पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४७०

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सौधा' ७.९० सोपा मजा सो साँवा-मज्ञा पु० १ एक प्रकार का सुगधित मसाला जिससे स्त्रियां साँहनी@t-वि० स्त्री० [स० शोभनीय] शोभनीय। शोभन । उ०- केशवोती है । उ०—(क) आइ हुती अन्हवावन नाइनि सोधो इहि कन्या मैं स्याम को, मांगी गोद पसारि, कि जोरी सोहनी। लिए कर सूधे तुमाइनि। कचुकि छोरि उत उपटवे की इंगुर से -नद० ग्र०, पृ० १६४ । अंग की सुबदाइनि । (ख) सोधे की सुवास आस पास भरि सौही-अव्य० [हिं०] दे० 'सौह'। उ०—(क) आज रिसों ही न सोही भवन रह्यो भरत उनास वास वासन वसात है।-देव (शब्द०)। चितौति कितौ न सखी प्रति प्रीति बढावै ।-देव (शब्द०)। (ग) देखी है गुपाल एक गोपिका में देवता सी सोनो सो सरीर (ख) इतने मे सोही आ एक बोली वजनारी। लल्लू (शब्द०)। सव सोधे की सी वास है।--केशव (शब्द०)। २ इन्न । सो'--सर्व० [स० स ] वह । उ०—(क) व्याही सो सुजान शील रूप फुलेल । अतर । उ०-लेइ के फूल वैठि फुलहारी। पान अपूरव वसुदेव जू को बिदित जहान जाकी अतिहि वडाई है।--गोपाल घरे संवारी। सोधा सर्व बैठल गाँधी। फूल कपूर खिरौरी (शब्द०)। (ख) सो मो सन कहि जात न कैसे। साक बनिक बांधी।--जायसी (शब्द॰) । ३ एक प्रकार का सुगधित मनि गन गुन जैसे। -तुलसी (शब्द०)। (ग) अरे दया मैं जो मसाला जो बगाल मे स्त्रियां नारियल के तेल मे उसे सुगधित करने के लिये मिलाती है। जुलमन मैं नाह । -रसलीन (शब्द॰) । सो-वि० [हिं०] दे० 'सा'। उ०—(क) विधि हरि हर मय वेद सौधा- सज्ञा पुं० सुगध । महक । खुशबू । उ०—(क) सूरदास प्रभु प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।—तुलसी (शब्द०)। की बानक देखे गोपी ग्वाल टारे न टरत निपट आव सोधे की लपट । (ख) नासिका सरोज गधवाह से सुगधवाह, दारयो से दशन -सूरदास (शब्द०)। (ख) गढी सो सोने सोधे भरी सो कैसो बीजुरी सो हास है। -केशव (शब्द०)। रूप भाग । सुनत रूखि भइ रानी हिये लोन आस आग। जायसी सो'--अव्य० अत । इसलिये । निदान। जैसे,-पराधीनता सब दुखों (शब्द०)। का कारण है, सो, भाइयो, इससे मुक्त होने के उद्योग मे लगे सौधिया - सज्ञा पु० [हिं० सोधा (= सुगध) + इया (प्रत्य॰)] सुगध रहिए। उ०--सो जब हम तुम सो मिले जुद्ध । नव अग लहह तृण । रोहिप तृण । गधेज घास । खै समर सुद्ध। -गोपाल (शब्द॰) । सौंधी-सशा पुं० [हिं० सो धा] एक प्रकार का बढिया धान जो दलदली सो'--सज्ञा स्त्री० [स०] पार्वती का एक नाम । जमीन मे होता है। सो-सञ्ज्ञा पुं० [स० शत, प्रा० सय, सउ] दे० 'सौ' । उ०-- - वि० [हिं० सो वा] उ०--सोधु सुरद्रुम विद्रुम विदुलै फलो सो बरस अट्ठ तप राज कीन। आनद मेव सिर छन दीन ।- दल फूलन दारयो दरे रे। -देव (शब्द॰) । पृ० रा०,१। पृ० १२ । सौंपना-क्रि० स० [हिं० सो पना] समर्पण करना। सौंपना । उ० सोऽहम् -पद [स० स + अहम्] वही मैं हूँ--अर्थात् मैं ब्रह्म हूँ। (क) राम को राज्य लक्ष्मी सा पो।-लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। विशेष-वेदात का सिद्धात है कि जीव और ब्रह्म एक ही हैं, (ख) तुम यह हुडी चापाभाई भडारी को सो पि आयो। दो सौ दोनो मे कोई अतर नही है। जीव और कुछ नही, ब्रह्म ही है। बावन०, भा०, पृ० २०२ । इसी सिद्धात का प्रतिपादन करने के लिये वेदाती लोग कहा सौवना-सशा पुं० [स० स्वर्ण] सोना । स्वर्ण । हेम । करते हैं-सोऽहम् , अर्थात् मैं वही ब्रह्म हूँ। उपनिषदो, मे भी सौवनिया-सज्ञा पु० [सं० सुवर्ण, प्रा० सुवण्ण, सोवण्ण+ हिं० इया यह बात 'अह ब्रह्मास्मि' और 'तत्त्वमसि' रूप मे कही गई है। (प्रत्य॰)] एक प्रकार का प्राभूषण जो नाक मे पहना जाता सोऽहमस्मि--पद [स० स + अहम् + अस्मि] वही मैं हूँ-अर्थात् मैं है। उ०-पहुँची करनी पदिक उर हरिनख कॅठुला कठ मजु ही ब्रह्म हूँ। विशेष दे० 'सोऽहम्' । गजमनिया। रुचि रुचि शुक द्विज अधर नासिका सुदर राजत सोमनाए-क्रि० अ० [सं० स्वपन] दे० 'सोना' । उ०—(क) सोवतिया ।—सूर (शब्द॰) । गात कपोल पर अलक अडोल सोहाय । सोअति है सांपिनि मनो पकज पात विछाय। -मुबारक (शब्द॰) । (ख) सुक्लजीत जहाँ सौह@--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सी ह] दे० 'सौह' । उ०-प्यारे को प्यार वसत जे जागत सोयत राम राम बके ।-देवस्वामी (शब्द०)। परोसिनी सो है कह्यो तुम सो तव साचु न लेखो। मोही को झूठी कही झगरी करि सोह करौं तव औरऊ तेखो।-काव्य सोअर-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सूतिगृह] दे० 'सौरी'। कलाधर (शब्द०)। सोया--सज्ञा पु० [स० मिश्रेया] एक प्रकार का साग । विशेष-इसका क्षुप १ से ३ फुट तक ऊँचा होता है। इसकी सोह-अव्य० दे० 'सोह' । उ०—बाउर अध प्रेम कर लागू। सोह पत्तियां बहुत सूक्ष्म और फूल पीले होते है। वैद्यक के अनुसार घसा कछु सूझ न ागू।-जायसी (शब्द॰) । यह चरपरा, कडवा, हलका, पित्तजनक, अग्निदीपक, गरम, साँहटा-वि० [सं० सुघट, प्रा० सुहट ?] सीधा सादा । सरल । मेधाजनक, वस्तिकर्म मे प्रशस्त तथा कफ, वात, ज्वर, शूल, सोहना-वि० [म० शोभन, प्रा० सोहण] सुदर। सुहावना । योनिशूल, आध्मान, नेत्ररोग, व्रण और कृमि का नाशक है । उ.--सखि सोभित मदन गुपाल कटि बाँध पट सोहनौ।-नद. पर्या-शताह्वा । शतपुष्पा। शताक्षी। शतपुष्पिका । कारवी । ग्र०, पृ० ३८४। तालपर्णी। माधवी । शोफका । मिसी। सौंधु