पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। का नाम। सुसंगति ७०३१ सुसहाय सुसगति-मझा स्त्री॰ [स मुं+हिं० संगत या स० सुसदगति] अच्छी सुसत्या-तशा खो० [स०] कालिका पुराण के अनुसार राजा जनक की सगत । अच्छी सोहबत । सत्सग। साधुसग । एक पत्नी का नाम। सुसगम--सज्ञा पुं० [स० सुसडगम] १ उत्तम संगम या जमाव । सुसत्व-वि० [स० सुसत्त्व] १. दृढ । मजबूत । २ शूर । वीर । वहा- २ उत्तम सभास्थल या मडप (को०)। दुर [को०] । सुसंगृहीत--वि० [स० सुसडगृहीत] १ अच्छी तरह शासित या वशी- सुसन, सुसना-सज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का माग । विच्छ- भूत । जैसे, सुसगृहीत राष्ट्र । २ जिमका सम्यक् रूप ग्रहण किया तक (को॰] । गया हो। ३ अच्छी तरह न्यस्त या रखा हुआ। ४ जिसका सुमनी-सशा स्त्री॰ [देश॰] दे॰ 'सुसना'। सम्यक् सक्षेप किया हुआ हो [को०] । सुसंघ--वि० [सं० सुसन्ध] अपने वचन का पक्का । सुसबद-सज्ञा पुं॰ [स० सुशब्द] कोति । यश । (डि०) । सुसभेय-वि० [स०] उत्तम समासद् । सुसभ्य । सभाचतुर (को॰) । सुसघि-संज्ञा पु० [सं० सुसन्धि] दे० 'सुपधि' । सुसम--वि० [सं०] १ समतल । भली प्रकार चौरस । २ सुचिकरण । सुसनत--वि० [सं० सुसङगत १ उपयुक्त । उचित । वाजिव । २ जिसे खूब चिकना । ३ आकार प्रकार मे शुद्ध । सुडौल [को०] । अच्छी तरह लक्ष्य पर रखा गया हो। सुसमय--सज्ञा पुं० [स०] वे दिन जिनमे अकाल न हो । अच्छा समय । सुसपत, सुसंपद्--संज्ञा स्त्री० [स० सुसम्पत्, सुसम्पद्] अतिशय सप- सुकाल । सुभिक्ष। नता । धनाढ्यता (को०] । सुसमा --सज्ञा स्त्री॰ [स० उपमा] अग्नि । (डिं०) । सुसपन्न-वि० [स० सुसम्पन्न खूब धनाढ्य । सपत्तिशाली [को०] । सुसमाg'-सज्ञा स्त्री० [सं० सुपमा] दे॰ 'सुपमा' । सुसभाव्य-सका पु० [स० सुसन्भाव्य] रैवत मनु के एक पुत्र सुसमाहित--वि० [सं०] १ अच्छे ढग से एकत्र किया हुआ। अच्छी तरह भूपित । २ अत्यत सुदर । ३ पूरी तरह भारयुक्त अथवा ससंभाव्य-वि० जो अधिक सभाव्य या होनेवाला हो (को॰] । पूरित । ४ अत्यत एकनिष्ठ या अवहित (को०] । सुसंस्कृत-वि० [स०] १. उत्तम सस्कारवाला। सभ्य। शिष्ट । २. सुसर-सज्ञा पु० [सं० श्वसुर] दे॰ 'ससुर'। उ०-वधू ने स्वर्गवासी घृत आदि के साथ सुपक्व । ३ भली प्रकार शुद्ध किया सुसर की दोनो रानियो की समान भक्ति से वदना की। हुआ [को०]। -लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। सुस-सज्ञा स्त्री० [स० स्वस] दे० 'सुसा' । उ०-परी कामवश ताकी सुसरण-सज्ञा पुं॰ [स०] शिव का एक नाम। सुस जाके मुड दश कीने हाव भाव चित्त चाव एक वद सो। सुसरा सज्ञा पुं० [सं० श्वसुर] दे० 'ससुर'। उ०-कोई कोई दुष्ट दीप सुत नन दै सुनैनन चलाय रही जानकी निहार मन रही राजपूत अपनी लडकियो को मार डालते है कि जिसमे किसी न आनद सो। हनुमन्नाटक (शब्द०)। का सुसरा न बनना पडे । -शिवप्रसाद (शब्द॰) । सुसकना-क्रि० अ० [हिं० सिमकना] दे० 'सिसकना' । उ०--(क) विशेष--इस शब्द का प्रयोग प्राय गाली मे अधिक होता है। पालने झूलो मेरे लाल पियारे । सुसकनि की हो वलिवलि करी जैसे,—(क) सुसरे ने कम तोला है । (ख) सुसरा कही का। तिल तिल हठ न करहु जे दुलारे ।--सूर (शब्द॰) । (ख) सुसरार-सज्ञा स्त्री० [हिं० ससुराल] दे० 'ससुराल' । कपि पति काम संवार, वाली अध सुसकत परयो। तव ताही की सुसरारि-सझा स्री० [हिं० ससुराल] दे॰ 'ससुराल' । नार रघुपति सो बिनती करे।--हनुमन्नाटक (शब्द०) । (ग) ससुराल-पञ्चा सी० [सं० श्वसुरालय] ससुर का घर । ससुराल । अति कठोर दोउ काल से भरम्यो अति झझक्यो । जागि परयो सुसरित - राज्ञा स्त्री॰ [स० सु + सरित] नदियो मे श्रेष्ठ, गगा। उ०-- तह कोउ नही जिय ही जिय सुसक्यो। -सूर (शब्द॰) । गे मुनि अवध बिलोकि सुसरित नहाएउ। सतानद दस कोटि (घ) बूंघट मैं सुसकै भरै साँस ससै मुख नाह के सौहे न खोले । नाम फल पाएउ ।-तुलसी (शब्द०)। --सु दरीसर्वस्व (शब्द०)। सुसरी' -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ससुर] दे॰ 'ससुरी'। सुसकल्यो-सधा पुं० [स० शश] खरगोश । खरहा । शशा (डिं०) । सुसरी-नशा सी० [अनु॰] दे० 'सुरसुराहट', 'सुरसुरी' । सुसका --सचा पुं० [अनु॰] हुक्का । (सुनार)। सुसज्जित-वि० [सं०] भली भाँति सजा या सजाया हुअा। भली सुसतु-सशा स्त्री० [स०] ऋग्वेद के अनुसार एक नदी का नाम । भाँति शृगार किया हुआ । शोभायमान । सुसर्मा-तज्ञा पुं॰ [स० सुशर्मन् ] दे० 'सुशर्मा' । सुसताना-क्रि० अ० [फा० सुस्त + हिं० पाना (प्रत्य०)] श्रम सुसह-वज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम । मिटाना । थकावट दूर करना। विश्राम करना । आराम सुसह'--वि० १ सहज मे उठाने या सहने योग्य । जो सहज मे उठाया करना । जैसे,—इतनी दूर से आते पाते थक गए है, जरा या सहन किया जा सके। २. जो सहन कर सके। सहन- सुसता लें, तो आगे चले। शील [को सुसती--तच्या स्त्री॰ [फा० सुस्ती] दे॰ 'सुस्ती' । सुसहाय--वि० [सं०] जिसके अच्छे साथी या सहायक हो (फो०] ।