पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

2०१३ खोहारी सौदर्यवाद मोहारी-मज्ञा स्त्री० [हिं० सोहाना ( = रुचना) अथवा म० सु+। सोहिला - पु० [हि सोहला] दे० 'साहला'। उ०-(क) प्राज़ स्तृ>स्तर, स्तार] पूरी। उ०-(क) मोती चूर मूर के मोदक इद्र अछरी सो मिला। सब कैलास होहि सोहिला .-जायसी प्रोदक की उजियारी जी। ममई सेव सैजना सूरन सोवा सरस (शब्द॰) । (ख) सहेली सुन सोहिलो रे --तुलसी (शब्द॰) । सोहारी जी।-विधाम (शब्द॰) । (ख) लुचुई पूरि सोहारी (ग) सदन सदन शुभ सोहिलो सुहावनी ते गाइ उठी भाइ परी। एक ताती औ सुठि कोवरी। --जायसी ग्र० (गुप्त), उठी क्षण क्षिति छ गए। -रघुराज (शब्द॰) । (घ) सुख सोहिले मनाऊँ मदा । या ब्रज यह आनद सपदा। -धनानद, सोहाल-सज्ञा पु० हिं० सुहाल] दे० 'सुहाल' । पृ० ३०३। मोहाली'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० शोभावलि '] ऊपर के दाँतो का मसूडा । सोही-क्रि० वि० [म० सम्मुख, प्रा० सम्मुह, हिं० सौह] सामने । प्रागे । ऊपरी दांतो के निकलने की जगह । उ.-उग्रसन का स्वरूप बन रानी के सोही जा बोला-तू सोहाली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० सुहारी] दे॰ 'सुहारी' । मुझसे मिल | लल्लू (शब्द॰) । सोहावन-वि० [हिं० सुहावना दे० 'सुहावना' । उ०-(क) सोहैल-क्रि० वि० [हिं० सोह) दे० 'सौह', 'सौहै' । दडक बनु प्रभु कीन्ह सोहावन । जनमन अमिति नाम किय पावन ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) कुहकहिं मोर सोहावन सोहैं@-कि० वि० [सं० सम्मुख, प्रा० सम्मुह, हिं० सोहे] सामने । प्रागे । उ०-घूघट मे सुसकै भर सास ससै मुख नाहके सोहैं लागा। होइ कुराहर बोलहिं कागा ।-जायसी ग्र०, पृ० ११ । न खोल ।-बेनी (शब्द०)। सोहावना'-वि० [हिं० सुहावना] दे० 'सुहावना' । सोहीटी--सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] ६ या ७ इच चौडी एक लकही जो 'अपती' सोहावना'-क्रि० अ० [स० शोभन] दे० 'सोहाना' । उ०—(क) के सामने 'लेवा' के नीचे नाव की लवाई में लगाई जाती है। कज्जल सो रग मोहै सज्जल जलद जोहि उज्जल बरन बर (मल्लाह)। रदन सोहावने ।-गोपाल (शब्द॰) । (ख) वीर लै कमान हाथ मोद सा फिरावते। गावते वजावते सोहावते देखावते । सौदर्ज-सज्ञा पुं० [सं० सौन्दर्य] दे० 'सौदर्य'। उ०-नयन कमल गोपाल (शब्द०)। कल कुडल काना । बदन सकल सौदर्ज निधाना।-तुलसी सोहासित-वि० [सं० सुभाषित (= सु दर वचन), अथवा हिं० (शब्द०)। सोहाना (= रुचना)] १ प्रिय लगनेवाला। रुचिकर। २ सौदर्य, सौदर्य- -सहा पुं० [म० सौन्दर्य, सौन्दय्यं] सुदर होने का भाव ठकुरसोहाती। उ०--राजसूय ह्वहै नहिं तेरी। मानहु हस वात या धर्म । सुदरता । रमणीयता । खूबसूरती । जैसे,—युवती सति मेरी। वैसे कही सोहासित भाख । पै मन महें सका हठि का सौंदर्य, नगर का सौदर्य । उ०-उज्वल वरदान चेतना राखे ।---रघुराज (शब्द०)। का, सौदर्य जिसे सब कहते हैं। -कामायनी, पृ० १०२ । सोहि:-क्रि० वि० [हिं० सौह] दे० 'सौह' 1 उ०-वेदवती दशशीश यौ-सौदर्य गविता = अपने सौंदर्य के गर्व से भरी हुई। जिसे ते कहयो रहै मै तोहि । तव पुर पैठि विनाशिहै । हेतु गई तेहि अपनी सुदरता का अभिमान हो (स्त्री) । उ०--सौंदर्यगविता सोहिं ।-विश्राम (शब्द॰) । सरिता के प्रति विस्तृत वक्षस्थल मे।--अपरा, पृ० १४ । सोहिए, सोहीए --सज्ञा पुं॰ [स० स्वप्न, प्रा० सुहिणा, सोहणा] सौदर्य प्रिय = जिसे सौदर्य प्रिय हो । सौदर्यप्रेम = रमणीयता के स्वप्न । उ०--जो हूँ सोहोराइँ जाणतो साँच । --बी० रासा०, प्रति अनुराग। सोहिनी'-वि० सी० [हिं० सोहना ] सुहावनी । शोभायमान सुदर । सौदर्यता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सौन्दर्य + ता (प्रत्य॰)] मुदरता। रमणी- यता। खूबसूरती। उ०--उस समय की सौंदर्यता का क्या उ०-सग लोने बहु अच्छोहिनी। गज रथ तुरगन्ह सोहिनी । पूछना ।--अयोध्यासिंह (शब्द॰) । सोहिनी-मशास्त्री० करुण रस को एक रागिनी । विशष--व्याकरण के नियम से 'सौंदर्यता' शब्द अशुद्ध है। शुद्ध विशेष-यह पाडव जाति की है और इसमे पचम वर्जित है । रूप सौदर्य या सुदरता ही है। कोई इसे भैरो राग को और कोई मेघ राग की पुत्रवधू मानते सौदर्यवोव-सक्षा पु० [सं० सौन्दर्यबोध] दे० 'सौदर्यानुभूति' । हैं । हनुमत के अनुसार यह मालकोस राग की पत्नी है। इसके उ०-रवीद्र तथा सरोजनी नायडू की कवितानो से उनके भीतर गाने का समय रात्रि २६ दड से २६ दड तक है। एक नवीन प्रकार के अस्पष्ट सौदर्यवोध तथा माधुर्य का जन्म सोहिनी'---सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शोधनी] झाडू । बुहारी । हुमा।--युगात, पृ० (ड)। सोहिल---सशा पुं० [अ० सुहेल] एक तारा जो चदमा के पास दिखाई सौदर्यवाद-समा ५० [सं० सौन्दर्य + वाद] वह साहित्यिक विधा पडता है। अगस्त्य तारा । उ०—(क) हीर फूल पहिरे जिसमे प्रकृतिसौदर्य को प्रमुखता दी गई हो। उ०-पत जी उजियारा । जनहु मरद ससि सोहिल तारा । —जायसी का सौदर्यवाद ही उनके प्रारभिक रचनाकाल मे उन्हें व्याकरण (शब्द॰) । (ख) सोहिल सरिस उवौ रन माही। कटक घटा की कड़ियाँ तोडने के लिये वाध्य करता रहा है।-हिं० का० जेहि पाइ उडाही । —जायसी (शब्द॰) । प्र०, पृ० २११। गोपाल (शब्द०)।