पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३३

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1 सूमलू ७०५३ सूरज सूमलू-सज्ञा पु० [ देश० ] चित्रा या चीता नामक पौधा । सूर-सज्ञा पुं० [स स० शूल, प्रा० सूल ( = सूर)] दे॰ 'शूल' । सूयाँ-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] टूटी हुई चारपाई की रस्सी। उ०-(क) कर बरछी विप भरी सूरसुत सूर फिरावत ।- सूमारग@-सचा पु० [ स० सुमार्ग ] सत्पथ । अच्छा मार्ग। उ०- गोपाल ( शब्द०)। ( ख ) दादू सिख स्रवनन सुना सुमिरत 'भक्त काम देखि चलहि मूमारग, भजन नाहि मन पानी ।- लागा सूर ।-दाद् ० (शब्द०)। जग० श०, भा० २, पृ०६१। सूर-भशा पु० [ देश० ] पठानो की एक जाति । जैसे---शेरशाह मूर । उ०-जाति सूर औ खाँडै सूर।।-जायसी (शब्द०)। सूमी -सा पु० [ देशा० ] एक बहुत बडा पेड जो मध्य तथा दक्षिण भारत के जगलो में होता है।

  • ---सज्ञा पुं॰ [ म० सूर ( = सूर्य) ] हठयोग साधना मे चद्रमा

विशेष--इसकी लकडी इमारतो मे लगती और मेज, कुर्सी आदि मे स्रवित होनेवाले अमृत का शोपण करनेवाला द्वादश कला- बनाने के काम मे पाती है। इसे रोहन और सोहन भी कहते हैं। युक्त मूर्य । पिंगला नाडी का दूसरा नाम । उ०--उलटिवा सूर गगन भेदन किया, नवग्रह डक छेदन किया, पोविया चद सूथ-सशा पु० [स०] १ सोमरस निकालने की क्रिया । २ यज्ञ। जहाँ कला सारी । -रामानद०, पृ०४। सूरजान - सा पु० [ फा० मूरिन्जान ] केसर की जाति का एक सूर' --सा पुं० [अ०] नरसिंहा नामक बाजा । उ०-~-कब्र मे सोए है पौधा जिसका कद दवा के काम में आता है। महशर का नही खटका 'रसा' । चौकनेवाले हे कव हम सूर की विशेष-यह पश्चिमी हिमालय के ममशीतोष्ण प्रदेशो मे पहाडो आवाज से। की ढाल पर घासो के बीच उगता है और एक बालिश्त ऊँचा विशेप-मुसलमानो के अनुसार हजरत असाफील प्रलय या कया- होता है । फारस मे भी यह बहुत होता है। इसमे बहुत कम मत के दिन मुरदो को जिलाने के लिये इसे फूंककर बजाते है। पत्ते होते है और प्राय फूलो के साथ निकलते हैं। फूल लवे सूर-सहा पु० [फा०] १ लाल वर्ण । लाल रग। २ प्रसन्नता। होते है और सीका मे लगते हैं। इसकी जड मे लहसुन के मोद । हर्प । ३. अफगानिस्तान का एक नगर और एक जाति समान, पर उससे वडा कद होता है जो कडवा और मीठा दो (को०]। प्रकार का होता है। कडवे को 'सूरजान तल्ख' और मीठे को 'पूरजान शीरी' कहते है। मोटा कद फारस से आता है और सूरकद-सज्ञा पुं॰ [ सं० सूरकन्द ] जमीकद । सूरन । ओल । खाने की दवा मे काम आता है। कडवा कद केवल तेल आदि सूरकात-सञ्ज्ञा पुं० [ स० सूरकान्त ] दे॰ 'सूर्यकात' । मे मिलाकर मालिश के काम आता है । इसके बीज विषले होते सूरकुमार-सज्ञा पु० [ स० शूर ( = सूरसेन ) कुमार (= पुत्र)] है, इससे बडी सावधानी से थोडी मात्रा में दिए जाते है। वसुदेव। उ-तेज रूप ये सूरकुमारा। जिमि उदयस्थ यूनानी चिकित्मा के अनुसार सूरजान स्खा, रुचिकर तथा सूर उजियारा ।-गि० दास (शब्द०)। वात, कफ, पाडुरोग, प्लीहा, सधिवात आदि को दूर करनेवाला सूरकृत--सञ्ज्ञा पु० [ स० ] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । माना जाता है। सूरचक्षा-वि० [ स० सूरचक्षस् ] सूर्य की तरह ज्योतिवाला (को०] । सूर-मशा पु० [ म०] [खी० सूरी ] १ सूर्य । उ०-सूर उदय सूरचक्षुग-वि० [स०] दे० 'सूरनक्षा' [को०] । आए रही दृगन साँझ सी फूलि ।-विहारी (शब्द॰) । २ अर्कवृक्ष । पाक। मदार । ३ पडित । प्राचार्य । ४ मोम सूरज-सज्ञा पुं० [स० सूर्य ] १ सूर्य । विशेष दे० 'सूर्य' । उ०- (को०) । ५ जैन धर्म मे वर्तमान अवसर्पिणी के सत्रहवे अर्हत् दरिया मूरज ऊगिया, नैन खुला भरपूर । जिन अधे देखा नही, तिन ने माहव दूर-दरिया० वानी, ३७ । कुथु के पिता का नाम । ६ ममूर । ७ राजा । नायक (को०) । क्रि० प्र०-ग्रस्त होना। --उगना ।-उदय होना ।-निकलना ।- सूर'-मग पु० [देशश्त] १ भक्त कवि मूरदास । उ०-कछु सछेप सूर बरनत अव लघु मति दुर्वल वाल :--सूर (शब्द॰) । २ नेत्र- डूबना।-छिपना। विहीन व्यक्ति । दृष्टिरहित व्यक्ति । प्रधा। मुहा०-सूरज को चिराग दिखाना = दे० 'सूरज को दीपक दिखाना' । उ०~-पागे मेरे फरोग पाना, सूरज को है चिराग दिखाना । विशेष--सूरदास अधे थे, इससे 'अधा' के अर्थ मे यह शब्द --फिसाना, भा० ३, पृ० ६२४ । सूरज पर थूकना = प्रचलित हो गया है। किसी निर्दीप या साधु व्यक्ति पर लाछन लगाना जिसके ३ छप्पय छद के ७१ भेदो मे से ५५वे भेद का नाम जिसमे १६ कारण स्वय लाछित होना पडे । गुरु, १२० लघु, कुल १३६ वर्ण और १५२ मानाएं होती है। सूरज को दीपक दिखाना- (१) जो स्वय अत्यत गुणवान् हो, उसे कुछ सूरा-मज्ञा पु० [स० शूर, प्रा० सूर, अथवा स० सूर( = नायक)] बतलाना । (२) जो स्वय विख्यात हो उसका परिचय देना। शूरवीर । वहादुर । उ०-सूर समर करनी करहिं कहिं न सूरज पर धूल फेकना = किसी निर्दोष या साधु व्यक्ति पर जनावहिं पाप ।-तुलसी (शब्द०)। कलक लगाना। सूर-सञ्चा पु० [स० शूकर, प्रा० सूअर ] १ सूअर । २. भूरे रंग २. एक प्रकार का गोदना जो स्त्रियाँ दाहिने हाथ मे गुदाती है। का घोडा। ३ दे० 'सूरदास'। हि० २०१०-५३