नोपना। लगाव सहिति ४६०१ संकोचना' ४ सकलन । मग्रह । मचय (को०)। ५ नियमानुसार विशिष्ट मउपना पुt- 7 [म० समर्पण, प्रा० मपपण, हि० सौपना] रूप मे कम्बद्ध गद्य पद्य यादि का सगह (को०)। ६ समार का भरणपोपण करनेवाली परम गविन (को०)। संकरा--वि० [म० महकीणे] [वि० सो गॅरी] जो अधिक चौडा वेदो का मन माग । मुख्य वेद । विराप दे० 'वेद' । या विस्तत न हो। पतला गीर तग । जमे,-मैकरा गम्ता। यो०--पहिताकार = सहिता का रचयिता । महितापाठ = वेद के संकरा-पचा पु० कष्ट । टुस । विपत्ति । मत्रो का मुव्यवस्थित कम। मुहा० -मॅकरे मे पड़ना = दुख मे पड़ना । कष्ट मे पडना । सहिति - राज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक मा० रखना। या मपक- सँकरा पु-पन्ना सी० [सं० सपना पला । नाकल । सीकट। स्थापन [को०] । जजीर। उ०-धु घरवार अनके विप भरे । नफरे प्रेम चहुँ सहूति [-पका स्त्री॰ [म०] १ शोर । हल्ला। २ एक साथ पुकारना । गये परे।- जायसी (शब्द०)। एक साथ चिल्लाना [को०] । संकरा - सच्चा पुं० [म० शहराभरग] एक राग । दे० 'शक राभरण' । सहृत -वि० [स०] एकत्र किया हुशा। ममेटा हुआ । २ सगृहीत । सँकराना' -क्रि० स० [हिं० सेंकरा+पाना (प्रत्य॰)] १ मकुचित जुटाया हुआ। ३ नष्ट । ध्वस्त । ४ ममाप्त। खत्म । ५ करना । तग करना।२ वद करना। निवारित। रोका हुा । ६ जिसे सक्षिप्त किया गया हो। संकराना-क्रि० अ० सकुचित या मकीर्ण होना। जैसे, यह सकुचित (को०) । ७ अपहृत (को॰) । रास्ता आगे चलकर सँकरा गया है। सहृति -सझा जी [स०] १ बटोरने या समेटने की क्रिया । २ सग्रह। संकलपना gf-क्रि० अ० [स० सडकल्प] सकल्प करना। त्याग जुटाव । ३ नाश । ध्यम'। ४ प्रनय । ५ अत । समापिन । करना । छोड देना। उ०--सुख मफलपि दुःख मांबर लीन्हेउ । ६ रोक। परिहार। ७ सक्षेप । खुलासा। ८ ग्रहण । -पदमावत, पृ० १३७ । धारण (को०)। ६ हरण। छीनना । लूट खसोट । सँकाना -क्रि० अ० [सं० शदक] शक्ति होना। भीत होना । महृषित-वि [स०] १ पुलकित । रोमाचित । सहर्पित। २ भय के डरना । उ०-मुह मिठान दृग चीने, भीह सरल सुभाय । कारण जड या निश्चेष्ट [को०। तऊ खरे पादर खरी, छिन छिन हियो मंकाय ।-विहारी महृष्ट-वि० [स०] १ अचित । खडा (रोम)। २ जिसके रोएँ (शब्द०)। उमग से खडे हो । पुलकित । प्रफुल्ल । ३ जिसके रोगटे डर संकारा -सञ्ज्ञा पुं० [सं० सकान] प्रात कान । उप काल । उ०- से खडे हो । डरा हुआ । भीत । ४ प्रतिस्पर्धा के कारण दीप्त वहै पुकारहिं माँझ सकारा-पदमावत, पृ० १०८ । (को०)। ५ प्रज्वलित । जलता हुआ । प्रदीप्त (अग्नि)। यौ० -सहृष्टमना = प्रमन्नमना । हर्पित हृदय । सहृष्टरोमाग, संकुचना-क्रि० अ० [हिं० मकुचना] सकुचित होना । दे० 'मकुचना' सहृष्टरोमा = प्रसन्नता के कारण जिसके शरीर के रोएँ खडे संकुचाना-क्रि० प्र० [हिं० मकुचाना] २० भकुवाना'। हो। महृष्टवत् = प्रसन्नता या उल्लासपूर्वक । सहृष्टवदन = संकेता-वि० [हिं०] १ दे० 'सँकरा'। २ ० 'सकेत"। जिसका चेहरा प्रसन्नता से खिल या दमक रहा हो। संकेतना'--कि० म० [स० मवीर्ण] मकट मे डालना। कप्ट मे सहप्टो-वि० [म० महष्टिन् ] उत्तेजित । उत्यित। खडा । जैसे- डालना । आपत्ति मे डालना। उ०--भएउ चेत, चेतन चिन पुरुप की जननेद्रिय [को०। चेता । नैन झरोखे जीव संकेता ।-जायमी (ब्द०)। सह्राद-मशा पुं० [स०] १ ऊँचा म्वर । चीख । २ एक असुर जो सकेतनाgf--कि० अ० मतीर्ण होना । सचिन होना । मुदना । हिरण्यकशिपु का पुत्र था । ३ शोर । कोलाहल । उ०--कवल मँकेता कुमुदिनि फूली। वाई बिछुरि प्रवक सह्रादन-ससा पुं० [म०] चिल्लाना । कोलाहल करना। शोर मचाना । मन भूली ।-पदमावत, पृ० ५४२ । चीखना। संकलना-नि:०म० [म० मंडष्ट] बीचकर एपन्न करना। ममे- सह्रीग-वि० [स०] १ पूर्णतया लज्जित या शर्मिदा । २ सकोचशील । टना। उ०--मानहु तिमिर अरुनमय समी। विरची विधि सलज्ज [को०)। मॅकेलि मुजमा सी।--मानन, २०२३६ । (5) ग्राएउ इहाँ सह्लाद-परा पुं० [सं०] १ आनद विशेष। २ दे० 'सहाद' [को०)। समाज मॅकेली ।--मानस, २०६७ । मलादी-वि [सं० सहादिन् ] प्रसन्नता से भरा हुआ। प्रफुल्ल । मंकोच--मपा पु० [म० मडकोच] ३० 'नरोच' । उ०--नीच कीच हपित । प्रानदयुक्न [को०] । पिच मगन जम मीनहिं सलिल मॅगच। -मानन, १२५१ । संइतना-क्रि० स० [स० सञ्चय] १ लीपना। पोतना । चौका संकोचना'--क्रि० स० [सं० सडकोच माचिन करना । मकोच लगाना । २ सचय करना। ३ सुरक्षित रखना । ठिकाने से करना । उ०--नीद न परति राति प्रेम पनु एक भांति मोचत रखना । सहेजकर रखना। ४ यह देखना कि जितना और संकोचत विरचि हरि हर के |--तुलमी (पद०)। जैसा चाहिए, उतना और वैसा है या नही । महेजना। संकोचना'-वि०म० मवृचित होना । स० १० १०-६
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/८५
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