२८११ पना पनुसाखा चलतो को पानी पिलाया जाता हो। पौसरा। पनसाल । पनहरा-सज्ञा पुं० [हिं० पानी+हारा (प्रत्य॰)] [स्त्री० पन- हारन, पनहारिन, पनहारी ] वह जो पानी भरने पर नौकर प्याऊ। हो या पानी भरने का काम करता हो । पनभरा। पनसाखा-सञ्ज्ञा पुं० [हि० पाँच+शाखा ] एक प्रकार की मशाल जिसमें तीन या पांच वत्तियां साथ जलती हैं। पनहरा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० पानी + हरा (प्रत्य० ) ] वह अथरी जिसमे सोनार गहने घोने आदि के लिये रखते हैं। विशेष-इसमें बांस के एक लवे डडे पर लोहे का एक पजा बघा रहता है, जिसकी पांचों शाखाप्रो को कपडा लपेटकर और पनहा'-पशा पुं० [सं० परिणाह ( = विस्तार, चौड़ाई, पायाम ) ] १ कपडे या दीवार आदि की चौडाई । २. गूढ प्राशय या तेल से चुपडकर मशाल की भाँति जलाते हैं। तात्पर्य । मर्म । भेद । जैसे,—तुम्हारी बात का पनहा मिले पनसारी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पानी+स० आसार (= धार वाँधकर पानी तब तो कोई जवाब दें। गिराना)] पानी से किसी स्थान को सराबोर करने की क्रिया या भाव । भरपूर सिंचाई। पनहा-सज्ञा पु० [ म० पण ( = रुपया पैसा )+हार ] १. चोरी का पता लगानेवाला। 'उ०-सीस चढे पनहा प्रकट कहैं, पनसारी-सज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'पसारी' । उ०—यह तो हिंदुओं पुकारे नैन ।-विहारी ( शब्द०)। २ वह पुरस्कार जो का शास्त्र पनसारी की दुकान है और अक्षर कल्पवृक्ष हैं।- चुराई हुई वस्तु लौटा या दिला देने के लिये दिया जाय । भारतेंदु ग्र०, भा० ३, पृ० ८१६ । पनहारा-सज्ञा पुं० [हिं० पानी + हारा (प्रत्य॰) ] [ सी० पनहारन, पनसान'-सज्ञा स्त्री० [हिं० पानी+शाला ] वह स्थान जहाँ सर्व- पनहारिन, पनहारी ] वह जो पानी भरने पर नौकर हो । साधारण को पानी पिलाया जाता है। पौसरा । पानी भरनेवाला । पनभरा । पनसाल-सशा [देश॰] १ पानी की गहराई नापने का उपकरण । वह लकही जिसमे इच फुट प्रादि के सूचक प्रक खुदे होते हैं पनहारी-सज्ञा स्त्री॰ [ हिं० पनहारा ] पानी भरने का काम करने- वाली नौकरानी। उ०—एक गऊ कुछ दूर रँभाई, पनहारी और जिसको गाडकर पानी की गहराई अथवा उसका चढाव पनघट से आई।-आराधना, पृ० ८५ । उतार देखते हैं। २ पानी की गहराई नापने की क्रिया पनहि-सज्ञा स्त्री॰ [ म० उपानह ] दे० 'पनहीं' । उ०-मोचिनि या भाव। वदन संकोचिनि हीरा मांगन हो। पनहि लिहे कर सोभित पनसाला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पानी+शाला ] दे० 'पनसाल'। सु दर प्रांगन हो । तुलसी ग्र० पृ० ४ । पनसिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] कान मे होनेवाली एक प्रकार की पनहिया-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पनही+इया (प्रत्य॰)] दे० 'पनहीं'। फुसी जो कटहल के कांटे की तरह नोकदार होती है। उ० जननी निरखति बान धनुहियाँ । बार बार उर नैननि पनसी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म०] १ कटहख का फल । २ दे० 'पनसिका'। लावति प्रभु जू की ललित पनहियाँ । —तुलसी ग्र०, पृ० ३५० । पनसुइया-सज्ञा स्त्री० [हिं० पानी + सूई ] एक प्रकार की छोटी पनहियाभद्र-सज्ञा पु० [हिं० पनही+भद्र ( = मुंडन ) ] सिर पर नाव जिस पर एक ही खेनेवाला दो डाँड चला सकता है। इतने जूते पडना कि बाल उड जायें । जूतो की वर्षा । जूतो पनसुही-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पानी + सुई [ दे० 'पनसुइया' । उ० द्वारा पिटाई। तो कोई एक पनसुही पर सवार । -प्रेमघन०, भा० पनही सज्ञा स्त्री॰ [ स० उपानह ] जूता । उ०-(क) राम लखन २, पृ० ११३ । सिय विनु पग पनही । करि मुनि वेप फिरहि वन वनहीं।- पनसूर-सञ्ज्ञा पुं० [ टेग ] एक प्रकार का बाजा। मानस, २।२१० । (ख) और जब आपने मन की दुचिताई पनसेरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पाँच+सेर ] दे॰ 'पसेरी'। के भय से पनही कमर मे बांध ली थी उसको देख के पुजारी पनसोई-सज्ञा स्त्री॰ [ हिं० ] दे० 'पनसुइया' । पडो ने आपका तिरस्कार किया।-भक्तमाल (श्री०), पृ०४७२। पनस्यु-वि० [सं०] प्रशसा या तारीफ सुनने का इच्छुक । जिसे पनही -वि॰ स्त्री० [हिं० पना+ही (प्रत्य॰)] पना से युक्त । पना- प्रशसित होने की इच्छा हो। वाली । जैसे, पनही भांग । पनह-सच्चा स्त्री० [फा० पनाह ] शरण । रक्षा या शरण पाने का पना-सञ्ज्ञा पुं॰ [ मे० प्रपानक या पानीय ] प्राम, इमली आदि के स्थान । मु० पनाह मागना । उ०—मालिक मेहरबान करीम रस से बनाया जानेवाला एक प्रकार का शरवत । पानक । गुनहगार हररोज हरदम, पनह राखि रहीम ।-दादू०, प्रपानक । पन्ना । ड०-पन बहु जवुन अवुअ मेलि । निचो- पृ०६२७। रिय दारिम दाख सुठेलि ।-पृ० रा०, ६३ । १०६ । पनहटा-सज्ञा पुं० [हिं० पान+हाट ] पान का हाट । पानदरीबा । विशेष-पना कच्चे और पक्के दोनों प्रकार के फलो से उ०-धनहटा, सोनहटा, पनहटा, पक्वानहटा करेग्रो सुखरव- तैयार किया जाता है । पक्के फल का रस या कथा कहते ।-कीति०, पृ० ३० । गूदा यो ही अलग कर दिया जाता है और कच्चे पनड्डा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पान + हाँडी [ वह हाँडी, जिसमे तवोली का गूदा अलग करने के पहले उसे भूना या उवाला पान अथवा हाथ धोने के लिए पानी रखते हैं। जाता है। फिर उसको खूब मसलकर मीठा
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०२
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