। उ.-राधे सो सुरभित्वक्-सशा स्त्री॰ [स०] वडी इलायची। रस वरनि न जाई। जा रस को सुरभानु, शोश दियो, सो त सुरभिदारु-सञ्ज्ञा पु० [स०] घूप सरल । पियो अकुलाइ । —सूर (शब्द०)। २ सूर्य । उ०-सुनि सजनी विशेष-वैद्यक के अनुसार यह सरल, कटु, तिक्त, उष्ण तथा सुरभानु है अति मलान मतिमद । पूनो रजनी मैं जु गिलि देत कफ, वात, त्वचा रोग, सूजन और ब्रण का नाशक है। यह उगिलि यह चद।-शृगार सतसई (शब्द०)। कोठे को भी साफ करता है। सुरभि'-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ सुगध । २ वसत काल । चन मास । ३ सुरभिदारुक-सज्ञा पु० [स०] सरलवृक्ष । विशेष दे० 'सुरभिदार। सोना। स्वर्ण । ४ गधक । ५ चपक । चपा। ६ जायफल सुरभिपता--सज्ञा स्त्री० [स०] राजजवू वृक्ष। गुलाब जामुन। विशेष ७ कदव । ८ वकुल । मौलसिरी। ९ शमी । सफेद कीकर । दे० 'गुलाब जामुन'। १० कणगुग्गुल । ११ गधतृण। रोहिस घास । १२ राल। सुरभिपुत्र--सज्ञा पुं० [स०] १ सांड । २ वैल। धूना। १३ कपित्थ । गधफ्ल। १४ बर्बर चदन। १५ वह सुरभिवाए-सञ्ज्ञा पु० [४०] कामदेव [को०] । अग्नि जो यज्ञयूप की स्थापना मे प्रज्वलित की जाती है। १६ जातीफल । जायफल (को०) । १७ सुगधित वस्तु (को०) । सुरभिमजरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुरभिमञ्जरो] श्वेत तुलसी। सुरभि'-सज्ञा स्त्री० १ पृथ्वी। २ गौ। ३ गायो की अधिष्ठात्री सुरभिमान'-मा पुं० अग्नि । सुरभिमान्-वि० [स० सुरभिमत्] सुगधित । सुवासित । देवी तथा गो जाति की आदि जननी। ४ कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । ५ सुरा। शराब । ६ गगापत्री। ७. वन- सुरभिमास-सञ्ज्ञा पुं० [स०] चैत्र मास । चैत का महीना। मल्लिका । सेवती । तुलसी। ६ शल्लकी । सलई । १० भद्र- सुरभिमुख-सञ्चा पु० [स०] वसत ऋतु का प्रारभ । जटा । ११ एलवालुक । एलुवा । १२ सुगधि । खुशबू । १३ सुरभिवल्कल-सज्ञा पुं० [स०] दालचीनी । गुडत्वक् । पूर्व दिशा (को०)। सुरभिवाण-सज्ञा पुं॰ [स०] कामदेव का एक नाम । सुरभि'--वि० १ सुगधित । सुवासित । २ मनोरम । सुदर । प्रिय। सुरभिशाक-सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का सुगधित शाक । ३ ख्यात । प्रसिद्ध । मशहूर (को०)। ४ बुद्धिमान । ज्ञानवान् । सुरभिषक् --सज्ञा ॰ [स०] देवताओ के वैद्य, अश्विनीकुमार। तीनो का समूह।