पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३६

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सूरपनखा ७०५६ geait खाज, रक्तविकार और कोढवालो के लिये इसका खाना सूरसुत--मञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ शनिग्रह। २ सुग्रीव । निपिद्ध है। सूरसुता-सा बी० [स०] मूत्र की पुनी यमुना। उ०--ज्योति जगे पर्या-शूरण । सूरकद । कदल । अर्शोघ्नि, त्रादि । जमुना सी लग जग लोचन लालित पाप विपोहै । मूरसुता शुभ मूरपनखा-सञ्चा स्त्री० [सं० शूर्प (हिं० सूरप) + स० नखा] दे० 'शूर्प सगम तु ग तरग तरग तरग सी सोहै। -केशव (शब्द०)। नखा'। उ०-सूरपनपहु तहँहि चलि पाई। काटि थवन अरु सूरसूत--पज्ञा पुं० [स०] सूर्य के मारथि अरण । नाक भगाई।-पद्माकर (शब्द०)। सूरसेन-यज्ञा पुं० [सं० शूरसेन] दे॰ 'शूरसेन' । सूरपुत्र-सशा पु० [स०] (सूर्य के पुत्र ) मुग्रीव। उ० - म्रपुत्र तब सूरसेनपुर--सज्ञा पु० [स० शूरमेन + पुर] मथुरा। उ०--चिन्नसेन जीवन जान्यो। बालि जोर बहु भांति वनान्यो ।केणव नृप चल्यो सेन सह सूरसेन पुर। झपटि चल जिमि मेन लेन जे (शब्द॰) । २ शनि (को०) । ३ कर्ण का एक नाम (को०)। देन चेन उर ।--गोपाल (शब्द०)। सूरबार-सञ्ज्ञा पु० [देशज] पायजामा। सूथन । सूरा--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सु डी] एक प्रकार का कीडा जो अनाज के गोले सुरबीर-सञ्ज्ञा पु० [स० शूरवीर] दे० 'शूरवीर'। मे पाया जाता है । यह किसी प्रकार की हानि नही पहुँचाता । सूरबीरता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० शूरता + वीरता] दे० 'शूरता'। उ०-- अनाज के व्यापारी इसे शुभ समझते हैं। तब वा समै सूरवीरता को आवेस रहत है। --दो सौ बावन०, सूरा'---मञ्ज्ञा पु० [अ० सूरह,] कुरान का कोई एक प्रकरण । भा०२, पृ०६६ । सूराख-मशा पु० [फा० सूराख] १ छेद । छिद्र । २. शाला । खाना । सूरनस-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्राचीन जनपद और उसके निवासी । घर । (लश०)। सूरमा-सज्ञा पुं० [स० शूरमानो] योद्धा । वीर । बहादुर। उ०- सूरातन--सज्ञा पु० [स० शूरत्व, प्रा० सूरत्तण] वीरता। उ०- और बहुत उमडे सुभट कहाँ कहाँ लगि नाउ। उतै समद के (क) सुदर मूरातन विना बात कहै मुख कोरि। सूरातन जव सूरमा भिरे रोप रन पाउँ ।--लालकवि (शब्द०)। जाणिए जाइ देत दल मोरि।-सुदर ग्र०, भा॰ २, सूरमापन-सज्ञा पुं० [हिं० सूरमा+पन (प्रत्य॰)] वीरत्व । शूरता। पृ० ७३६ । (ख) सूरातन मूराँ चढे, सत सतिया मम दोप।- बहादुरी। बाँकी० ग्र०, भा० १, पृ० ३ । सूरमुखी-सज्ञा पु० [स०] सूर्यमुखी शीशा। उ०-बहु साँग सूरिंजान--सञ्ज्ञा पु० [फा० सूरिन्जान] दे० 'सूरजान' । भल्लगन मधि लसत, सूरमुखी रय छनवर । मनु चले जात मुनि सूरि-सशा पु० [स०] १ यज्ञ करानेवाला। ऋत्विज् । २ पडित । दड चढि उडगन मैं ससि दिवसकर ।--गोपाल (शब्द०)। विद्वान् । प्राचार्य । (विशेषकर जैनाचार्यों के नामो के पीछे यह सूरमुखीमनि-सञ्ज्ञा पु० [स० सूर्यमुखीमणि] सूर्यकातमणि । शब्द उपाधिस्वरूप प्रयुक्त होता है)। ३ वृहस्पति का एक उ०-मुरछल चारहु अोर अमल बहु भृत्य फिरविहिं । सूरमुखी- नाम। ४ कृष्ण का नाम । ५ यादव । ६ अर्चना, पूजन मनि जटिन अनेकन सोभा पावहिं ।-गिरिधरदास (शब्द०)। करनेवाला व्यक्ति । ७ सूर्य । सूरया--सञ्ज्ञा पु० [स० मूर्य, प्रा० सूरिअ] दे० 'सूर्य'। उ०-(क) सूरिवाँ@--सज्ञा पुं० [हिं० मूरमा] दे० 'मूरमा' । उ०-सतगुरु सांचा सूरय करि के देखिए तव आरसी होय । सूरय मूरय सी हसे सूरिवाँ, सवद जु बाह्या एक । लागत ही मे मिलि गया, पड्या कलेज धेक ।-कवीर ग्र०, पृ०१ । सु दर समझे कोय।-सदर० ग्र०, भा॰ २, पृ० ८१२ । (ख) तीनि लोक मैं भया तमासा सूरय कियो सकल अधेर। सूरी'-सज्ञा पुं० [स० सूरिन्] [स्त्री० सूरिणी] १ विद्वान् । पडित् । मूरख होई सु अर्थहि पार्व सु दर कहै शब्द मैं फेर ।--सुदर प्राचार्य । ग्र०, मा०२, पृ० ५१३ । सूरी-- २--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ विदुपी । पडिता । २ सूर्य की पत्नी। सूरवाल, सूरवा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सूरमा] दे॰ 'सूरमा' । उ० ३ कुती। ४ राई। राजसर्पप। जन हरिया गुरु मूरवा कर शब्द की चोट । सिख सूरा तन जो सूरी@-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मूली] दे० 'सूली' । उ०--नृप कह लहे पानि धरै नहिं प्रोट ।-राम० धर्म०, पृ० ५४ । देहु चोर कह सूरी । सतवेप यह चोर कसरी। तुरत दूत पुर सूरस- सज्ञा पु० [देश॰] परिया की लकडी। (जुलाहा)। वाहिर लाई । मूरी मह दिय मुनिहिं चढ़ाई।--रघुराज सूरसागर--सज्ञा पु० [हि० सूर + सागर] हिंदी के महाकवि (शब्द०)। सूरदासकृत ग्रथ का नाम जिसमे भागवत के आधार पर सूरी --सज्ञा पु० [सं० शूल] भाला। उ०--पटक्यो कस ताहि गति श्रीकृष्णलीला अनेक राग रागिनियो मे वणित है। रूरी। धेनुक भिर्यो तबै गहि सूरी।-गोपाल (शब्द॰) । सूरसावत, सूरसॉवत-सञ्ज्ञा पुं० [स० शूर + सामन्त] १ युद्धमनी। सूरुज-सज्ञा पु० [स० सूर्य] दे० 'सूर्य' । २ नायक । सरदार। उ०-धनुविजुरी चमकाय वान जल सूरुवॉल--सज्ञा पु० [हिं० सूरमा] दे० 'सूरमा' । उ०--जीवहिं का वरपि अमोलो। गरजि जलद सम जलद सूरसात यह ससा पडा को काको तारहिं । दादू सोई सूरुवा जो आप बोलो।-गिरिधरदास (शब्द०)। उवारहिं । -दादू० (शब्द०)।