पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/७५

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श्रोता। संश्राव ४८६१ ससत्, ससद् सश्राव-गज्ञा पुं० [२] [वि० सश्रावणीय, सथावित, सश्राव्य] १. सश्लेपी-वि० [स० सश्ले पिन्] [वि० पी० सरलेपिणी] १ मिलाने- कान देना । सुनना । २ अगीकार । स्वीकार । वाला । जोडनेवाला। २ प्रालिंगन करनेवाला । भेटनेवाला। सश्रावक-सशा पु० [सं०] १ सुननेवाला । २. चेला । सश्वत्-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'सश्चत्' (को०] । शिष्य । ससग-सबा पु० [सं० ससङग] सयोग । लगाव । मवध (को०] । सश्रावयिता-वि० [म० सश्रावयितु] घोपित करनेवाला। सुनाने- ससगी-वि० [स० ससद्धिगन्] १ साथ लगनेवाला । २ ससर्ग या वाला [को०)। सपर्क में आनेवाला (को०] । सश्रावित-वि० [स०] १ सुनाया हुआ। २. जोर जोर से पढकर सस-सहा पुं० [स० सणय] सशय । पाशका । उ०-कररणा करी सुनाया हुअा। छाँडि पगु दीनो जानी सुख मन सस । सूरदास प्रभु असुर सश्राव्य--वि० [म०] १. सुनाने योग्य । २. सुनाई पडनेवाला । निकदन दुप्टन के उर गस -सूर (शब्द॰) । मश्रित'--वि० [स०] १ जुडा या मिला हुआ। सयुक्त । २ लगा सस-सचा पुं० [देश० या स० शस्य, प्रा० सस्स ( = पैदावार, फसल)] उन्नति । बढती। वृद्धि [को०] । हुया । टिका वा ठहरा हुअा। ४ आलिंगिन । सश्लिष्ट । गले या छाती से लगाया हुआ। ५ भागकर शरण मे गया हुआ । ससइ-सक्षा पु० [स० सशय] दे० 'सशय' । जिमने जाकर पनाह ली हो । ६ जिसने आश्रय ग्रहण किया ससइ-वि० [सं० सशयिन्, प्रा० ससड] सशययुक्त । हो। जो निर्वाह के लिये किमी के पास गया हो। ७ जिमने करनेवाला। सेवा स्वीकार की हो। ८ जो किसी बात के लिये दूसरे पर ससउ-सञ्ज्ञा पु० [स० सशय] दे० 'सशय'। उ०-अजहूँ कछु निर्भर हो। भामरे या भरोसे पर रहनेवाला। पराधीन । ससउ मन मोरे । करहु कृपा विनवौं कर जोरे ।-मानस, ६ आसक्त । परायण (को०) । १० न्यस्त । निहित (को०)। १।१०६ । ११. उपयुक्न । उचित (को०)। १२ अगीकृत । गृहीत । ससकिरता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सस्कृत] सस्कृत भाषा। उ०-भाषा तो स्वीकृत (को०)। १३ सवधी । विषयक (को०)। सतन ने कहिया, ससकिरत ऋषिन की बानी हे।-कवीर रे०, सश्रित-सचा पु० सेवक । भृत्य । परावलनी व्यक्ति । पृ० ४६ । मश्रुत-सज्ञा पु० [स०] १ खूब सुना हुआ। २ खूब पढकर सुनाया ससक्त-वि० [स०] १ लगा हुआ। सटा हुआ। मिला हुआ। २ हुआ। ३ स्वीकृत । माना हुा । मजूर । ४ प्रतिज्ञात । वादा भिडा हुआ (शत्नु से)। ३ सबद्ध । जुडा हुआ। ४ प्रवृत्त । किया हुआ (को०)। लगा हुआ । मशगूल । लिप्त । लीन । ५ आसक्त । सश्लिष्ट'-वि० [सं०] १ खूब मिला हुआ । जड़ा हुआ । मटा हुआ। लुभाया हुआ । लुब्ध । प्रेम मे फंसा हुआ। ६ विषय वासना २ एक साथ किया हुआ। ३ समिलित। मिश्रित । ४ एक मे लीन । ७ युक्त । सहित । पूर्ण । ८ मघन। घना। मे मिलाया हुग्रा। गड्डबड्ड। अस्पष्ट । अनिश्चित । ५ ६ अव्यवस्थित । मिश्रित (को०)। १० ममीपवतीं । निकट- आलिंगित । परिरमित । भेटा हुआ। ६ सज्जित । युक्त । वती (को०) । ११ अनवरत । लगातार । निरतर (को०)। महित (को०)। १२ अस्पष्ट (वारणी) (को०)। यो०-सश्लिष्ट कर्म = वे काम जिनमे अच्छाई बुराई का पता न यौ०--समक्तचेता, समक्तमना = जिसका मन किमी मे ग्रामक्त या चल सके। सश्लिष्टकर्मा = अविवेकी। भले बुरे की पहचान न करनेवाला। लीन हो । ससक्तयुग = जुए मे नँधा हुया । सश्लिष्ट'-सञा पुं० १ राशि । ढेर। समूह । २ एक प्रकार का समक्त सामत-सज्ञा पु० [स० ससक्त सामन्त] पराशर स्मृति के चंदोबा या मडप । (वास्तु)। अनुसार वह सामत जिसकी थोडी बहुत जमीन चारो ओर हो और कही पूरे गाँव भी हो। सश्लेप-महा पु० [स०] १ मेल । मिलाप । सयोग । २ मिलान । मटाव । ३ प्रालिगन । परिरभरण । भेटना । ४ चर्म रज्जु । ससक्ति-सपा सी० [स०] १ लगाव। मिलान । २. जोड । वध। नरत्ना । बधन । पाश (को०) । ५ जोड । सधि (को॰) । ३ सवध | ४. आसक्ति । लगन । ५ लीनता। ६ प्रवृत्ति सश्लेषण-मा पु० [म०] [वि० सश्लेषणीय, सश्लेपित, सश्लिष्ट] ससगरी-वि० [सं० शस्य(= अन्न, फमल) + आगार] १. उपजाऊ । १ एक मे मिलाना। जुटाना । सटाना। २ लगाना । अंट- जिसमे पैदावार अधिक हो। २ लाभदायक । फायदेमद । काना । टाँगना। ३ सवद्ध करना (को०)। ४ बाँधने या वरकतवाला। जोडनेवाली वस्तु । ससज्जमान वि० [स०] १ साथ लगनेवाला। अनुषगी। २ स्खलित। सश्लेपपा-सरा स्त्री॰ [म०] दे० 'सश्लेपण' । अस्पप्ट (स्वर)। जो शोक के कारण म्पप्ट न हो (वाणी)। सश्लेषित-वि० [सं०] १ मिलाया हुआ। जोडा हुअा। सटाया ३ जो तैयार हो [को०। हुा । २ लगाया हुआ । अटकाया हुआ। ३ आलिंगन किया ससत्, ससद्'--सज्ञा पुं० [स०] १ नमाज । मभा। मटली। २ राजसभा । दरवार । ३. धर्मसभा । न्याय सभा। न्यायालय । हुआ।