पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४६७

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६ मनोरजक दृश्य, सरे ७०८७ सताव सर--संज्ञा स्त्री० [फा०] १ मन बहलाव के लिये घूमना फिरना । सैरेय-मशा पु० [सं०] १ सफेद फूनवाली कटसरैया। खेत स्टिी । मनोरजन या वायुसेवन के लिये भ्रमण । उ०पाहर की सर २ दे० 'सरीय'। करते हुए राजा के महलो के नीचे पाए। - लल्लू (शब्द०)। सैरेयक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सरेय' । क्रि० प्र०-करना । होना। सैर्य-मज्ञा पु० [स०] अश्ववाल नामक तृण । २ वहार । मौज। आनद । ३ मित्रमडली का कही बगीचे मे सैल-सज्ञा स्त्री० [फा० सैर] दे० 'सर'। उ०--(क) गोप खानपान और नाचरग। ४ किसी पुस्तक का मनोरजन की अथाइन ते उठे गोरज छाई गैल । चलि बलि अलि अभिसार दृष्टि से अध्ययन वा अवलोकन (लाक्ष०) । ५ घूमना फिरना । को भली संझोखी सैल !-बिहारी (शब्द॰) । (ख) मोहि पर्यटन । चक्रमरण । भ्रमण (को॰) । मधुर मुसकान सो सवै गाँव के छल। सकल शैल बनकुज मे कौतुक। तमाशा। उ०-मम वधु को तै हने शक्ति, विशेष तरुनि सुरति की सैल |---मतिराम (शब्द०)। लेही बैर। तव पुन, पौत्र संहारि मैं दिखराय हौ रन सेर। सैलर-सा पु० [सं० शैल, प्रा० सैल] पवत । दे० 'शैल' । -रघुराज (शब्द०)। सैल-सज्ञा स्त्री० [स० शल्य] दे० 'सेल' । यौ०-सरसपाटा = मन बहलाव के लिये घूमना, फिरना। सैल-सज्ञा स्त्री० [अ० सैल, फा० सैलाव] १ वाढ। जलप्लावन । सैर'-वि० [स०] सीर या हल सबधी। २ स्रोत । बहाव । सैर-सज्जा पुं० कार्तिक का महीना [को०] । सैलकुमारी-सशा स्त्री० [सं० शैलकुमारी] पार्वती । दे० 'शैल कुमारी' । सैरगाह-सज्ञा पुं० [फा०] १ सैर करने की जगह या स्थान । २ एक सैलग-सज्ञा पु० [सं०] लुटेरा । डाकू। प्रकार का कदील जिसमे कागजी चित्रो की चलती फिरती छाया सैलजा-सञ्ज्ञा स्त्रो० [सं० शैलजा] दे० 'शैलजा'। उ०-जाह दिखाई पड़ती है। वियाह सलजहि यहि मोहि मागें देहु । -मानम, ११७६ । सरचीन-सञ्ज्ञा पुं० [अ० सेर ( = तमाशा) + फा० बीन ( = जिससे सैलतनयामज्ञा स्त्री० [सं० शैलतनया] पार्वती । शैलजा । देखने में मदद मिने)] १ देखना भालना। निरीक्षण। २ सैलवेशन आर्मी-तशा स्त्री० [अ०] यूरोपियन समाजसेवको का एक एक प्रकार का दो तालो से युक्त यत्न जिसे आँखो स लगाकर चित्र सघटन जिसका उद्देश्य जनता की धार्मिक और सामाजिक देखे जाते हैं। उ०~-जिस तरह आप और अनेक कौतुक देखते उन्नति करना है । मुक्ति फौज । हैं, कृपापूर्वक इस प्रजा के चित्तरूपी पातशी शीशे से (क्योकि विशेष-इस संघटन के कार्यकर्ता फौज के ढग पर जेनरल, मेजर, वह आपके वियोग और अपनी दुर्दशा से सतप्त हो रहा है), कप्तान प्रादि कहलाते हैं। ये लोग गेमया साफा, गेम्या धोती बनी हुई सैरवीन की भी सैर कीजिए। -भारतेदु ग्र०, भा० ३, और लाल रग का कोट पहनते है। ईसाई होने के कारण ये पृ०७२२॥ लोग ईसाई मजहब का ही प्रचार करते है। इनका प्रधान सैरिध्र--सशा पुं० [सं० सरिन्ध्र] वृहत्स हिता मे वर्णित एक प्राचीन कार्यालय इगलैंड में है और शाखाएँ प्राय समस्त संसार मे जनपद का नाम। फैली हुई हैं। सैरिघ्र-सज्ञा पुं० दे० 'सरध्र' । सैलसुता@-सज्ञा सी० [स० शैलसुता] दे० 'शैलसुता' । सरिंध्री- सज्ञा स्त्री० [सं० सैरिन्ध्री] दे० 'सरन्ध्री' । सैला'--संज्ञा स्त्री० [सं० शल्य] [ग्नी प्रत्पा० सैली] १ लकडी की गुरली सैरि-सशा पुं० [सं०] १ कार्तिक महीना। २ बृहत्सहिता के अनु या पच्चड जो किसी छेद या सधि मे ठोका जाय । किनी छेद मे सार एक प्राचीन जनपद का नाम । डालने या फंसाने का टुकडा । मेख । २ लकडी का घाटा उडा सैरिक'-सज्ञा पुं० [सं०] १ हलवाहा। हलधर । किसान । कृपक । या मेख । ३ लकडी का छोटा इडा या मेख जो हल ए के २ हल मे जुतनेवाला वैल । ३ आकाश । दोनो सिगे के छेदो मे इमलिये डालते हैं जिसमे जूत्रा वैलो के गले में फैसा रहे। ४ नाव की पतवार की मठिया । ५ यह सैरिक-वि० सीर सबधी । हल सवधी मुंगरी जिममे कटी हुई फमल के टठल दाना झाडने के लिये सेरिभ-सज्ञा पुं० [सं०] [ी० सेरिभी] १ भैसा । महिप । २ स्वर्ग । ३ आकाश । व्योम। सैला-सज्ञा पुं० [स० शाकल, प्रा० साग्रल] [ग्ने० अल्पा० सैली] सेरिभी-सजा सी० [सं०] भैस । महिपी । चीरा हुप्रा टुक्डा । चला । जैसे,—लपटी का सैला। सैरिष्ठ--सज्ञा पुं० [सं०] मार्कंडेय पुराण में वर्णित एक प्राचीन सैलात्मना-सश रसी० [स० शैलात्मगा] पार्वती। जनपद का नाम। सैलानी--वि० [फा० सैर, हिं० सैल] १ जिसे सैर करने में मानद सेरीय-सशा पुं० [सं०] १ सफेद कटसरया । श्वेत झिटी। २ नोली प्रावै। सैर करनेवाना। मनमाना धूमनेवाला । २ आनदी। कटसरया । नील झिटी। मनमौजी। मेरोयक-सबा पुं० [सं०] दे० 'संरीय'। सेलाव-लश पु० [फा०] बाउ । जलप्लावन । पीटते हैं।