पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२

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1 सतानके संतत दुरी सतत द्रुम -वि० [म० सन्ततद्रुम] धने वृक्षोवाला (जगल)। (वन) सतमस्-सज्ञा पुं० [स० सन्तमस्] १ अधकार। तम। अध।। जो सघन वृक्षयुक्त हो । को०] । २ मोह । सततवर्षी-वि० [स० सततवपिन् ] अविरल या अटूट वृष्टि करने- सतरण'-सचा पु० [स० सन्तरण] अच्छी तरह से तरने या पार होने की किया। वाला (को०)। सतरए-वि० १ तारनेवाला। पार करनेवाला । तारक । २. नष्ट सतति-सज्ञा श्री० [म० सन्तति १ बच्चे। सतान । औलाद । २ करनेवाला । नाशक । प्रजा । रिमाया । ३ गोत्र । ४ विस्तार । प्रसार | फैलाव । सतरा-पण पुं० [पुर्त० मगतरा] एक प्रकार का बड़ा और मोठा ५ समूह । दल । झुड। ६ किसो वात का लगातार होते रहना । अविच्छिन्नता। ७ मार्कटेय पुराण के अनुसार ऋतु सतरो-सझा ० [अ० सेंटरौ] १ किसी स्थान पर पहग देनेवाला नीबू । बडो नारगी। दे० 'सगतरा' । की पत्नी का नाम जो दक्ष की कन्या थी । ८. अनुभूति (को॰) । सिपाही। पहरेदार । उ०--जव पहा तिनके ह गयो । द्वितीय सततिक-सबा पु० [स० सन्ततिक मतान । पोलाद (को॰] । सतरो यावत भयो।-रघुराज (शब्द०)। २. द्वार पर खडा सततिनिग्रह-पञ्ज्ञा पुं० [स० सन्तति निग्रहदे० 'सततिनिरोध' । होकर पहरा देनेवाला । द्वारपाल । दीवारिक । सततिनिरोध-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्ततिनिरोध। जनसंख्या को वृद्धि सतर्जन-पज्ञा पुं० [स० मन्तर्जन] १ टाट उपट करना । मनना रोकने के लिये प्रजनन रोकना। प्राकृतिक अथवा कृत्रिम करना। डराना धमकाना। २ कार्तिकेय के एक अनुचर उपायो से गर्भाधान न होने देना । का नाम । सततिपथ-मचा पु० [स० सन्ततिपथ] योनि, जिसके मार्ग से सतान सतर्जना-सच्चा सी० [सं० सन्तर्जना] सतर्जन की क्रिया । धमको फो०] । उत्पन्न होती है । स्त्री की जननेद्रिय । भग। सतन-मज्ञा पुं० [५० सन्तर्दन] भागवत के अनुसार राजा धृष्टकेतु सतितहोम -सज्ञा पुं० [सं० सन्तति होम] वैदिक काल का एक प्रकार के एक पुत्र का नाम । का यज्ञ जो सतान की कामना से किया जाता था। सतर्पक-वि० [स० सन्तर्पक] सतुष्ट या प्रसन्न करनेवाला। तृप्त सततीg-तज्ञा स्त्री० [स० सन्तति] दे० 'सतति'। उ०-सो वा करनेवाला। कायस्य के और कोऊ सततो नाही -दो सौ बावन०, भा० १, सतर्पण -मज्ञा पु० [स० सन्तर्पण] १. जो मली भाति तृप्त करता पृ० १९४॥ हो । वह जो प्रसन्नता एव सतोपदायक हो। २ अच्छी सततेयु-सञ्ज्ञा पु० [स० सन्ततेयु] भागवत के अनुसार रौद्राश्व के एक तरह तृप्त करना। प्रसन्न एव सतुष्ट करना। ३ वह पदार्थ पुत्र का नाम । जो शक्ति एव अोज का वर्धन करता हो। शक्तिवधक सतनु-सहा पु० [स० सन्तनु] पुराणानुसार राधा के साथ रहनेवाले पदार्थ । ४ एक प्रकार का चूर्ण जिसमे दाय, अनार, एक बालक का नाम । खजूर, केला, शक्कर, लाजा (लाई) का चूर्ण, मधु और घृत पडता है। सतपन'-सक्षा पु० [स० मन्तपन] १ अच्छी तरह तपने की क्रिया। सर्पित-वि० [सं० सन्तपित] सतुष्ट एव तृप्त किया हुआ (को०)। २ बहुत अधिक सताप या दुख देना। सतस्थान-पमा पु० [स० सन्तस्थान] सतो के रहने का स्थान । साधुग्रो सतपन-सक्षा पुं० [हिं० सत+पन (प्रत्य॰)] सत का भाव । सतई। का निवास स्थान | मठ। साधुता। सतान-सज्ञा पुं० [१० सन्तान] १. वालवच्चे । लड़के वाले । सतति । सतपना-सहा पु० [हिं० सत+पना (प्रत्य॰)] दे० 'सतपन" । औलाद । २ कल्पवृक्ष । देवतरु । ३ वश । कुल। ४ विस्तार । सतप्त'--वि० [स० सम् +तप्त, सन्तप्त] १ बहुत अधिक तपा हुआ। फैलाव । ५. वह प्रवाह जो अविच्छिन रूप से चलता हो। अत्यत तप्त । २ जला हुअा। दग्ध । ३ जिसे बहुत अधिक धारा । ६ प्रवध । इतजाम । ७ महाभारत के अनुसार प्राचीन- सताप हो। दुखी । पीडित । ४ विमनस् । मलीन मन। ५ बहुत काल के एक प्रकार के अस्त्र का नाम । ८ विचारों का अविच्छिन्न क्रम थका हुआ। श्रात । ६ शुष्क । मुरझाया हुआ (को०)। ७ ताप विचारधारा । ६ रग । स्नायु नस (को०)। की अधिकता से द्रवीभूत या पिघला हुआ। यौ०-सतानकम = सतति उत्पादन। सतानकर्ता = सतान पैदा यौ०-सतप्तवामीकर - तपाया हुआ या ताप की अधिकता से करनेवाला। सतानगणपति । सतानगोपाल | सताननिग्रह % द्रवीभूत स्वर्ण । सतप्तवक्षा = जिसे साँस लेने मे हृदयपीडा दे० 'सततिनिरोध' । सतानवर्धन = (१) वश बढाना । (२) होती हो। सतप्तहृदय = मानसिक पोडा से युक्त। सतान को बढानेवाला । सतानसधि । सतप्त-सञ्ज्ञा पुं० कष्ट । दुख । शोक [को०] । सतानक'-वि० [सं० सन्तानक] १ जो दूर तक व्याप्त हो । फैला सतप्तायस्-सा पुं० [सं० सन्तप्तायस् तप्त लौह । तपने के कारण हुआ। विस्तृत । २ सतान करनेवाला । विस्तार करनेवाला। लाल रंग का लोहा [को०)। ३ प्रवधक । इतजाम या व्यवस्था करनेवाला (को०)। सतानक-सक्षा पुं० १ कल्पवृक्ष । देवतरु । सतमक-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्तमक] श्वासकष्ट (को॰] । २ पुराणानुसार एक लोक जो ब्रह्मलोक से परे कहा गया है।