पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९२

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सकाम निर्जरा ४६०८ सकुवना सकाम निर्जरा-सञ्ज्ञा ली० [स०] जैनियो के अनुसार चित्त की वह यौ०-सकाल विकाल = (१) गुबह शाम । (२) हर नमर । वृत्ति जिममे बहुत अधिक क्षति होने पर भी शत्रु या पीडा हर कान। देनेवानो को परम शातिपूर्वक क्षमा कर दिया जाना है। यह मकालत-पशा री० [अ० नकालन] १ मकीन या गरिष्ट होने का वृत्ति उपशात चित्तवाले माधुग्रो मे होती है । माव । २ गुरना । भारीपन । सकामा-सधा स्त्री॰ [स०] वह स्त्री जो मैथुन को इच्छा रखती हो। सकाश-वि० [१०] दृश्यमान । पाम । निकट । ममीप । कामपीडिता । कामवती। सकाश-सपा पु०१ मामीप्य । निकटता। २ पटोन । प्रतिवेग । सकामारि-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] कामियो वा विषयी जीव के शव, गिव ३ उपस्थिति (को०] । (को०] । सकाश-प्रय. पाम । निकट । ममीप । सकामी-सञ्ज्ञा पुं० [स० सकामिन्] । वह जिसे किसी प्रकार की सकिलना-नि० अ० [हिं० फिमनना ा अनु०] १ फिमनना । कामना हो । कामनायुक्त । वासनायुक्त । २ कामी । विपयो । सरकना। २ गिगटना। मिना। उ-उपरत वार सकारा'-मधा पु० [सं०] १ 'म' अक्षर। २ 'म' वर्ण की सी मकिन गई नापा । नयो तहां ते न प्राITFI - गज ध्वनि। जैसे,—उसके मुंह मे नकार भी न निकला। ३ (शब्द०)। ३ हो मकना । पूरा होना। जैसे,—तुममे यह सगण (115)। काम नही मफिन किता। ८ एकत्र होना। बटुना। सकार-वि० उत्साही । सकिन । फुर्तीला को०] । पुजीभूत होना । उ०-मेगा महिगन गो जन पावन । गकिलि अननमग चलेऊ मुहावन ।-मानस, १३६ । सकारथा--वि० [स० मु+कार्यार्थ] १ मार्थक । उपयोग मे पाने सफिलाना! -कि० म० [हिं० नकिनना का माप] १ मिनाना । लायक । २ सफल । अकारथ का उलटा। गरकाना। २ मिमटना। समेटना । ३ पूरी करना। सकारना--क्रि० अ० [स० स्वीकरण] १ स्वीकार करना। मजूर निम्पन्न करना । एमन्न कना। बटोरना । करना । २ महाजनो का हुडो की मिती पूरी होने के एक दिन सकीन--मजा पुं० [देश॰] एक प्रकार का जतु । पहले हुडी देखकर उसपर हस्ताक्षर करना । सकीवकी पु-मसा स्त्री० [हिं० मकई = शनि) + वक( = बकने की विशेष--जो लोग किसी महाजन को हुडी पर रुपण देते है, वे क्रिया)] १ शक्ति । मामर्थ्य । २ पड बट करने की बात । मिती पूरी होने से एक दिन पहले अपनी हुडी उन महाजन वट बढकर बोलना। उ-मकोबको नब गहन हिराई। के पास उसे दिखलाने और उससे हस्ताक्षर कराने के लिये ले प्रभु बिन तो कह कौन छोडाई । -गुलान०, पृ० २८ । जाते हैं। इससे महाजन को दूसरे दिन के दातव्य धन की सकीन-वि० [स० नदीगं] • 'मकोणं' । उ०-घल सकीनं सूचना भी मिल जाती है और रुपये पानेवाले को यह निश्चय ईकार लघु, दीर्घ दोन है नाहिं ।-पोद्दार अभि० ग्र०, भी हो जाता है कि कल मुझे म्पए मिल जायेंगे । पृ० ५३३ । सकारा'----सपा पु० [स० स्वीकरण] १ महाजनी मे वह वन जो हुटी सकील' -वि० [अ० नकोल] १ जो जन्दी हजम न हो। गरिष्ठ। सकारने और उमका समय फिर मे बढाने के लिये लिया जाता गुरपाक । २ भारी। वजनी। ३ जो कठिन हो । क्लिप्ट है। २ सुबह का समय । (शब्द०)। सकारा' -सञ्ज्ञा पुं० [व० मकाल] सुबह । प्रभात । सकील'-मया पुं० [म०] समोा कार्य में कमजोर पड़ने के कारण सकारे, सकारै-कि० वि० [म० सकाल] १ प्रान काल । मबेरे । अपनी पत्नी को स्वयं ममोग करने के पहो किमी और व्यक्ति तडके । उ०--अवधेश के द्वारे सकारे गई, सुत गोद के भूपति मे सयुक्त करानेवाना पुरप (को०] । लै निकसे। अवलोकिहाँ सोच विमोचन को ठगि सो रही, जे सकुत-सञ्ज्ञा पुं० [म० शकुन्न, प्रा० मकुन] २० 'शकुत' (पक्षी)। न ठगे धिक से ।—तुलसी (शब्द॰) । -अनेकार्य०, पृ० १०१। यौ०---साँझ सकारे = सायकाल और प्रात काल। सुबह शाम । सकुक्षि -वि० [स०] एक ही पेट से पैदा होनेवाला । महोदर फि०] । उ०--गए मयूर तमचूर जो हारे । उन्हहिं पुकारे साँझ सकारे। सकुच@T -सया पुं०, स्री० [० मटकोन] नकोत्र । लाज । शर्म । --जायसी (शब्द०)। उ०-(क) सुनु मैया तेरी सौ करो यानी टेव लरन की, सकुच २ नियत समय पर । ठीक वक्त पर । (क्व०)। वैचि मी खाई।-तुलमी (शब्द०)। (ख) मकुन मुग्त प्रारभ सकारौ-क्रि० वि० [हिं० सकारे] दे० 'सकारे'। ही, विधुरी लाज लजाय । ढरकि ढार टुरि ढिग भई, ढीठ सकार्थी-वि० [हिं० सकारय] २० 'सकारथ'। उ०-नानक गुर ढिठाई प्राय ।-बिहारी (शब्द०)। (ग) हम सो उन सो मुखि छूटी औ जन्म सफार्थ होय ।-प्राण०, पृ० २१५ । कौन मगाई। हम अहीर अवला ब्रजवासी वै जदुपनि जदूराई। सकाल'--वि० [स०] समयोचित (को०] । कहा भयो जु भए नंदनदन अब इह पदवी पाई। सकुच न सकाल'-प्रव्य १ तडके । सवेरे । २ ठीक समय पर [को०] । आवत घोप बसत की तजि बज गए पराई । -सूर (शब्द०)। सकुचना-त्रि० प्र० [सं० सडकोच, हि० मकुन+ना (प्रत्य०)] सकाला- सञ्चा पु० [व०] प्रभात । सुवह । भोर । १ सकोच करना। लज्जा करना। शरमाना। उ०-(क)