पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/५०८

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1 सौराष्ट्री सौगिक ८०२५ विशेष--इसके पत्ते पलाश के पत्तो से मिलते जुलते होते हैं । यह सोरीय-सज्ञा पु० १ एक वृक्ष जिममे से विपला गोद निकलता है। कद काले अगर के समान काला और कछुए की तरह चिपटा २ इम वृक्ष से निकला हुआ विप । और फैला हुआ होता है। सौरेय, सोरेयक-पञ्चा पुं० [सं०] सफेद वटसर्रया । श्वेत झिटी। सौराष्ट्री-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] गोपी चदन । सौर्य-वि० [म०] मूर्य सबधी। सूय का। सोरा ट्रय--वि• [स०] मोरठ प्रदेश का । गुजरात का टियावाड का । सौर्य --मज्ञा पुं० १ सूर्य का पुत्र, शनि । २ एक नगर का नाम । ३ सौरास्त्र--सज्ञा पु० [म०] एक प्रकार का दिव्यास्त्र । उ०--सोमा एक मवत्सर का नाम । ४ हिमालय के दो शृगो ना नाम । न्त्रहु सौरास्त्र सु निज निज रूपनि धार। रामहि सी कर जोरि सौर्यपृष्ठ-मज्ञा पुं० [म०] एक माम का नाम । सबै बोले इक वारं।--पद्माकर (शब्द०)। मौरिंध्र-मज्ञा पु० [स० सौरिन्ध्र] [स्त्री० सीरित्री] १ बृहत्सहिता के सौयप्रम--वि० [म०] सूय की प्रभा या दीप्ति सवधी [को॰) । अनुसार ईशान कोण मे स्थित एक प्राचीन जनपद । २ उक्त सार्यभगवत्--संज्ञा पुं० (म०] एक प्राचीन वैयाकरण का नाम जिनका उल्लेख पतजाल के महाभाप्य में है। जनपद का निवासी। सोरि--सज्ञा पु० [4] १ (सूर्य के पुत्र) शानि । • विजसार । अमन मौर्ययाम--सज्ञा पु० [म० मूर्य और यम सबंधी। सूर्य और यम का । वृक्ष। ३ हुलहुल का पौधा। आदित्यभक्ता। ४ एक गोत्र सौर्टी-नशा पु० [म० सौपिन्] हिमालय का एक नाम । प्रर्वतक ऋपि । ५ वृहत्सहिता के अनुसार दक्षिण का एक प्राचीन सर्योद यक--वि० [म०] सूर्योदय सबधी। जनपद । ६ यम का नाम (को०)। ७ कण का एक नाम (को०) । सौर्बल--सज्ञा पु०, वि० [सं०] दे० 'सौवर्चल' । ८ सुग्रीव का एक नाम (को०) । सोलकी--मशा पु० [हिं०] दे० 'सोलकी' । सौरि:--सज्ञा पुं० [म० शौरि] कृष्ण। दे० 'शौरि । उ०प्रत पुर सौल, मौला-मज्ञा पुं० [हिं० माहुल] १ राजगीरो का शाकुल । मे तुरत ही भयो सोर चहुँ ओर। बैठायो पर्यंक मे रकहि सीरि किशोर ।-रघुराज (शब्द०)। साहुल । २ हल के जूए के ऊपर की गाँठ । सौलक्षण्य-मशा पुं० [स०] शुभ या अच्छे लक्षणो का होना। सुल- सौरि--सज्ञा स्त्री० [हि० सॉवरि] श्यामा। रानि । रात । (लाक्ष०)। क्षणता। उ०--भूख न मान लावन सेती। नीद न मानै सौरि सपेती।- चित्रा०, पृ० २७ । सौलभ्य-सज्ञा पुं० [सं०] सुलभता । प्राप्ति की सुविधा। सौरि@-सज्ञा स्त्री० [हिं० सौर] लिहाफ । रजाई। दे० 'सौर"। सोल्विक-सज्ञा पु० [सं०] ठठेरा । ताम्रकुट्टक । उ०-- ना कू सांरि भरावंगी, लाला कू टोपा भरावगी। सोव--सशा पुं० [म०] अनुशासन । आदेश । पोद्दार अभि० प्र०, पृ० ६२५ । साव-वि० १ अपने सबध का । अपना । निज का । २ स्वर्गीय । सौरिक'--सज्ञा पुं० [स०] १ शनैश्चर ग्रह। २ स्वर्ग। ३ शराब मोवग्रामिक--वि० [सं०] [ी० सौवग्रामिको] अपने निजी गांव से बेचनेवाला। कलाल (को॰) । सवध रखनेवाला (को०)। सौरिका--वि० १ स्वर्गीय । २ सुरा या मद्य सबधी (ऋण)। शगव सोवर--वि० [स०] स्वर सबधी। किसी ध्वनि या सगीत के स्वर से के कारण होनेवाला (कर्ज) । ३ सुरा या मदिरा पर लगनेवाला सबध रखनेवाला (को०)। कर (को०)। सौवर्चल'--सज्ञा पुं० [स०] १ सोचर नमक । २ सज्जी मिट्टी। सौरिकीर्ण--सज्ञा पुं॰ [स०] बृहत्सहिता के अनुसार दक्षिण का एक सर्जिका क्षार। प्राचीन जनपद। सौवर्चल-वि० सुवर्चल नामक देश सवधी । सौरिरत्न-सञ्ज्ञा पुं० [स०] नीलम नामक मणि । सौवर्चला-सशा स्त्री॰ [म.] रुद्र की पत्नी का नाम । सौरी'--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सूतिका] वह कोठरी या कमरा जिसमे स्त्री सौवर्ण'--सशा पुं० [स०] १ एक कर्प भर सोना । २ सोने की वाली। बच्चा जने । सूतिकागार । जापा। जच्चाखाना। ३ सोना । सुवर्ण। सौरी'—पज्ञा स्त्री० [स०] १ सूर्य की पत्नी। २ सूर्य की पुत्री और कुरु सौवर्ण–वि० [वि० सी० सौवर्ण, सौवर्णा] १ सोने क । मोने का की माता तपती । तापती। वैवस्वती। ३ गाय । गी। ४ हुल- बना। २ तौल मे कर्ष भर । १६ माशे भर। हुल पौधा । ग्रादित्य भक्ता। सौरी--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शफरी] एक प्रकार की मछली। शप्कुली मौवर्णकड्यका--सज्ञा स्त्री० [सं०] कौटिल्य के अनुसार एक प्रकार के मत्स्य । उ०-मारत मछरी सहरी अरु सौरी गगरिन भरि।-- सिल्क का परिधान। प्रेमघन॰, भा० १, पृ०४८ । सौवर्णपर्ण-वि० [सं०] जिसके पख स्वरिणम हो [को०] । विशेष-भावप्रकाश के अनुसार इसका मास मधुर, कसला और सौवर्णभेदिनी--मञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] फूलफेन । फूलप्रियगु । प्रियगु । सौवर्णहर्म्य 4--सज्ञा पुं० [स०] रजत का हर्म्य या सभामडप (को॰] । सौरीय-वि० [स०] सूर्य सबधी। सूर्य का । सौणिक'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सुनार । स्वर्णकार । हृद्य है।