पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५५

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सेमलमूसला ७०७५ सेरा और बलकारक कहा गया है । इसके बीज स्निग्धताकारक और सेमिनरी-सशा स्त्री० [अ०] शिक्षालय । स्कूल । विद्यालय । मदरसा। मदकारी होते है, और कांटो मे फोडे, फुसी, घाव, छोप ग्रादि सेमिनार--सझा पु० [अ० किसी विषय पर निर्देश ग्रहण करते हुए दूर करने का गुण होता है। व्यवस्थित रूप से कालिज या विश्वविद्यालयीय छात्रो का अनु- फलो के रग के भेद से सेमल तीन प्रकार का माना गया है-एक सधान कार्य । विचारगोष्ठी। णोधगोष्ठी। तो साधारण लाल फूलोवाला, दूसरा सफेद फूलो का और सेमीकोलन-सहा पु० [अ०]एक विराम जिसका चिह्न इस प्रकार है- तीसरा पीले फूलो का। इनमे से पीले फूलो का सेमल कही सेयन--सज्ञा पु० [स० विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । देखने मे नही पाता । सेमल भारतवर्ष के गरम जगलो मे तथा सेर-सज्ञा पु० [स० ('लीलावती' में प्रयुक्त)] १ एक मान या तौल बरमा, सिंहल और मलाया मे अधिकता से होता है। जो सोलह छंटाक या अस्सी तोले की होती है। मन का चाली- पर्या०-- शाल्मलि । शाल्मली। पिच्छला। मोचा । स्थिराह । सवाँ भाग। २ १०६ टोली पान (तमोनी)। तूलिफला। दुरारोहा। शाल्मलिनी। शाल्मल । अपूरणी। पूरणी । निर्गधपुप्पी । तुलनी । कुक्कुटी । रक्तपुप्पा। कटकारी। सेर---सञ्ज्ञा स्त्री० | देश०] एक प्रकार की मछली। मोचनी । शीमूल । कदला। चिरजीवी । पिच्छल । रक्तपुष्पक । सेर-सज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का धान जो अगहन महीने मे तैयार तूलवृक्ष । मोचारय । कटकद्रुम । व्युटी । रक्तोत्पल । वन्यपुप्प । हो जाता है और जिसका चावल बहुत दिनो तक रह सकता है। बहुवीर्य । यमद्रुम । दीर्घद्रुम । स्थूलफल । दीर्घायु । कटकाष्ठ । सेर-संघा ५० [फा० शेर दे० 'शेर'। उ०-(क) गएन राए निस्सारा । दीर्घपादपा । तो वधि, तीन सेर विहार चायि।- कीर्ति०, पृ० ५८ । सेमलमूसला--सज्ञा पु० [स० शिम्बलमूल] सेमल की जड जो वैद्यक (ख) अरि अजा जूथ पै सेर हो ।--गोपाल (शब्द०)। मे वीर्यवर्धक, कामोद्दीपक और नपुसकता नष्ट करनेवाली यौ०--सेर बच्चा = एक प्रकार की बदूक । भोका। उ०---छुटे मानी गई है। मेर वच्चे । भज वीर कच्चे ।--हिम्मत०, पृ० १० । सेमलसफेद-सञ्ज्ञा पु० [स० श्वेतशिम्बल] सेमल का एक भेद जिसके सेर---वि० [फा०] तृप्त । उ०-रे मन साहसी साहस राखु फूल सफंद होते हैं। सुसाहस सो सव जेर फिरेगे। ज्यो पदमाकर या सुख मे दुख विशेष-यह सेमल के समान ही विशाल होता है। इसका उत्पत्ति त्यो दुख मे सुख सेर फिरेंगे।--पद्माकर (शब्द॰) । स्यान मलाया है । यह हिंदुस्तान के गरम जगलो और सिंहल सेरन-सञ्ज्ञा सी० [देश॰] एक घास जो राजपूताना, वृदेलखड और मध्य मे पाया जाता है। नए वृक्ष की छाल हरे रग की और पुराने भारत के पहाडी हिस्सो मे होती है। की भूरे रंग की होती है। पत्ते सेमल के समान ही एक साथ पाँच पाँच सात सात रहते है । फूल सेमल के फूल से छोटे और सेरवा --सज्ञा ९० [स० शणपट] वह कपडा जिससे हवा करके अन्न मटमैले सफेद रंग के होते हैं । इसके फल कुछ बडे गोल, धुधले वरसाते समय भूसा उडाया जाता है । झूली। परती। और पाँच फाकवाले होते हैं। फलो के प्रदर बहुत कोमल सेरवा --सज्ञा पुं० [हिं० सिर] चारपाई की वे पाटियाँ जो सिरहाने की ओर रहती है। रूई होती है और रूई के बीच मे चिपटे बीज होते है। वैद्यक मे सेमल के समान ही इसके भी गुण वताए गए हैं । सेरवा'--सञ्चा पु० [हिं० सेराना (= ठटा करना, शात करना)] सेमा--सज्ञा पु० [हिं० सेम] बडी सेम । दीवाली के प्रात काल 'दरिद्दर' (दरिद्रता) भगाने की रस्म जो सेमिटिक-सज्ञा पु० [अ० शाम ( = एक देश का नाम तथा इसराईल मूप वजाकर की जाती है। की सतति मे से एक)] १ मनुष्यो के आधुनिक वर्ग विभाग मे सेरवाना--क्रि० स० [हिं० सेराना] दे० 'सेराना"। उ०-उसी वह वर्ग जिसके अंतर्गत यहूदी, अरब, सीरियन, मिस्री आदि कजरहिया पोखरे पर जाती, नहाती और जयी (जई) सेरवाती, लाल समुद्र के पास पास वसनेवाली, नई पुरानी जातियां है । अर्थात् पानी मे छोड देती हैं।-प्रेमघन ०, भा॰ २, पृ० ३२६ । विशेप-मूसा, ईसा और मुहम्मद इसी वर्ग के थे जिन्होने पंगवरी सेरसाहि-सज्ञा पु० [फा० शेरशाह] दिल्ली का बादशाह शेरशाह । मत चलाए । यह वर्ग आर्य वर्ग से भिन्न है जिसमे हिंदू, पारसी, उ०--सेरसाहि देहली सुलतानू ।--जायसी (शब्द॰) । युरोपियन प्रादि है। मेरही-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सेर] एक प्रकार का कर या लगान जो किसान २ उक्त वर्ग के लोगो द्वारा वोली जानेवाली भापायो का वर्ग । को फसल की उपज के अपने हिस्से पर देना पडता है। विशेष-इस भापावर्ग के इवरानी और अरबी तथा असीरियन, सेरा'-सज्ञा पुं० [हिं० सिर] चारपाई की वे पाटियाँ जो सिरहाने की फिनीशियन आदि प्राचीन भाषाएँ है। यह वर्ग आर्यवर्ग से सर्वथा भिन्न है जिसके अंतर्गत सस्कृत, पारसी, लैटिन, ग्रीक ओर रहती हैं। आदि प्राचीन भाषाएँ और हिंदी, मराठी, बंगाली, पजाबी, सेरा-सहा ० [फा० मेरान आवपाशी की हुई जमीन । सोची हुई जमीन। फ्रामीसी, जर्मन आदि योरप की प्राधुनिक भाषाएँ है । पश्तो, गुजराती आदि उत्तर भारत की भाषाएँ तथा अंगरेजी, सेरा सच्चा पु. [अ० सल, लए ० सेढ] दे० 'सेड' ।