पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४६९

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७०६६ साँचा को वैर लहो मारि मनुन नसंही महि, जामे पर पापिन के मुख साँटाबरदार--सज्ञा पुं० [हिं० सोटा + फा० वरदार] सोटा या प्रासा फेरि फीके सो । धनी धरनी के नीके अापुनी अनी के सग प्रावै लेकर किमी गजा या अमीर की सवारी के साथ चलनेवाला। जर जी के मोन जी के गरजी के सो।--गोपाल (शब्द॰) । पामावरदार। बरलमदार। सौ@ --क्रि० वि० [९० सह] सग। साथ । उ०-~-मन हरि सो तनु सौटिया-संज्ञा पु० [हिं० सोटा +3या (प्रत्य॰)] दे० सांटिया'। घर हि चलावति । ज्यो गजमत्त जाल अकुश कर गुरुजन सुधि उ०-चहुँदिसि प्रावि मोटि अन्हि फेरी। मैं कटकाई राजा प्रावति ।-मूर (शब्द॰) । केरी।-जायसी ग्र० (गुप्त), १० २०६ । सौं-सर्व० [सं० स ] दे० 'सो'। उ०-राज समाज खबर सो साँठ-सज्ञा स्त्री० [सं० शुण्डी] १ सुखाया हुअा अदरक । शठि । वरनी । अागे नृपदल सों” भरि भरनी।गोपाल (शब्द॰) । शु ठी। साँ@-सज्ञा स्त्री० [हिं० सौ ह] दे० 'सी है'। उ०-बात सुने ते विशेष--वैद्यक के अनुसार सौंठ रचिकर, पाचक, हलकी, बहुत हंसोगे चरण कमल को सो। मेरी देह छुटत यम पठए स्निग्ध, उष्ण वीर्य, पाक मे मधुर वीर्यवर्धक, सारक, कफ, वात, जितक दूत घर मों। -सूर (शब्द॰) । विवध, हृद्रोग, श्लीपद, शोक, बवासीर, अफारा, उदर रोग तथा वात रोग का नाशक है। सौइटा-संशा पुं० [हिं० सटना ?] चिमटा। दस्तपनाह । २ शुष्क । खुक्ख । खोखला । निर्धन या कजूस । (लाक्ष०)। उ० साँच-मचा पुं० [हिं० सोच] दे० 'सोच'। उ० - · इधर उधर से जान पडता है ससुरालवाले पूरे सो ठहैं । - शरावी, पृ० १६५ । सोच सोच कही से जवाब के बदले कुछ कह देना ।-प्रेमघन०, सौंठमिट्टी -सज्ञा स्त्री॰ [मोठ? + हिं० मिट्टी] एक प्रकार की पीले भा० २, पृ० २४॥ रग की मिट्टी जो ताल या धान के खेत में पाई जाती है। साँचर नमक-सञ्ज्ञा पुं० [स० सौवर्चल + फा० नमक] एक प्रकार का यह काविस बनाने के काम मे पाती है। नमक । काला नमक । विशेष—यह मामूली नमक तथा हड, वहेर्ड और सज्जी के संयोग मे सौंठराय-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सोड+ राय ( = राजा)] कजूसो का सर' दार । भारी मक्खीचूस । (व्यग्य) । बनाया जाता है । वैद्यक मे यह उष्णवीर्य, कटु, रोचक, भेदक, साँठौरा-सज्ञा पुं० [हिं० मोठ+ौरा (प्रत्य॰)] शर्करा या गुड दीपक, पाचक, स्नेहयुक्त, वातनाशक, अत्यत पित्तजनक, विशद हरिद्रा आदि से युक्त एक प्रकार का सूजी का लड्डू जिसमे हलका, डकार को शुद्ध करनेवाला, सूक्ष्म तथा विवध, पानाह मेवो के सिवा सोंठ भी पडती है । यह लड्डू प्रायः प्रसूता स्त्री तथा शूल का नाश करनेवाला माना गया है। को खिलाया जाता है। पर्या-अक्ष । सौवर्चल । रुच्य । दुर्गंध । शूलनाशन । रुचक । सौड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [स० शु ण्ड, प्रा० सुड] दे० 'सूड' । उ०करें कृष्णलवण, आदि। गजेंद्र सोंड को चोट । नामा उभरे हर की ओट ।-दक्खिनी०, सौजा-सझा स्त्री० [हिं० सौज] दे० 'सौज' । उ० - सब सोज रूपचद पृ० २०1 नदा के ही घर ले आए।-दो सौ वावन०, भा०, पृ० १६३ । साँड़कहा-राज्ञा पुं॰ [देश॰] घो। घृत। (सुनार) । --सज्ञा स्त्री० [स० सार्द्ध] प्राधा साझा । साझेदारी। साँध-क्रि० वि० [हिं० सी ह] दे० 'सोह' । सौमा-वि० [स० शुद्ध, सुन्झ, हि० सोझ] सीधा । सोधपुर-मचा पुं० [डि० सोध] महल । अटारी । उ०-यह श्यामा सौटा-सा पुं० [हिं०] दे० 'सोट' । है कौन की छविधामा मुसकाय । सोंध यहि को ध सी चोध सौटा-सज्ञा पुं० [सं० शुण्ड या सुवृत्त>सुवट्ट> मुअट, हिं० सटना] मोटी लवी सीधी लकडी या वांस जिमे हाथ मे ले सकें। मोटी सौंपी-वि०, मचा पुं० [म० सुगन्ध, हिं० सोधा] सुगधयुक्त । ३० गई चख छाय।-शृगार सतसई (शब्द०)। छडी। डडा । लाठी । लट्ठ । उ०--मार मार सोंटन प्रान 'सोधा'। निकासत !-कवीर श०, पृ० १९ । सौंधा-वि० [सं० सुगन्ध] [वि० सी० सोधी] १. सुगधयुक्त । सुगं- क्रि० प्र०-चलाना । -जमाना। -बांधना। -मारना। घित । खुशबूदार। महकनेवाला। उ०-(क) सोधे समीरन उ०-~-वहाँ से आज्ञा हुई कि ऐ मूसा तू नदी मे सोटा मार को सरदार मलिंदन को मनसा फलदायक । किसुक जालन को तब मूसा ने सोंटा मारा।-कबीर ग्र०, पृ० ५४ । कलपद्रुम मानिनी बालक हूँ को मनायक ।-रस कुसुमाकर मुहा०-सोंटा चलना= सोटे से मार पोट होना । सोटा चलाना (शब्द॰) । (ख) सहर सहर सौंधी सीतल समीर डोले घहर = सोटे से प्रहार करना । सोटा जमाना = दे० 'सौटा चलाना'। घहर घन घोरि के घहरिया ।-देव (शब्द०)। (ग) सोधे साँटा-सञ्ज्ञा पु० १ मग घोटने का मोटा डडा । भगघोटना । कैसी सोंधी देह सुधा सो सुधारी, पाउंधारी देवलोक ते कि सिंधू उ०-तन कर कूडी मन कर सोटा प्रेम की भंगिया रगरि ते उधारी सी।-केशव (शब्द०)।२ मिट्टी के नए वरतन या पियावै ।--कबीर (शब्द०)। २ लोबिया का पौधा। सूखी जमीन पर पानी पडने या चना, बेसन आदि मुनने से निक- रदास । ३ मस्तूल बनाने लायक लकडी। लनेवाली सुगध के ममान । जैसे,-सोधी मिट्टी, सोधा चना। सीमा-