पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२४

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सूझ सूचीवना ७०४४ मूचीवक्त्रा-मशनी० [म०] वह योनि जिसका छेद इतना छोटा हो सूजनावर-क्रि० अ० [हिं० सूझना] स्झना। दिखाई देना। उ०-- कि वह पृरुप के ममग के योग्य न हो। वैद्यक के अनुसार यह गुरुदेव विना नहि मारग सूजय, गुरु विन भक्ति न जाने ।- बीस प्रकार के योनिगेगो में से एक है। सुदर ग्र०, भा० १ (भू०), पृ० ११७ । सूचीब्यूह-सज्ञा पु० [८०] कौटिल्य द्वारा निर्दिष्ट वह व्यूह जिसमे सूजनी -सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'सुजनी' । मैनिक एक दूसरे के पीछे खडे किए गए हो। सूजा--सज्ञा पु० [सं० सूची, हिं० सूई, सूजी] १ बडी मोटी सूई। सूचीसूत्र -सज्ञा पु० [स०] धागा। दे० 'सूचिमूत्र' [को० । सूया। उ--तन कर गुन औ मन कर सूजा सब्द परोहन सूच्छम वि० [म० नक्ष्म] दे० 'मूक्ष्म' । उ०--ब्रह्म लौ मूच्छम हे भारत ।--कबीर श०, भा० ३, पृ० १० । २ लोहे का एक कटि राधे कि, देखी न काहू मुनी मुन राखी। सुदरीसर्वस्व प्रोजार जिसका एक सिरा नुकीला और दूसरा चिपटा और (शब्द०)। छिदा हुअा होता है। इससे कुचबद लोग कूचे को छेदकर मूच्य---वि० [सं०] १ मूनना के योग्य । जनाने लायक । २ जो व्यजित बाँधते है। ३ रेशम फेरनेवालो का सूजे के आकार का लोहे हो । व्यग्य । जैसे, मूच्य अथ । का एक औजार जो 'मझेरू' मे लगा रहता है। ४ खूटा जो सूच्यग्र-मग पु० [म०] १ सुइ का अग्रभाग। सूई की नोक । २ छकडा गाडी के पीछे की ओर उसे टिकाने के लिये लगाया कटक । काटा (को०)। ३ सूई की नोक के बराबर कोई भी जाता है। वस्तु । (लश०)। सूजाक--सज्ञा पुं॰ [फा० सूजाक] मूर्वेद्रिय का एक प्रदाहयुक्त रोग जो सूच्यग्रविद्ध -वि० [सं०] कांटा या सूई की नोक मे छेदा हुआ। दूपित लिंग और योनि के ससर्ग से उत्पन्न होता है। प्रौपस- सूच्यग्रस्तभ-मज्ञा पुं० [म. मूच्यग्रस्ता म] मीनार । गिक प्रमेह । सूच्यग्रस्थू नक-सरा पु० [स०] एक प्रकार का तृण। जूर्णा । विशेष इस रोग मे लिंग का मुंह और छिद्र सूज जाता है, ऊपर उलूक । उलप। की खाल सिमट जाती है तथा उममे खुजली और पीडा होती सूच्याकार-वि० [म० मूची + ग्राकार] सूई के आकार का । जो लबा है । मूत्रनाली मे बहुत जलन होती है और उसे दबाने से सफेद और नुकीला हो। रग का गाढा और लसीला मवाद निकलता है। यह पहली सूच्यार्य-सञ्ज्ञा पुं० [म०] माहित्य में किसी पद आदि का वह अर्थ जो अवस्था है। इसके बाद मूत्रनाली मे घाव हो जाता है, जिससे शब्दो की यजना शक्ति से जाना जाना है। मूत्रत्याग करने के समय अत्यन कष्ट और पीडा होती है। इद्रिय के छेद मे से पीव के समान पीला गाढा या कभी कभी सूच्याम्य'--सज्ञा पु० [सं०] चूहा । मूपिक । पतला स्राव होने लगता है। शरीर के भिन्न भिन्न अगो मे पीडा मूच्यास्य--वि० [स०] जिमका मुंह मूई की तरह पतला और होने लगती है। कभी कभी पेशाव बद हो जाना है या रक्तस्राव नुकीला हो। होने लगता है। स्त्रियो को भी इससे बहुत कष्ट होता है, पर मूच्याह्व-ज्ञा पुं० [म०] शिरियारी। सितिवर । सुनिपएणक शाक । उतना नहीं जितना पुरुपो को होता है। इसका प्रभाव गर्भाशय सूछम-वि० [सं० मूक्ष्म दे० 'सूक्ष्म' । पर भी पड़ता है जिससे स्त्रियाँ बध्या हो जाती हैं। यौ०--सूछमतर। सूजी'-सज्ञा स्त्री० [म० शुचि ( = शुद्व) या स० सूची ( = सूई सा सूछमतर--वि० [म० मूक्ष्मतर] अत्यत सूक्ष्म । उ०--किधौं वासुकी महीन )] गेहूँ का दरदरा पाटा जो हनुमा, लड्डू तथा दूसरे वधु वासु कीनो रथ ऊपर । आदि शक्ति की शक्ति किधी पकवान बनाने के काम मे पाता है। सोहति सूछमतर ।-गिरिधर (शब्द०)। सूजी --सञ्ज्ञा स्त्री० [म० सूची] १ सूई। उ०--ता दिन सो नेह भरे, सूछिम-वि० [म० सूक्ष्म] दे० 'सक्षम'। उ०-~-जाके जैसी पीर है नित मेरे गेह प्राइ गूथन न देत कहै मै ही देऊँगी बनाय । वर- तैसी करड पुकार। को सूछिम को महज मे को मिरतक तेहि ज्यो न मानै केह मोहि लाग डर यही कमल मे कर कहूँ सूजी वार।-दादू (शब्द०)। मति गडि जाय । --काव्यकलाप (शब्द०)। २ वह सूमा जिससे मूगध-सा सी० [स० मुगन्ध] मुगव । खाव् । (डि०) । गडेरिए लोग कवल की पट्टियाँ सीते है । सूजा--मशा ० [हिं० मूझ] दे० 'सूझ'। उ०--मन मांही मव सूज 1-सञ्ज्ञा पुं० [स० सूची] कपडा सीनेवाला । दरजी। सूचिक । ज गई, वाहरि के बधन सव नापं ।--रामानद०, पृ० ५३ । उ०--एक सूजी ने आप दडवत कर खडे होकर जोड के कहा, सूजर--नरा पुं० [म० मूच ( = दर्भाकुर)] मूजा का लघु रूप । सूई । • दया कर कहिए तो वागे पहराऊं। लल्ल (शब्द०)। सूजा--सजा की० [हिं० मूजना] दे॰ 'मूजन'। सूजी'-ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का सरेस जो मॉड और चूने के सूजन--1 बी० [हिं० मूजना] १ सूजने की निया या भाव । २ मल से बनता है और बाजो के पुर्जे जोडने के काम मे आता है। स्जने की अवस्था । पुलाव । शोय । सूझ-मज्ञा स्त्री० [हिं० सूझना] १ मूझने का भाव। २ दृष्टि । नजर। सूजना'--कि अ० [फा० सोजिश, तुल० म० शोय] रोग, चोट या यौ०--मूझबूझ = ममझ । अक्ल । वानप्रकोप आदि के कारण शरीर के किसी अश का फूलना। ३ मन मे उत्पन्न होनेवालो अनूठी कल्पना। उद्भावना। उपज । सोय होना। जैसे-कवियो की सूझ। सूजी. महाराज ।