पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३९५

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सुरारिहने ७०१५ सुरिय सुरारिहन्-श पुं० [सं०] असुरो का नाश करनेवाले, शिव । सुराष्ट्रज'-सा पुं० [सं०] १ गोपीचदनं । सौराष्ट्रमृत्तिका । २ सुरारो-सग पुं० [देश॰, एक प्रकार की बरसाती घास जो राजपूताने काली मूंग। कृष्ण मुद्ग। ३ लाल कुलथी। रक्त कुलत्थ । और बुदेलखड मे होती है। यह चारे के लिये बहुत अच्छी ४. एक प्रकार का विप। समझी जाती है । इसे लव भी कहते हैं। सुराष्ट्रज'-वि० सुराष्ट्र देश में उत्पन्न । सुरार्चन-सगा पुं० [सं०] देवार्चन । देवाराधन [को०)। सुराष्ट्रजा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] गोपीचदन । सुरा वेश्म-सशा पुं० [स० सुरा वेश्मन्! वह स्थान या मदिर जहां सुराष्ट्रोद्भव--सज्ञा स्त्री० [सं०] फिटकरी। अनेक देवताओं की प्रतिमा हो । देवकुल [को०] । सुरासधान-सज्ञा पुं॰ [स० सुरासन्धान] शराब चुमाने की क्रिया। सुरादन--सक्षा पु० [म.] सुरो या देवतानो को पीडा देनेवाले, राक्षस सुरासमुद्र-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरान्धि' । या असुर। सुरासव-सज्ञा पुं॰ [स०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का पासव जो सुराह-सज्ञा पु० [स०] १ हरिचदन। २ स्वर्ण । सोना। ३ तीक्ष्ण, बलकारक, मूत्रवर्धक, कफ और वायुनाशक तथा मुख- कुकुमागरु चदन। प्रिय कहा गया है। सुराहक-मज्ञा पु० [सं०] १ बर्वरक । ववई । २ वैजयती । तुलसी। सुरासार सज्ञा पुं० [स०] मद्य का सार जो अगूर या माडी के खमीर सुराल'-सज्ञा पुं० [०] धूना। राल । से बनता है। इसके विना शराब नही बनती। इसी मे नशा सुराल'-सशा पु० [देश॰] एक प्रकार की लता जिसकी जड विलाई- होता है। कद कहलाती है। विशेष दे० 'घोडा वेल'। सुरासुर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सुर और असुर । देवता और दानव । सुरालय - सज्ञा पुं० [सं०] १ देवतागो के रहने का स्थान । स्वर्ग । यो०--सुरासुरगुरु । सुरासुरविमर्द - देवासुर संग्राम । २. सुमेरु । ३ देवमदिर। ४ वह स्थान जहाँ सुरा मिलती सुरासुरगुरु-सज्ञा पुं० [०] १ शिव । २ कश्यप । हो। शरावखाना । कलवरिया। सुरालिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] सातला या सप्तला नाम की बेल जो सुराही--सशा श्री० [अ०] जल रखने का एक प्रकार का प्रसिद्ध पात्र सुरास्पद-सज्ञा पुं॰ [स०] देवताओ का घर । देवगृह । मदिर। जगलो मे होती है। जो प्रायः मिट्टी का और कभी कभी पीतल या जस्ते आदि विशेष-इसके पत्ते खैर के पत्तो के समान छोटे छोटे होते हैं। धातुओ का भी बनता है। इसका फल पीला होता है और इसमे एक प्रकार की पतली विशेष-यह पान बिलकुल गोल हडी के आकार का होता है, चिपटी फली लगती है। फली मे काले बीज होते हैं जिसमे से पर इसका मुंह ऊपर की ओर कुछ दूर तक निकला हुअा गोल पीले रंग का दूध निकलता है। वैद्यक के अनुसार यह लघु, नली के आकार का होता है। प्राय गरमी के दिनो मे पानी तिक्त, कटु तथा कफ, पित्त, विस्फोट, व्रण और शोय को नाश ठढा करने के लिये इसका उपयोग होता है। इसे कही कही करनेवाली है। कुज्जा भी कहते है। सुराव--सरा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का घोडा।२ उत्तम ध्वनि । यौ०--सुराहीदार । सुराहीनुमा = सुराही जैसा । सुराही के सुरावट-सज्ञा पुं॰ [सं० स्वरावर्त] १ स्वर का माधुर्य । २ स्वरो का समान । कुज्जे के आकार का। उतार चढाव या आरोह अवरोह । २ वाजू, जोशन या वरेखी के लटकते हुए सूत मे घुडी के ऊपर सुरावती-सशा स्त्री० [सं० सुरावनि] कश्यप की पत्नी मौर देवताओ लगनेवाला सोने या चांदी का सुराही के आकार का बना की माता, अदिति । उ०-विनतासुत खगनाथ चद्र सोमावति हुआ छोटा लबोतरा टुकडा । ३ कपडे की एक प्रकार की काट केरे । सुरावती के सूर्य रहत जग जासु उजेरे ।-विश्राम जो पान के आकार की होती है। इसमे मछली की दुम की (शब्द०)। तरह कुछ कपडा तिकोना लगा रहता है। (दर्जी)। सुरावनि-सञ्चा सी० [सं०] १ देवताओ की माता, अदिति । नचे में सबसे ऊपर की ओर वह भाग जो सुगही के प्राकार २ पृथिवी । भूमि । धरती। का होता है और जिसपर चिलम रखी जाती है । सुरावारि-सज्ञा पुं० [स०] सुरा का समुद्र । विशेष दे० 'सुरान्धि' । सुराहीदार-वि० [अ० सुराही+फा० दार] सुराही के आकार का। सुरावास-सज्ञा पुं० [सं०] सुमेरु । सुराही की तरह का गोल और लवोतरा। जैसे,—सुराहीदार सुरावृत्त-संग पुं० [सं०] सूर्य। गरदन । सुराहीदार बूंघरू । सुराहीदार मोती। सुराश्रय-सक्षा पुं० [स०] मुमेरु । सुराह-सक्षा पुं० [सं०] १. देवदारु। २ मरया । मरुवक । सुराष्ट्र'-सज्ञा पुं० [स०] १ एक प्राचीन देश का नाम जो भारत के दुआ। हरिद्र । पश्चिम मे था । (किसी के मत से यह सूरत और किसी के मत सुराह्वय-संशा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का पौधा । २ देवदारु । से काठियावाड है ) । २ राजा दरशरय के एक मनी का नाम। सुरि-वि० [सं०] बहुत धनी । वडा अमीर । सुराष्ट्र-वि० जिसका राज्य अच्छा हो। सुरिय-सबा पं० [सं० सुर] इन्द्र। (डि०) । ४