पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/८४

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- सहर्ता ४६०० महिता सहर्ता--वि० सञ्चा पुं० [सं० सह] [पी० सहर्नी] १ इकट्ठा करने सहारकाल--सज्ञा पुं० [सं०] शिश्व के पास TT मा । प्रायकात । वाला। बटोरने या समेटनेवाला। कन करनवाला । २ नाश उ.--घटा निष्ट गर का माग प्रायो। मटार कार करनेवाला । ३ वध करनेवाला । मारनेवाला । जनु कान गा गयो । गत (गन्द०)। सहर्प 4-सज्जा पुं० [सं०] १ उमग से रोगो का खडा होना । पुलक। महारना --नि० [सं० हJ१ मार ानना। 30-- उमग। २ भय से रोगटे खडे होना। ३ चढा ऊपरी। एक ग्राहि धनुप गरन गगा। जोहि धाप मामुर माग। दूसरे से बढ़ने की चाह । स्पर्धा । लाग डॉट । होउ । 8 -जायगो (गद०) । २ नाग नाजिम करना । ईर्ष्या । डाह । ५ वायु । हवा (को०)। ६ प्रसन्नता । पानद । महार भैरव--सा पुं० [सं०] मैग्य के प्राट म्प, या मृतियो म म हर्ष (को०)। ७ काम का वेग । कामोत्तेजना (को०)। कानगरम। ८ सघर्ष । रगड । ९ मर्दन । शरीर की मालिश । महार मुद्रा-यया 'मी० [१०] नाविक जामे अगा की एक प्रकार सहर्षए' '--सहा पुं० [स०] [वि० सहपित, सहप्ट] १ पुलकिन होना । को स्थिति, जिा गिर्जन मुद्रा भी कही है। २ स्पर्धा । लाग डॉट । चढा ऊपरी। महारिक-वि० [म०] मा छ गहा जाता। सहर्षए'-वि० [वि० सी० महपिणी] पुलकित करनेवाला । प्रानद सहारी--० [३० मारिन् | नाश पाता। पिना करना। से प्रफुल्लित करनेवाला। महार करनेवाला (को०)। महर्षा-सहा स्त्री० [सं०] पित्तपापडा । पर्पटक । शाहता। सहाय--वि० [८०११ समेटने रा टोग्ने यो र। ग्रहर ने रोग। सहर्पित-वि० [म०] पुलकित । रोमाचिन । "कट्ठा करने वापरा. कन्या यार दूर म्यान पर करने पोल्य । हटाने मारे जाने नागा। ३ जिन ने सहर्षी--वि० [स० सहपिन् । [वि० सी० सहपिणो १ पुलकित होने- जागा हो।। गेहन गोप। नियाग या परिवार के योग । वाला। २ पुलकित करनेवाला। ३ स्पर्दा या इया करनेवाला। जिोगनाटा। जिपमा निधारणा परिहार करना हो । ६ फुनो गा हसाने योग्य । OfTO किमी पहरू या सहवन--सपा पुं० [स०] १ चार मकानो का चौकोर समूह । २ अधिकार हो (को०)। साथ मिलकर हवन करना । ३ उचित या ठोक ढग से यज्ञादि महित-पि० [सं०] १ एक गाय किया हुपा। परन किया हुआ। करना । ययोचित रीति या मरणि से यज्ञ करना (को०] । बटोग हुमा । गमेटा हुमा । २ मिलिन । मिलाया दुपा। संहात-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ सघात । नमूह । जमावडा । वि० दे० 'सघात'। २ एक नरक का नाम । ३ शिव के एक गरण ३ जुडा हुपा। नगा हुप्रा । । ८ मयुरा । हिन । अन्वित। पूर्ण। " नेत्र में प्राया हुप्रा । हेल मेलवाला। का नाम। मेगी। ६ कम पा परप-गन मचा गाव न्गनेवाला। सहात्य-मझा ० [म०] समझोने की शर्ता का परियाग। मपि को ७ शाहुपा। मानो लिपे जो धनुष परागा हो शों को न मानना या मग करना को०] । (को०)। प्रनगर (गो०)। चिन । निमिा (को०)। सहार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक साथ करना । सट्ठा करना! सहित पुष्पिण -- " मी० [३०] १ गोगा नाग 7 गाग। समेटना। २ सग्रह । मवा। ३ मकोव । पापन । मिटना। धनिया। ४ समेटकर वाना। गूथना (के शो का)। जैपे, गोण - नहिता--- पशा पी० [म०] १ मे । शितावट । मयो । २ सहार । ५ छोडे हुए वारण को फिर वाम नेना । ६ गुनासा । पाणिनि चार ण पानिमापिर न्द जिमो अनुमा सा । मक्षेप कपन । ७ नाश । धम। ८ ममाति। अन । दो वर्गा का प अत्यत (प-म) मनिपं होता है। खातमा। जैसे,-रूपक के किसी अक या पकता। काव्य- मारिनारो वेदा के मंत्री पा सकलन सहार।६ कल्पात । प्रलय । १० एक नरक का नाम । और गरे । तो विना गैति का (मिमे मारणा ११ कौशल । निपुणता । १२ व्यर्थ करने का किया । नुमारी माप को गई हो) पाठ । रह यब निममे पदपाठ निवारण । परिहार । रोक । जैसे,--किसी अम्न का सहार । ग्रादि का ना निरमानुगा नना नाता हो। लाय निका १३ उच्चारण सवधी एक दोप (को०)। १४ झुड । पाठ प्रानीन वाा मे गृही। ना पाता हो। जैने-मनु, समूह (को०)। १५ अभ्याम । निरतर प्रवृत्ति (को०)। गति आदि को धर्मसहिताए या मात्रा । १६ भीतर की पोर करना । अदर करना। सिकोडना। विशेष-- स्मृति या धर्म शास्त्र नबधी १६ पहिताएँ ही जाती हैं जैसे,--हाथी द्वारा अपनी सूड (को०)। १७ सहारक । महर्ता जिनमे मनु, अन्त्रि, विष्णु, हारीत, त्यावा, बृहस्तनि, नारद, (को०) । १८ एक असुर (को०)। परापर, व्याम, दक्ष, गौतम गादि पमिद है। रामायण सहारक-वि०, सञ्चा पुं० [स०] [को० सहारिका] १ महार करनेवाला । को मी कमी कभी महिता कह देते है। वेदव्यास कृत एक सहर्ता । नाणक । २ सोवन करनेवाला । सक्षिप्तकर्ता 'पुराण महिता' का मो उल्लेख मिलता है (दे० 'पुगण') । (को०) । ३ सग्रहकर्ता । एकत्र करनेवाला । इसके अतिरिक्त और विपयो के ग्रथ मी महिना कहे जाते हैं। सहारकारी-वि० [सं० महारकारिन्] [वि० सी० सहारकारिणी] जैसे --भृगुमहिना (फलित ज्योतिप), गगमहिता (कृष्ण सहार या नाश करनेवाला। की कथा) आदि । नधि।