पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१००

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स्वारथः ५४१२ स्वार्थसंपादन स्वारथ'--वि० [सं० सार्थ] सफल । सिद्ध । फलीभूत । सार्थक । उ० विशेप- यह मुहा० अंगरेजी मुहा० का अविकल अनुवाद है, अत सेवा सबै भई अव स्वारथ । —सूर (शब्द०)। प्रशस्त नही है। स्वारथी--वि० [हिं० स्वार्थी] दे० 'स्वार्थी' । उ०--अाए देव सदा ३ अपना धन । ४ शब्द का अपना अर्थ । अमिधार्थ। वाच्यार्थ(को०)। स्वारथी । वचन कहहिं जनु परमारथी।-तुलसी (शब्द॰) । स्वार्थ:-वि० १. अपने ही स्वार्थ में रुचि रखनेवाला । स्वार्थपरायण । स्वारब्ध-दे० [सं०] स्वय प्रारभ किया हुआ [को०] । २ अपना अर्थ रखनेवाला। वाच्यार्थ मे युक्त। ३ जिमका कोई स्वारसिक-वि० [सं०] १ अतर्वर्ती रस या माधुर्य से अोतप्रोत । निजी मतलब या प्रयोजन हो । ४ बहु अर्थ या शब्दयुक्त किो०] । स्वारस्ययुक्त (काव्य आदि) २ यादृच्छिक । प्रयत्नकृत। स्वार्थ-वि० [स० सार्थक] १ सार्थक । सफल । जमे,-पापका दर्शन स्वाभाविक [को०]। पाय जन्म स्वार्थ किया | लल्लू (शब्द०)। स्वारस्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ सरसता । रसीलापन। लालित्य । उ०- स्वार्थता-- सहा श्री० [सं०] स्वार्थ का भाव या धर्म। खुदगर्जी । कथानो का स्वारस्य कम हो गया है। -द्विवेदी (शब्द॰) । उ०~-वह तुम्हारी मूर्खता, स्वार्थता और निर्वद्धिता का प्रभाव २ स्वाभाविकता । ३ स्वाभाविक रसमयता या मिठास (को०)। है। --सत्यार्थप्रकाश (शब्द०)। स्वाराज-सज्ञा पुं० [सं०] इद्र का एक नाम [को०] । स्वार्थत्याग-सज्ञा पुं॰ [स०] (दूसरे के लिये कर्तव्यबुद्धि मे) अपने स्वाराजिस्ट-सञ्ज्ञा पु० [हिं० स्वाराजी] दे० 'स्वाराजी'। स्वार्थ या हित को निछावर करना । किमी भले काम के लिये स्वाराजी--सज्ञा पुं० [सं० स्वराज्य] वह मनुष्य जो 'स्वराज्य' नामक अपने हित या लाभ का विचार छोडना । जैसे,- देशवधु दास राजनीतिक पक्ष या दल का हो। स्वराज्यप्राप्ति के लिये ने देश के लिये बडा मारी स्वार्थत्याग किया कि २॥ लाख पादोलन करनेवाले राजनीतिक दल का मनुष्य । वार्षिक प्राय की वैरिस्टरी छोड़ दी। स्वाराज्य-सशा पुं० [स०] १ वह शासनप्रवध जिसका संचालनसून स्वार्थत्यागी-वि० [म० स्वार्थत्यागिन्] जो (दूसरे के लिये कर्तव्य- अपने ही देश के लोगो के हाथो मे हो। वह शासन या राज्य जिसपर किसी बाहरी शक्ति का नियन्त्रण न हो । स्वाधीन बुद्धि से) अपने स्वार्थ या हित को निछावर कर दे। दूसरे के भले राज्य । २ स्वर्ग का राज्य। स्वर्ग लोक । ३ स्व मे प्रकाशमान के लिये अपने हित या लाभ का विचार न रखनेवाला । ब्रह्म से तादात्म्य भाव । ब्रह्मत्व (को०) । ४ इद्र का एक जैसे,- इस समय देश मे स्वार्थत्यागी नेतागो को प्रावश्यकता है। नाम (को०)। स्वार्थपडित-वि० [सं० स्वार्थपण्डित) १ अपना मतलब साधने मे स्वाराट्-सज्ञा पुं० [सं० स्वाराज्] (स्वर्ग के राजा) इद्र । चतुर । २ बडा भारी स्वार्थी या खुदगरज । स्वाराधित-वि० [म.] जिसकी अच्छी तरह सेवा की गई हो। जो स्वार्थपर--वि० [स०] जो केवल अपना ही स्वार्थ या मनलव देखे । भली भांति सेवित हो [को॰] । अपना स्वार्थ या मतलव साधनेवाला । स्वार्थी । खुदगरज । स्वारीg+-सज्ञा स्त्री० [हिं० सवारी] दे० 'सवारी' । स्वार्थपरता-सहा त्री० [स०] स्वार्थपर होने का भाव । खुदगरजी । स्वारूढ-वि० [स०] १ जो सवारी करने या चढने मे प्रवीण हो। २ अच्छी तरह सवारी किया हुआ (अश्व) (को०] । स्वार्थपरायण-वि० [सं०] स्वार्थपर । स्वार्थी। खुदगरज । स्वरोचिष, स्वारोचिस्-सज्ञा पुं० [सं०] (स्वरोचिष के पुत्र) दूसरे स्वार्थपरायणता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] स्वार्थपरायण होने का भाव । स्वार्थपरता । खुदगरजी। मनु का नाम। विशेष मार्कंडेयपुराण मे इनका नाम द्युतिमान कहा गया है, स्वार्थप्रयत्न-सञ्ज्ञा पुं० [स०] अपने मतलब की सिद्धि के लिये की श्रीमद्भागवत के अनुसार ये अग्नि के पुत्र हैं । विशेष दे० 'मनु' । जानेवाली चेष्टा । अपने लाभ की योजना (को०] । स्वाजित--वि० [स०] जो स्वय अर्जित किया गया हो। खुद कमाया स्वार्थभाक्-वि० [सं०] अपना ही कामकाज देखनेवाला । स्वार्थी [को०] । हुआ । स्वयमार्जित [को०] । स्वार्थभ्रश-सज्ञा पुं॰ [सं०] अपना मतलब सिद्ध न होना । स्वार्थ-सज्ञा पुं॰ [स०] १ अपना उद्देश्य । अपना मतलव । अपना स्वार्थभ्रशी-वि० [सं० स्वार्थभ्रशिन] जो अपनी कार्यमिद्धि या हित के प्रयोजन। जैसे,—वह ऊपर से उनका मित्न बनकर भीतर ही लिये घातक हो । जिससे स्वार्थसिद्धि मे बाधा हो किो०] । भीतर स्वार्थ साधन कर रहा है। २ अपना लाभ। अपनी स्वार्थलिप्सा-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] स्वार्थ की कामना । अपने कार्य या भलाई। अपना हित । जैसे,—(क) इसमे उसका स्वार्थ है, प्रयोजन की सिद्धि की तीव्र आकाक्षा । इसी से वह इतनी दौडधूप कर रहा है। (ख) वह अपने स्वार्थ के लिये जो चाहे सो कर सकता है। (ग) वे जिस काम में स्वार्थलिप्सु-वि० [सं०] जो अपने मतलब की सिद्धि के लिये लाला- अपने स्वार्थ की हानि देखते हैं, उसमे कभी नही पडते । मुहा०--(किसी वात मे) स्वार्थ लेना = दिलचस्पी लेना। अनु- स्वार्थविघात-सन्मा पुं० [सं०] स्वार्थ का सिद्ध न होना। अपना मतलब राग रखना। जैसे,--राजकीय बातो मे स्वार्थ लेनेवाले जो न निकल पाना । अपने हित की हानि होना (को०] । लोग योरप मे यह समझते हैं कि राजसत्ता की हद्द होनी चाहिए, स्वार्थसपादन-सज्ञा पुं० [स० स्वार्थसम्पादन] अपना मतलव साधना । वे वहुत थोडे हैं। -द्विवेदी (शब्द०)। अपना स्वार्थसाधन करना। यित हो।