पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९१

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सकर्मा ४६०७ सकाम है, जो खाई जाती है, इसलिये यह सकर्मक क्रिया हुई। इसी सकलेश्वर- तज्ञा पुं॰ [स०] विष्णु का एक नाम । प्रकार देना, लेना, मारना, उठाना आदि सकर्मक क्रियाएँ है । सकल्प'--तथा पु० [म०] शिव का एक नाम । सकर्मा--वि० [स० सन्]ि १ साथ साथ अथवा एक प्रकार का सकल्प-वि० वेद के एक अग कल्प से युक्त । वेद के उस अग से युक्त काम करनेवाल।। २ दे० 'मकर्मक' [को०) । जिसमे यज्ञादि का विधान किया गया है ।को०] । सकल'--वि० [सं०] १ सब । सर्व । समस्त । कुल । २ कलायो से सकवा-मठा पुं० [हि० माखू] शाल । अश्वकर्ण । युक्त (को०)। ३ मद और मधुर स्वरवाला (को०)। ४ सकषाय-वि० [म०] १ जो कपाय रस से युक्त हो। कसैला। २ जगत् से प्रभावित । ५ व्याज देनेवाला (को॰) । जागतिक वासनायो काम, क्रोध आदि से युक्त (को॰] । यो०-सकलकामटुघ, सकलकामप्रद = सभी कामनाएं पूर्ण करने- सका-ममा पु० [अ० शख्स] दे० 'शख्स' । वाला । उ०--मकल कामप्रद तीरथराऊ ।--मानस, २।२०३ । सकसकाना -क्रि० अ० [अनु॰] बहुत डरना । डर के कारण कांपना। मकलवर्ण = जो क और ल वर्ण से युक्त हो । कलह । उ०-सकसकात तनु मीजि पसीना उलटि उलटि तन जोरि जुभाई।-सूर (शब्द०)। सकल---सखा पु० १ रोहित तृण । गध तृण । रोहिस घास। २ निर्गुण ब्रह्म और सगुण प्रकृति । ३ समग्र वस्तु । प्रत्येक सकसना-फि० अ० [हिं० म + कसना] इतना कस उठना कि जरा सा भी स्थान स्थाली न रहे । २ डरना। भयभीत होना। तीन वस्तु । हर एक चीज (को०)। ४ दर्शनशास्त्र के अनुसार प्रकार के जीवो मे से एक प्रकार के जीव । पशु । सकसाना-क्रि० अ० [अनु०] डर मानना। भयभीत होना। उ०-दस्तेबाज बारन के द्वार ठाढे रस्ते पर छिति के अधीस विशेष--जीव तीन प्रकार के माने गए हैं--विज्ञानाकल, प्रलया- दस्तवस्त सकमात हे।--नकछेदी (शब्द॰) । कल, और सकल । सकल जीव मल, माया और कर्म से युक्त सकसाना-क्रि० स० इतना अधिक भर देना कि जगह खाली न रह होता है। इसके भी दो भेद कहे गए हे-पक्व कलुप और जाय । अडसाना । ठूमना। अपक्व कलुप । सका-सचा पुं० [अ० मक्का) १. पानी भरनेवाला, भिश्ती। २ वह सकल --सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० शक्ल] दे० 'शकल' । जो घूम घूमकर लोगो को पानी पिलाता हो, विशेषत मशक सकलकल-वि० [स०] सपूर्ण, सोलहो कलानो से युक्त (चद्रमा)। मे (मुसलमानोको) पानी पिलानेवाला। सकलखोरा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० शकरखोरा एक पक्षी । दे० 'शकरखोरा'। सकाकुल-सज्ञा पुं० [१] १ एक प्रकार का कद जिसे अबर कद सकलजननी-सला स्त्री॰ [म.] प्रकृति । कहते हे। २ एक प्रकार का शतावर। ३ शकाकुल मिस्री। सकलदार--वि० [अ० शक्ल + फा० दार (प्रत्य॰)] शक्लवाला । सुधामली। सूरतवाला । खूबसूरत । उ०--सकलदार मै नही, नीच फिर सकाकुल मिसरी-सझा स्त्री० [१] दे० 'मकाकुल मित्री। जाति हमारी ।-पलटू०, पृ । सकाकुल मिस्री-सज्ञा स्त्री० [१] १ सुधामूली। २ गबरकद । सकलप्रिय-सज्ञा पुं॰ [स०] १ वह जो सवको प्रिय हो। सबको सकाकोल-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ मनु के अनुसार एक नरक का नाम । अच्छा लगानेवाला। २ चना । चरणक । २ नरक भूमि । यमपुरी जहाँ काकोल नाम का नरक है । सकललक्षरण-सद्धा पुं० [स०] शाल निर्यास । धूना । राल । सकाना पु-क्रि० अ० [म० शडकन] १ शका करना । सदेह करना। सकलसिद्धि--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ वह जिसे सब सिद्धियाँ प्राप्त हो । डरना । उ० - (क) जोरि कटक पुनि राजा घर कहँ कीन २ समग सिद्धियाँ । मभी विषयो मे सफलता । पयान । दिवसहिं भानु अलोप भा वामुक इद्र सकान |-जायसी (शब्द०)। (ख) देखि सैन बज लोग सकात । यह आयो सकलसिद्धिदा--सज्ञा पु० [स०] तानिको के अनुमार एक पैरवी का कीन्हे कछु घात ।—सूर (शब्द०)। २ भय के कारण सकोच करना । हिचकना । ३ दुखी होना । रज होना । सकलात--सहा पुं० [स० सकाल ( = ऋतु या अवसर के उपयुक्त)?] सकानारे-क्रि० म० 'सकना' का प्रेरणार्थक रूप | उ०-जिमि थल १ ओढने की रजाई। दुलाई। उ०-(क) लग्यो शीत गात बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाति कोउ करै उपाई।- सुनो वात प्रभु कॉपि उठे दई सकलात आनि प्रीति हिये भोई मानस, ७१११६॥ है। (ख) शीत लगत सकलात विदित पुरुषोत्तम दीनी। शौच गए हरि सग कृत्य सेवक की कीनी ।--भक्तमाल (शब्द०)। विशेप-इसका क्वचित् हाम्य प्रयोग भी प्राप्त होता है । सकाम-या पुं० [सं०1१ वह व्यक्ति जिसे कोई कामना या इच्छा २ उपहार । भेट । सौगात । उ०-सौ गाडी सकलात सलोनी। हो। २ वह व्यक्ति जिमकी कामना पूर्ण हुई हो। लब्धकाम । पातसाह को जात पठीनी।-लाल कवि (शब्द०)। ३ कामतामना युक्त व्यक्ति । मैथुन की इच्छा रखनेवाला सकलाधार- सज्ञा पुं० [स०] शिव का एक नाम । व्यक्ति । कामी। ८ वह व्यक्ति जो कोई कार्य भविष्य मे फल सकली-सज्ञा स्त्री० [हिं०] मत्स्य । मछली। मिलने की इच्छा से करे। जो निस्वार्थ होकर कोई कार्य ने सकलदु-समा पु० [स० सकलेन्दु] पूर्णिमा का चद्रमा । करे, बरिक स्वार्थ के विचार से करे । ५ प्रेम करनेवाला। । यौ० --सकलेदुमुख = जिसका मुख पूर्णिमा के चाँद जैसा हो। नाम। प्रेमी। mm-