से गरा ७०६५ सेंदुरबहोरा सेंगरा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] पोख्ने बाँस का वह डडा जिसमे लटकाकर से तमेत-क्रि० वि० [हिं० से त + मेंत (अनु०) १ विना दाम दिए। भागे पत्थर या धरन एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते है। मुफ्त मे । फोकट मे । सेत मे । उ०—(क) कलकी और मलीन सेंटा -सज्ञा स्त्री० [स० स्रोत] धार । स्रोत । उ०-कुछ इधर उधर बहुत मै सेतैमेत बिकाऊँ।-सूर (शब्द॰) । (ख) नाम रतन से अकस्मात्, जल की सेंटो के भी फुहार । हे खनक किए जा धन मुझ मे, खान खुली घट माहिं । सेतमेत ही देत हो, गाहक कूपखनन तू यहाँ बीच मे ही न हार |--दैनिकी, पृ० ३१ । कोई नाहिं ।--सतवानी०, पृ० ५। (ग) से तमेत के यश का २ गाय की छीमी से निकली हुई दूध की धार । भागी प्रिये, तुम्हारा है भर्ता।-साकेत, पृ० ३७६ । २ वृथा । सेठा--सज्ञा पुं॰ [देश॰] १ मुंज या सरकडे के सीके का निचला मोटा फजूल । निष्प्रयोजन । बेमतलब । जैसे--क्यो से तमे त झगडा मजबूत हिस्सा जो मोढे आदि बनाने के काम मे आता है । मोल लेते हो? कन्ना। २ एक प्रकार की घास जो छप्पर छाने के काम मे सेति, सेती'-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सेंत] दे० 'सेत' । उ० साई सेति न पाइए, आती है । ३ जुलाहो की वह पोली लकडी जिसमे ऊरी फंसाई वातन मिल न के य । कबीर सौदा नाम का, सिर विन कवहुँ जाती है। डोंड । न होय । (ख) एक तुम्है प्रभु चाही राज । भूपति रक सेंति सें ठा-वि० [स० सुण्ठु या स्व + इष्ट] [स्त्री० सेंठी] १ दृढतापूर्वक । नहिं पूछौ चरन तुम्हार वारयो काज ।-मलूक०, पृ०६। ठीक । मजबूत । श्रेष्ठ । उ०-सब सुख छाँड भज्यो इक साँई से ति, सेतो'–प्रत्य॰ [प्रा० सुतो, पचमी विभक्ति] पुरानी हिंदी की राम नाम लिव लागी। सूरवीर सेठा पग रोप्या जरा मरण भव करण और अपादान की विभक्ति । से । उ०-(क) तोहि भागी।--राम० धर्म०, पृ० ४५ । (ख) परगह ले बाँधी पाँ, पीर जो प्रेम की पाका सेती खेल । -कवीर (शब्द॰) । (ख) सेठी गूपर साथ । हजारो सारो हुकम, हुप्रो रंगीली हाथ । हिंदू व्रत एकादसि साध दूध सिंघाडा सेती। कबीर (शब्द०)। -वांकी० ग्र०, भा० २, पृ० १११२ इच्छित । इष्ट । अभि- (ग) राजा से ति कुंवर सब कहही। अस अस मच्छ समुद मह लपित । उ०-खोजी खोज पकडिया सेठा। सब सता माही अहही।-जायसी (शब्द०)। (घ) सजीवन तब कहिं पढाई। मिलि बेठा।-राम० धर्म०, पृ० २०८ । ता से ती यो कह्यो समुझाई।--सूर (शब्द०)। सेड़, सेंढ-सज्ञा पुं० [सं० सेन ( = वधन, निगड) अथवा देश.] एक से था -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सेठा] दे० 'सेठा' । प्रकार का खनिज पदार्थ जिसका व्यवहार सुनार करते है। उ०—राज्य के विभिन्न भागो मे कोयला, मैंगनीज, सिलिका, सेंड से थी।--सज्ञा स्त्री० [स० शक्ति] वरछी। भाला। शक्ति शर्वला। आदि अनेक खनिज पदार्थ विपुल मात्रा में पाए जाते है।-- उ०-इद्रजीत लीनी जव से थी देवन हहा करयो । छूटी विज्जु शुक्ल अभि० ग्र०, पृ० १६ । राशि वह मानो भूतल वधु परयो।-सूर (शब्द०)। सेंत-सज्ञा स्त्री० [स० सहति (= किफायत, समूह, राशि) या देश०] से दा--सच्चा स्त्री० [हिं० सेध] दे० 'सेध' । १ कुछ व्यय का न होना। पास का कुछ न लगना । कुछ खर्च सेंदुर-सञ्ज्ञा पु० [स० सिंदूर] ईगुर की बुकनी। सिंदूर । उ०- न होना । २ @ समूह। राशि । ढेर । उ०-अपनो गाँव लेहु (क) मांग मै सेंदुर सोहि रह्यो गिरधारन है उपमा न तिहूँ पुर। नंदरानी। बडे वाप की बेटी तातें पूतहि भले पढावति बानी।" मानो मनोज की लागी कृपान, परयो कटि बीच ते राहु वहादुर सुनु मैया याके गुन मोसो, इन मोहि लियो बुलाई। दधि मे -सुदरीसर्वस्व (शब्द॰) । (ख) बिन से दुर जानउँ परी से ति की चीटी, मोत सर्व कढाई।—सूर (शब्द०)। दिया। उँजियर पय रइनि मँह किया।-जायसी (शब्द०) मुहा०-सेंत का = (१) जिसमे कुछ दाम न लगा हो। जो बिना विशेष-सौभाग्यवती हिंदू स्त्रियाँ इसे मांग मे भरती है। 4 मूल्य दिए मिले । जिसके मिलने मे कुछ खर्च न हो। मुफ्त सौभाग्य का चिह्न माना जाता है । विवाह के समय मे वर काय का । जैसे—(क) सेन का सौदा नही है । (ख) सेत की चीज की मांग मे सिंदूर डालता है और उसी घडी से वह उसकी स्त की कोई परवाह नहीं करता। २ बहुत सा। ढेर का ढेर। हो जाती है। बहुत ज्यादा । उ०-चलहु जु मिलि उनही पं जैए, जिन्ह तुम क्रि० प्र०--पहनना।—देना ।-भरना ।—लगाना । टोकन पथ पठाए । सखा सग लीने जु से ति के फिरत रैनि दिन वन मे पाए। नाहिन राज कस को जान्यौ बाट रोकते फिरत मुहा०-सेदुर चढना = स्त्री का विवाह होना। सेंदुर देना पराये ।-मूर (शब्द०)। विवाह के समय पति का पत्नी की मांग भरना। उ०-। विशेष—यह मुहावरा पूरवी अवधी का है और वस्ती, गोडा, सीय सिर से दुर देही। सोभा कहि न जाय विधि केही। -तुल फैजावाद आदि जिलो मे बोला जाता है। सेत मे = (१) (शब्द०)। बिना कुछ दाम दिए । विना कुछ खर्च किए । विना मूल्य के। सेदुरदानी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सेदुर + फा० दानी] सिंदूर रखने मुफ्त मे। जैसे—यह घडी मुझे सेत मे मिल गई। (२) डिविया । सिंदूरा। व्यर्थ । निष्प्रयोजन। फजूल । जैसे—क्यो सेत मे झगडा सेंदुरबहोरा-सशा स्त्री० [हिं० सेदुर+ बहोरना( = पलटना या . लेते हो। करना)] विवाह के अवसर पर वर द्वारा कन्या के शीश से तना-क्रि० स० [हिं० से तना] दे० 'सेतना'। सिंदूर दान के बाद कन्या की कोई भी बड़ी बहन या कि
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