पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४९२

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कहते है। सोहरी ८०१२ सोहारद सोहरा-वि० [मं० शोभिल, प्रा० सोहिर। शोभनेवाला। सुखी । विशेष--इम वक्ष के पत्ते बहुत लवे लबे होते हैं। यह आसाम, उ०-२ इकोतरास ई सवनि को ताही तें भये सोहरा। ऊंची वगाल, दक्षिणी भारत और लका मे पाया जाता है। इसके महल रच्यो अविनाशी तज्यो परायौ नोहरा।-सु दर० ग्र०, बीजो से एक प्रकार का तेल निकलता है जो जलाया और भा०२, पृ०६१४ । प्रोपधि के रूप मे काम मे लाया जाता है। इसे हीरन हर्रा भी सोहराना-क्रि० स० [हिं० सहलाना] दे० 'सहलाना' । उ०- कुचन्ह लिये तरवा सोहराई। भा जोगी कोउ सग न लाई। २ एक प्रकार का नमकीन पक्वान्न । दे० 'सुहाल'। जायसी (शब्द०)। सोहागा'--सज्ञा पुं० [मं० समभाग, प्रा० सर्वहाग] जुते हुए खेत की मोहराना-क्रि० स० [हि° सोहराना] किसी वस्तु को फैलाना या मिट्टी बराबर करने का पाटा। मैडा । हेगा। नीचे तक लटकाना। सोहला-सचा पु० [हिं० सोहना] १ वह गीत जो घर मे बच्चा पैदा सोहागा'-मझा पुं० [हिं०] दे० 'मुहागा'। उ०—कहि सन भाउ भएउ कठलागू । जनु कचन मो मिला सोहागू ।--जायसी ग्र० होने पर स्त्रियां गाती है । उ०—गौरि गनेस मनाऊँ हो देवी (गुप्त), पृ० ३३४॥ सारद तोहि । गाऊँ हरि जू को सोहलो मन और नाव मोहि । सोहागिन -सज्ञा स्त्री० [हिं० सुहागिन] दे० 'सुहागिन' । उ०-प्रति —सूर (शब्द०)। २ मागलिक गीत । उ०-डोमनियो के रूप सप्रेम सिय पायें परि बहु बिधि देहिं असीस । सदा सोहागिनि मे सारगियां छेड छेड सोहले गावो।-इशाअल्ला (शब्द॰) । होहु तुम्ह जब लग महि अहि सीस ।-तुलसी (शब्द॰) । ३ किसी देवी देवता की पूजा मे गाने का गीत । जैसे,-- सोहागिल-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सोहाग + इल (प्रत्य॰)] दे० 'सुहागिन' । माता के सोहले। उ०--सिय पद सुमिरि सुतीय पहि तस गुन मगल जानु । सोहलो-सज्ञा पुं० [अ० सुहैल] तारा की प्राकृति का ललाट पर स्वामि सोहागिल भागु बड पुन काजु कल्यान । तुलसी पहनने का एक आभूपण । उ०-भुमुहाँ ऊपर सोहलो, परि (शब्द०)। ठिउ जाण क चग। ढोला एही मारुवी, नव नेही नव रग । ढोला०, दू०४६५। सोहाता--वि० [हिं० सोहना] [वि० श्री. सोहाती] सुहावना । सोहाइन -वि० [हिं०] दे० 'सुहावना' । उ०—सँग गाउँ को गोधन शोभित । सु दर। अच्छा। उ०-माधुरी मूरत देखे बिना ले सिगरो रघुनाथ भरे मन चाइन मे । नहिं जानि ये जात रहे पद्माकर लागे न भूमि सोहाती।-पद्माकर (शब्द०)। कितको बन भीतर कुज सोहाइन मे।-रघुनाथ (शब्द०)। सोहान-सशा पुं० [फा०] रेतने का मौजार । रेती [को०] । सोहाई-वि० स्त्री० [हिं० सोहाना का कृदत रूप] दे० 'सोहाया' । सोहाना' - क्रि० अ० [स० शोभन, प्रा० सोहण] १ शोभित होना। सोहाई-सशा स्त्री० [हिं० सोहना] १ खेत मे उगी घास निकालने शोभायमान होना। सुदरता के साथ होना। सजना। उ०- का काम । निराई । २ इस काम की मजदूरी । (क) प्रावहिं झुड सो पांतिहि पांती । गवन सोहाइ सो भांतिहि सोहाप्रोन -वि॰ [हिं० सुहावन, सोहावन] [वि० खी० सोहाउनी] दे० भांती । —जायसी (शब्द०)। (ख) गोरे गात कपोल पर 'सुहावन' । उ०—(क) अछल सोहाप्रोन कितए गेल, भूसन अलक अडोल सोहाय ।-मुबारक (शब्द॰) । (ग) बन उपबन कएले दूसन भेल ।--विद्यापति, पृ० ३१७ । (ख) विरह सोस सर सरित सोहाए ।-तुलसी (शब्द०)। २ रुचिकर होना। भेले भल हो अधर देले रोप सुहाउनि छाया। --विद्यापति, अच्छा लगना । प्रिय लगना। रुचना। जैसे,-तुम्हारी बातें पृ० २२५। हमे नहीं सोहाती। उ०—(क) भएउ हुलास नवल ऋतु सोहाग-सज्ञा पुं॰ [स० सौभाग्य, प्रा० सोहग्ग] १ दे० 'सुहाग' । माहाँ । खन न सोहाइ धूप प्रो छाहां।-जायसी (शब्द०)। उ०—(क) धाइ सो पूछति बात विन की सखीनि सो सीखे (ख) पिय विनु मनहिं अटरिया मोहिं न सोहाइ ।-रहीम सोहाग को रीतहिं ।—देव (शब्द०)। (ख) लागि लागि (शब्द०)। (ग) राम सोहाता तोहि तो तू सवहिं सोहातो। पग सवनि सिय भेटति अति अनुराग। हृदय असीसहिं प्रेमबस -तुलसी (शब्द०)। रहिहहु भरी सोहाग ।--तुलसी (शब्द०)। सोहाना-सज्ञा पुं० वि० सुहावना। सु दर । मनोहर । उ०-साहि तन क्रि० प्र०-देना।-लेना । उ०-तुम तो ऐसा धमकाते हो जैसे सिव साहि निसा मैं निसांक लियो गढ सिंह सोहानो।-भूषण हम राजा साहब के हाथो विक गए हो। रानी रूठेगी, अपना ग्र०, पृ०७२। सोहाग लेंगी। अपनी नौकरी ही न लेगे, ले जायें। -काया०, सोहाया-वि० [हिं० सोहाना का कृदत रूप] [वि॰ स्त्री० सोहाई] शोभित। शोभायमान । सुदर। उ०—(क) सरद सोहाई प्राई राति । २ एक प्रकार का मागलिक गीत । उ०-गावत सबै सोहाग छबीली दस दिसि फूलि रही बनजाति ।—सूर (शब्द०)। (ख) एहि मिलि सब बृज की वाम ।-भारतेदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ४४४ । प्रकार बल मनहिं देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सोहाई।- सोहाग' सज्ञा पु० [हिं० सुहागा] दे० 'सुहागा' । तुलसी (शब्द०)। सोहाग-पक्षा पु० [देश०, तुल० स० सौभाग्य] मझोले आकार का सोहायो-वि० [हिं० सोहाया] दे० 'सोहाया'। एक प्रकार का सदावहार वृक्ष । सोहारद-सज्ञा पुं० [सं० सौहार्द] दे० 'सौहार्द'। पृ० २२२।