पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/६५

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४८५१ संरक्षणीय संयोगपृथक्त्व मतैक्य । 'भेद' का उलटा । ८ दो या अधिक व्यजनो का मेल । विशेष-कामराग, रूपराग, अपराग, परिघ, मानस, दृष्टि, ६ जोड । योग । मोजान । १० दो या कई वातो का इकट्ठा शोलवतपरभार्प, विचिकित्सा, औद्धत्य और अविद्या इन सबकी होना । इत्तफाक । जैसे—(क) जब जैसा सयोग होता है, तब गणना सयोजना मे होती है। वैसा होता है। (ख) यह तो एक सयोग को बात है । ११ मयोजनीय-वि० [सं०] जिसका सयोजन किया जा सके। सयोजन न्याय के २४ गुणो मे मे एक को०) । १२ मचय । समान या करने के योग्य। पूरक वस्तुओं का समुदाय (को०)। १३ शिव (को०)। १४ सयोजित-वि० सं०] मिलाया हुआ। जोडा हुआ। भौतिक सपर्क (को०)। सयोज्य-व० [स०] १ सयोजन के योग्य । मिलाने योग्य । २ जो मुहा०-सोग से = विना पहले से निश्चित हुए । इत्तफाक से । मिलाया या जोडा जानेवाला हो। दैववशात् । जैसे,—यदि सयोग से वे आ जाते, तो झगडा सयोध-मज्ञा पु० [स०] युद्ध । सग्राम [को०] । हो जाता। सयोधकटक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सयोगकण्टक] १ युद्ध का कांटा । २ सयोगपृथक्त्व-पञ्चा उ० [सं०] न्याय के अनुसार ऐमा पृथक्त्व या एक यक्ष का नाम। अलगाव जो नित्य न हो। मरजन'- वि० [स० सरञ्जन] १ प्रसन्न करने या रजन करनेवाला । सयोगमन - सञ्चा पु० [स० सयोगमन्त्र विवाह के समय पढा जाने- मानद देनेवाला [को०]। वाला वेदमन । रजन करना [को०] 1 सयोगविरुद्ध-पचा पुं० [स० वे पदार्य जो परस्पर मिलकर खाने सरजन'- सा पुं० मन को प्रसन्न करना योग्य नहीं रहते, और यदि खाए जायें तो रोग उत्पन्न करते सरभ-सचा पुं० [म० सरम्भ] १ ग्रहण करना । पकडना । २ आतु- रता। आवेग । क्षोभ । उद्विग्नता। ३ खलबली। बेकली। है । जैसे,—वरावर मात्रा मे घो और मधु, मछली और दूध । ४ उत्कठा । लालसा । शौक । उत्साह । ५ क्रोध । कोप । सयोग शृगार-सज्ञा पु० [स० सयोग शृङगार] शृगार रस का एक ६ शोक । ७ ऐठ। ठसक । गर्व। ८ फोडे या घाव का सूजना भेद जिसमे नायक नायिका के मिलन आदि का वर्णन होता या लाल होना (सुश्रुत) । ६ घनत्व । अधिकता। अतिरेक । है (को०। बहुतायत । १० प्रारभ । शुरु। ११ एक अस्त्र का नाम । १२ सयोग सधि-सञ्ज्ञा जी० [स० सयोगसन्धि] कामदकीय नीति शास्त्र के गरे । जुगुप्सा । घृणा (को०)। १३ अाक्रमण की प्रचडता (को॰) । अनुसार वह सधि जो किसी उद्देश्य से चढाई करने के उपरात यौ०-सरभताम्र = जो क्रोध या क्षोभ से लाल हो। सरभदृक् = उसके सवध मे कुछ तै हो जाने पर को जाय । (कामदक)। कोच से जिसकी अॉखे लाल हो गई हो। सरभपरुष = जो क्रोध सयोगित-वि० [सं०] सयोगयुक्त । सयोजित [को०] । के कारण कठोर या परुप हो। सरभरस = अत्यत क्रुद्ध । सयोगिनी-पज्ञा स्त्री० [स०] वह स्त्रो जो अपने पति के साथ हो । वह क्रोधपूर्ण। सरभरुक्ष = क्रोध के कारण अत्यत स्त्री जो प्रिय से वियुक्ता न हो (को०] । सरभवेग = क्रोध का आवेश । क्रोधावेश । संयोगी-सच्चा पु० [स० सयोगिन्] [त्री० सयोगिनी १ मेल का। सरभो-वि० [स० सरम्भिन्] १ क्रुद्ध । कोपाविष्ट । २ उत्तेजित । मिला हुअा। २ सयोग करनेवाला। मिलनेवाला । ३ वह विक्षुब्ध। ३ घमडी। अहकारी। ४ उद्योगी। व्यव- पुरुप जो अपनी प्रिया के साथ हो । ४ व्याहा हुआ । विवाहित । सरक्त-वि० [सं०] १ अनुरक्त । आसक्त । प्रेममग्न। २ सुदर। सयोजक-वि०, सज्ञा पुं० [स०] १ मिलानेवाला । २ व्याकरण मे मनोहर । ३ कुपित । क्रोध से लाल । ४ रगीन । लाल (को०) । वह शब्द जो शब्दो या वाक्यो के बीच केवल जोडने के लिये ५ आवेश से भरा हुआ (को०)। आता हे। ३ किसी सभा, समिति या किसी प्रकार के कार्य की सरक्ष-शा पु० [सं०] देखभाल । रक्षण । [को०] । योजना करनेवाला (को०)। ४ घटित या निर्मित करने सरक्षक-सक्षा पुं० [स०] [स्त्री० सरक्षिका] १ रक्षा करनेवाला। वाला (को०)। रक्षक । २ देखरेख और पालन पोपण करनेवाला । ३. सहा- सयोजन-सञ्ज्ञा पु० [१०] [वि० सयोगी, सयोजनीय, सयोज्य, सयोजित] यक | ४ अाश्रय देनेवाला। १ जोडने या मिलाने की क्रिया । २. सहवास । स्त्री पुरुप का सरक्षकता-सज्ञा स्त्री० [स०] सरक्षक होने का भाव । देखरेख प्रसग। ३. समार के बधन मे रखनेवाला। भववधन का करना को०] । कारण (बोर)। ४ आयोजन । व्यवस्था। प्रबध। सरक्षए - सञ्चा पु० [सं०] [वि॰ सरक्षी, सरक्षित, सरक्ष्य, सरक्षणीय] इतजाम। १ हानि या नाश आदि से बचाने का काम । हिफाजत । २. सयोजना-सज्ञा स्त्री० [स०] १ आयोजन । व्यवस्था। इतजाम । देखरेख | निगरानी । जैसे,—वालक उनके सरक्षण मे है। ३ तैयारी। २ मेल । मिलान । ३ सहवास । स्त्री पुरुप का अधिकार । कब्जा। रोक । प्रतिवध । ५ रख छोडना । प्रसग । ४ भवबंधन का कारण। जन्म मरण के चक्र मे बद्ध सरक्षणीय-वि० [सं०] [वि० सी० सरक्षणीया] १ रक्षा करने योग्य । रखनेवाली बाते (बौद्ध)। हिफाजत के लायक । २. रख छोडने लायक । कठोर। सायो [को०] ।