पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। स्थिरच्छाय ५३५४ स्थिरीकरण स्थिरच्छाय-सज्ञा पुं॰ [स०] १ छाया देनेवाले पेड । छायातरु । २ स्थिरमुद्रा--सशा स्त्री० [सं०] लाल कुलयी। रक्त कुलत्य । पेड । वृक्ष (को०)। स्थिरयोनि--सहा पुं० [सं०] वह वृक्ष जो मदा छाया देता हो । स्थिरजिह्व -मचा पु० [स०] मछली । मत्स्य । छायावृक्ष। स्थिरजीवित-वि० [स०] दीर्घायु । दे० 'स्थिरायु' [को०] । स्थिरयौवन-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ विद्याधर । २. अनवरत युवावस्या। स्थिरजीविता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सेमल का पेड । शाल्मलि वृक्ष । स्थिरयौवन-वि० जो मदा जवान रहे । स्थिरजीवी-सञ्ज्ञा पुं० [१० स्थिरजीविन्] कौना, जिसका जीवन स्थिररगा-सचा त्री० [सं० म्यिररगा] नील का पौधा । बहुत दीर्घ होता है। स्थिररागा-सझा स्त्री० [स०] दारहलदी। दारहरिद्रा । स्थिरतर'-वि० [स०] अत्यत दृढ । विशेष दृढ [को०] । स्थिरलिंग-वि० [स० म्धिरलिङ्ग] जिमका लिंग कठिन एव स्थिर या स्थिरतर-सज्ञा पुं० [स०] परमेश्वर । ईश्वर (को०] । अनम्य हो [को०] । स्थिरता-सधा सी० [सं०] १ स्थिर होने का भाव । ठहराव । निश्च- स्थिरलोचन-वि० [म०] जिसकी टकटकी बंधी हो । जिमकी पलक न गिरती हो (को०] । लता। २ दृढता। मजबूतो। ३ स्थायित्व । ४. धीरता। धैर्य । ५ कठोरता। निर्भयता । निर्भीकता (को०)। स्थिरवाक्-वि० [म० स्थिरवाच्] जो अपनी वात पर दृढ रहे । विश्व- सनीय [को॰] । स्थिरत्व-सञ्चा पुं० [स०] दे० 'स्थिरता'। स्थिरदष्ट्र-सझा पुं० [सं०] १ साँप । सर्प । भुजग। २. वाराहस्पी स्थिरविक्रम-वि० [सं० ठोस कदम रखनेवाला [को॰] । विप्ण का नाम । ३ ध्वनि । स्थिरश्री–वि. [सं०] जिसका वैभव चिरस्थायी हो [को०] । स्थिरधामा-वि० सं० स्थिरधामन्] जिसकी जाति, वर्ग या वशपरपरा स्थिरसगर-वि० [स० स्थिरनगर) १. वादे का पक्का । विश्वमनीय । समर्थ एव स्थिर हो [को०) । २ जो सग्राम मे स्थिर रहे । युद्ध मे अडिग । स्थिरधी-वि० [स०] जिसकी बुद्धि या चित्त स्थिर हो । दृढचित्त । स्थिरसस्कार-वि० [सं०] जिमके सस्कार स्थिर हो । सुसस्कृत (को०] । स्थिरपत्र-सज्ञा पुं॰ [स०] १ ताड से मिलता जुलता एक प्रकार का स्थिरसाधनक-सचा पुं० [स०] सँभालू । सिंदुवार वृक्ष । पेड । श्रीताल । २ एक प्रकार का खजूर का पेड । हिंताल । स्थिरसार-पदा पुं० [सं०] मागौन । शाक वृक्ष । स्थिरपद-वि० [म०] दृढ । वद्धमूल [को०] । स्थिरसौहृद-सशा वि० [म०] जिसकी मिन्नता सुदृढ हो [को०] । स्थिरपुष्प-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ चपे का पेड। चपक वृक्ष । २ मौल- स्थिरस्थायी-वि० [सं०] १ बहुत दिनो तक टिकनेवाला। २ ध्यान सिरी का पेड । वकुल वृक्ष । ३ तिलपुष्पी। तिलकपुष्प वृक्ष । आदि मे देर तक स्थिर रहनेवाला । स्थिरपुष्पी--मुद्धा पु० (स० स्थिरसुप्पिन्] १ तिलपुष्पी। तिलकपुष्प स्थिराघ्रिप-सज्ञा पुं० [स० स्थिराहिघ्रप] हिंताल वृक्ष । का वृक्ष । २ चपक वृक्ष । चपा का वृक्ष (को०)। ३ वकुल। स्थिरालिप-सा पं० [मं०] हिताल वृक्ष । मौलसिरी (को०)। स्थिरा-सशास्त्री० [०] १ दृट चित्तवाली स्त्री । २ पृथ्वी । धरित्री। स्थिरप्रतिज्ञ---वि० [स०] वचन का पक्का । दृढप्रतिज्ञ । प्रतिज्ञा पर ३ सरिवन । शालपर्णी।। काकोलो। ५ सेमल | शाल्मलि वृक्षा डटा रहनेवाला [को०] । ६ वनमूंग । वनमुद्ग । ७ मपवन । मापपर्णी । ८ मूमाकानी। स्थिरप्रतिवध-वि० [स० स्थिरप्रतिबन्ध] जो डटकर मुकाबला करने मूपकर्णी। वाला हो [को॰] । स्थिराघात-वि० [सं०११ आघात सहने मे अविचल । २ जो चोदी स्थिरप्रतिष्ठा-सज्ञा स्त्री० स०] निश्चित निवासस्थान या रहने का न जा सके । कठोर (जैसे, भूमि) [को०] । आवास (को०] । स्थिरात्मा-वि० [स० स्थिरात्मन्] जिसका चित्त अस्थिर न हो । स्थिरप्रेमा-वि० [स० स्थिरप्रेमन् ] जिसका प्रेम अटल हो [को॰] । सुदृढ चित्तवाला [को०] । स्थिरफला-सज्ञा स्त्री० [स०] कुम्हडे या पेठे की लता। कुष्माड लता। स्थिरानुराग-वि० [स०] प्रगाढ प्रेमी। जिसका प्रेम प्रखूट या अटूट स्थिरबुद्धि-वि० [स०] जिसकी बुद्धि स्थिर हो । ठहरी हुई बुद्धिवाला। स्थिरानुराग-सबा पुं० स्थिर प्रेम । सच्चा अनुराग । हो [को०] । दृढचित्त। स्थिरमति'-वि० [स० दे० 'स्थिरबुद्धि' । स्थिरापाय-वि० [स०] जिसका अपाय अर्थात् नाश निश्चित हो । स्थिरमतिः-सा बीसुम्थिर बुद्धि । क्षणभगुर । क्षयशील [को०)। स्थिरायु'-सा पुं० [सं० स्थिरायुस्] सेमल का पेड । शाल्मलि वृक्ष । स्थिरमद'-सज्ञा पुं० [सं०] मोर। मयूर । स्थिरमद-वि०१ जिसका नशा काफी समय तक बना रहे। २. जो स्थिरायु-वि० १ जिसकी आय बहुत अधिक हो । चिरजीवी । २ जो कभी मरे नही । अमर । गहरे नशे मे हो या जिसका नशा शीघ्र न उतरे [को०] । स्थिरीकरण-सझा पु० [सं०] १ स्थिर करने की क्रिया । २ दर स्थिरमना-वि० [स० स्थिरमनस्] दे० 'स्थिरचित्त' । करना । मजबूत करना। ३ पुष्टि । समर्थन । । 4