पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३२

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सूपट ७०५२ सूमड़ा सूपटg--सज्ञा पुं० [स० सम्पुट] दे० 'सपुट'। उ०--प्रेम कवल जल सूफिया-सज्ञा पुं० [अ० सूफिया] सूफी का बहुवचन । भीतर, प्रेम भंवर लै बास । होत प्रात सूपट खुल, भान तेज सूफियाना--वि० [फा० सूफियानह] १ सूफी लोगो की तरह । २ परगास । -सत० दरिया, पृ० ४३ । अच्छे ढग या प्रकृति का। ३ हलके रंग का [को०] । सूपडा--सज्ञा पुं० [हिं० सूप + डा (प्रत्य॰] सूप । छाज ।(डिं०)। सूफी'-सम्रा पुं० [फा० सुफी] [बहुव० सुफिया] १ मुसलमानो का सूपतीर्थ-वि० [स०] दे० 'सूपतीर्थ्य' । एक धार्मिक संप्रदाय । इस सप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी सूपतीर्थ्य-वि० [सं०] स्नान के लिये अच्छी सीढियो से युक्त [को०। होते हैं और साधारण मुसलमानो की अपेक्षा अधिक उदार सूपवूपक-सज्ञा पुं० [सं०] हीग । विचार के होते है । २ इस सप्रदाय को माननेवाला व्यक्ति (को॰) । सूपधूपन--सज्ञा ० [सं०] होग। सूफी-वि० १ ऊनी वस्त्र पहननेवाला। २ साफ। पवित्र । ३ सूपनखा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० शूर्पणखा] दे० 'शूर्पणखा'। उ०-सूपनखा निरपराध । निर्दोष। रावण के वहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जसि अहिनी ।- सूब-सज्ञा पुं॰ [देश॰] ताँबा । (सुनार)। तुलसी (शब्द०)। सूबडा-सञ्ज्ञा पुं० [स० सुवर्ण] वह चाँदी जिसमे ताँव और जस्ते का सूपना-सञ्ज्ञा पुं० [स० स्वप्न, प्रा० सुपण, पुहिं० सुपन] दे० मेल हो । (सुनार)। 'सुपना' 130--जागत मे एक सूपना मुझको पडा है देख ।- सूबडी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पैसे का आठवां भाग । दमडी । (सुनार) । पलटू० पृ०७॥ सूबम-वि० [स० स्ववश] अपने वश या अधिकार मे। स्वाधीन । सूपपर्णी-सज्ञा ओ० [सं०] बनमूंग । मुगवन । मुद्गपर्णी । उ०-दादू रावत राजा राम का, कदे न विसारी नांव । आत्मा सूपरस-सज्ञा पुं॰ [स०] सूप का स्वाद । रसे का जायका । राम सँभालिए तो सूबस काया गाँव । -दादू०, पृ० ३६ । सूपशास्त्र-सज्ञा पुं॰ [स०] भोजन बनाने की कला । पाकशास्त्र । सूबा-सञ्ज्ञा पु० [फा० सूब] १ किसी देश का कोई भाग या खड । सूपश्रीष्ट--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मूंग । मुद्ग । प्रात । प्रदेश । सूपससृष्ट-वि० [सं०] मसालेदार । मसाले से युक्त । यौ०-सूबेदार । सुपपास्त्र-सज्ञा पुं० [सं० सूपशास्त्र] पाकशास्त्र । सूदशास्त्र । २ दे० 'सूबेदार'। उ०—कीन्हो समर वीर परिपाटी। लीन्हों उ.-भांति अनेक भई जेवनारा। सूपसास्त्र जस किछु सूवा का सिर काटी ।-रघुराज (शब्द॰) । व्यवहारा ।-मानस, १1881 सूबेदार -संज्ञा पुं० [फा० सूव+दार (प्रत्य॰)] १ किसी सूबे या सूपस्थान-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पाकशाला । रसोईघर । प्रात का वडा अफसर या शासक । प्रादेशिक शासक । २ एक सूपाग-सज्ञा पु० [सं० सूपाडग] होग। हिंगु । छोटा फौजी ओहदा। सूपा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० स्प] सूप । छाज । शूर्प । सूबेदार मेजर-सज्ञा पु० [फा०] सूवेदार + अ० मेजर] फौज का एक सूपाय--सज्ञा पुं॰ [स०] सुदर ढग, तरीका या उपाय [को॰] । छोटा अफसर। सूपिक---सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ पकी हुई दाल या रसा आदि । २ सूबेदारी-सज्ञा स्त्री० [फा०] १ सूवेदार का ओहदा या पद । २ सूपकार । रसोइया। सूवेदार का काम । ३ सूवेदार होने की अवस्था। सूपीय-वि० [स०] दे० 'सूप्य' । सूभर-वि० [स० शुभ्र] १ सुदर। दिव्य । उ०-दादू सहज सूपोदन--सज्ञा पुं॰ [स० सूप + प्रोदन] दाल और भात । उ० सरोवर प्रात्मा, हसा करै कलोल । सुख सागर सूभर भरचा, सूपोदन सुरभी सरपि सुदर स्वादु पुनीत । छन महुँ सबके परसि मुक्ताहल मन मोल ।-दादू० वानी, पृ० ६५। २ श्वेत । ये चतुर सुपार विनीत । -मानस, १।३२८ । सफेद । उ०--हस सरोवर तहाँ रमै सूभर हरि जल नीर । प्रानी सूप्य-वि० [स०] १ दाल या रसे के लायक । २ सूप सबधी। आप पखालिए निमल सदा हो सरीर ।-दादू (शब्द॰) । सूप्य-सञ्ज्ञा पु० रसेदार खाद्य पदार्थ । सूम--सज्ञा पु० [सं०] १ दूध । २ जल । ३. आकाश । ४ स्वर्ग । सूप्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] मसूर या अरहर की दाल [को०] । सूम-सज्ञा पुं० फूल । पुप्प । (डि०) । सूफ-सञ्ज्ञा पु० [अ० सूफ ] १ पश्म। ऊन । २ वह लत्ता जो देशी सूम-वि० [अ० शूम (= अशुभ)] कृपण । कजूस । वखील । उ०-~- काली स्याहीवाली दावात मे डाला जाता है। ३ गोटा बुनने के मरै सूम जजमान मरै कटखन्ना टट्ट । मरै कर्कसा नारि मरै की लिये बाना (को०)। ४ घाव के भीतर भरा जानेवाला वस्त्र खसम निखटू ।-गिरिधरदास (शब्द०)। जिसे वत्ती भी कहते हैं । ५ बकरी या भेड के बाल (को०)। सूम--सज्ञा पु० [अ०] लशुन । लहसुन [को०] । सूफ-मज्ञा पु० [हिं० सूप] दे० 'मूप' । सूमडा-वि० [हिं० मूम + डा (प्रत्य॰) । दे० 'सूम' । उ०-सूमडे सूफार-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सूफार] वाण का वह हिस्सा जिसे प्रत्यचा पर ताड आकाश मे जा अपने कलकलाए।-प्रेमघन०, भा० २ रखकर चुटकी से खीचकर चलाते हैं [को०] । पृ०१६।