पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३

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का फल। घटहा। संतान गएपति ४८५६ सतोखी सतान गएपति-मज्ञा पुं० [स० सन्तान गणपति] पुराणानुसार एक सतापी-सज्ञा पु० [म० मन्तापिन्] वह जो सतप्त करता हो । सतोप- प्रकार के गणपति का नाम । देनेवाला । दुखदायी। सतान गोपाल -सक्षा पुं० [म० सन्तान गोपाल] सतति देनेवाले कृष्ण। सताप्य-वि० [स० सन्ताप्य] १ जलाने के योग्य । २. कष्ट या दुख वासुदेव कृष्ण जिनकी पूजा सतानप्राप्ति के लिये की जाती देने के योग्य । तकलीफ देने के लायक । हे किो०)। सतार-संझा पु० [स० मन्तार] १ पार करना। पार जाना । २ नदी सतानसधि-सज्ञा स्त्री॰ [म० सन्तानसन्धि] कामदकीय नीति के अनु आदि का वह छिछला स्थान जहाँ से हलकर नदी पार की सार वह सधि जो अपना लडका या लडकी देकर की जाय । जा सके। घाट । तीर्थ (को०] । (कामदक)। सतावना-म० कि० [हिं० सतापना] दे० 'सतापना'। उ०-जिव सतानिक-वि० [नं० मन्तानिक] [वि० सी० सतानिका] कल्पवृक्ष के दे जिव सतावते पलटू उनकी टेक ।-पलटू०, भा० पुष्पो से निर्मित । जैसे, हार, माला आदि [को०। १, पृ० १८। मतानिका-सया स्त्री॰ [स० सन्तानिका] १ क्षीर सागर । २ चाकू यौ०- सतार नौ = वह नौका जिससे नदी आदि पार की जाय । ४ साढी। मलाई। ५ मर्कटजाल । सुश्रुत के अनुसार ब्रबधन मे प्रयुक्त एक द्रव्य । ६. सति-सक्षा स्त्री० मि० सन्ति] १. दान । भेट । अंकोर । २ अवसान । पाकराजशेखर मे वरिणत एक प्रकार का मिष्ठान्न (को॰) । अत / समाप्ति। ७ स्कद की एक मातृका (को०) । सतो-अव्य[स० सन्ति ? प्रा० सतिय, मतिग<स० सत्क?] बदले सतानिनी-सशा स्त्री० [सं० सन्तानिनी] मलाई । साढी [को०] । मे। एवज मे | स्थान मे। उ० - उसने उसकी पसलियो मे से संतानी-सना पुं० [स० सन्तानिन्। अविच्छिन्न विचारप्रवाह का एक पसली निकाली और उसकी सती मास भर दिया। विपय या वस्तु (को०] । -दयानद (शब्द०)। सताप-मचा पुं० [स० सन्ताप] अग्नि या धूप आदि का ताप । जलन । सतो-अव्य० [प्रा० सुन्तो] से। द्वारा। उ०-सो न डोल आँच । २ दु ख । कष्ट । व्यथा। ग्लानि । ३. मानसिक देखा गजपती। राजा सत्त दत्त दुहुँ संती।-जायसी (शब्द०)। कष्ट । मनोव्यथा। पछतावा । ४. ज्वर । ५. शन्नु | दुश्मन । सतुलन-सज्ञा पु० [स० सन्तुलन] १. तौल । वजन । २. अापेक्षिक ६ दाह नाम का रोग | विशेष दे० 'दाह'-४। ७ आवेश | भार बराबर होना । ठीक अनुपात होना । वजन ठीक कायम रोप (को०)। रहना । ३ तौलने की क्रिया । यौ०-सतापकर, सतापकारक, सतापकारी=सताप देनेवाला। सतुलित वि० [स० सन्तुजित] १. ठीक ढग से तौला हुप्रा । २ समान कष्टदायक। सतापहर, सतापहारक, सतापहारी% व्यथा या अनुपात का । पूर्ण नियत्रित । जैसे,--सतुलित व्यवहार । ३. ताप का शमन करनेवाला । सयत । सुस्थिर । जसे,-सतुलित व्यक्ति । सतापन:--मज्ञा पु० [स० सन्तापन] १. मताप देने की क्रिया । जलाना। सतुषित--सञ्ज्ञा पुं० [स० मन्तुपित] ललितविस्तर के अनुसार एक २ बहुत अधिक कष्ट या दुख देना। ३ कामदेव के पाँच देवपुत्र का नाम । वागो मे से एक वारण का नाम । ४ पुराणानुसार एक प्रकार का अस्त्र जिसके प्रयोग से शत्रु को सताप होना माना जाता सतुष्ट-वि० [म० मन्तुष्ट] १ जिपका सतोप हो गया हो। जिसकी हे । ५ आवेग। उत्तेजन । रोप (को०)। ६ शिव का एक तृप्ति हो गई हो । तृप्त । २ जो मान गया हो। जो राजी अनुचर (को०) । ७. एक बालग्रह (को॰) । हो गया हो। जैसे -इन्हे किसी तरह समझा बुझाकर सतुष्ट कर लो, फिर भव काम हो जायगा। ३ प्रसन्न । खुश (को०)। सतापन-वि० १ ताप पहुंचानेवाला। जलानेवाला । २ दुख देने- वाला । कष्ट पहुंचानेवाला । सतुष्टि -सशा स्त्री० [स० सन्तुष्टि] मतुष्ट होने का भाव । २ इच्छा की पूर्ति । तृप्ति । २. प्रसन्नता [को०] । सतापना-क्रि० स० [स० सन्तापन] सताप देना । दुख देना । कप्ट पहुँचाना । सताना । उ०-जाको काम क्रोध नित व्याप । सतृएए-वि० [म० सम् +तरण] १ परम्पर बँधा हुअा या सलग्न । अरु पुनि लोभ सदा सतापं । ताहि असाधु कहत कवि सोई । जुडा हुआ । २. आच्छादित । ढंका हुआ (को०] । साधु भेष धरि साधु न होई । —सूर (शब्द॰) । सतृप्त-वि० [स० सम् +तल] पूर्ण रूप मे तृप्त या अघाया हुआ सतापवत्-सहा पु० [सं० सन्तापवत् सताप या कष्ट से युक्त । जिसे सतृप्ति-मज्ञा स्त्री० [सं० गम् +तति] पूर्ण सतुष्ट होने का भाव । सताप हो (को०] । सतुष्टि। सतापित-वि० [१० सन्तापित] १ जिसे बहुत मताप पहुंचाया गया संतोखg-मज्ञा पुं० [सं० सन्तोप] २० 'मतोप' । हो । पीडित । सत-त । २. तपाया हुआ । जलाया हुअा. (को०)। सतोखी-वि० [म० सन्तोपिन] दे० 'सतोपो' ।