पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०१

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पनची २०१० पनसल्ला देता है। जब वहाव के कारण वह चक्कर घूमता है तब उसके साथ पनभवा-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० पानी+भात ] केवल पानी में उबाले हुए मवध करने के कारण वह चक्की या कल चलने लगती है चावल । साधारण भात। और इस प्रकार केवल पानी के वहाव के द्वारा ही सब काम पनभरा, पनभरिया-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पानी+भरना ] पानी भरने होता है। का काम करनेवाला। वह जो लोगों के आवश्यकतानुसार पनघो-सशा खी० [ दश ] गेडी के खेल मे खेलने के लिये पतली जल पहुंचाता हो। लकडी या गेडी। पनमड़िया-पज्ञा स्त्री० [हिं० पानी+माँडी] पतली मांड जो जुलाहे पनचोरा-प्रज्ञा पुं॰ [हिं० पानी + चोर ] वह वरतन जिसका पेट लोग बुनते समय टूटे तागों को जोड़ने के काम में लाते हैं । चौडा और मुह बहुत छोटा हो । पनर -वि० [म० पञ्चदश] दे० 'पद्रह' । उ०-पु गल ढोलो प्राहुणो पनडव्या-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पान+डब्बा वह डब्बा जिसमें पान और रहियो सासरवाडि। पनर दिहाडा पदमणी मारू मनहर उसके लगाने का सामान चूना, सुपारी, कत्या प्रादि रहता हाडि ।-ढोला०, दू० ५६४ । हो । पानदान । पनरह-वि० [सं० पञ्चदश ] दे० 'पद्रह' । उ०—पनरह दिनहूँ पनडुब्बा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पानी+बना ] पानी में गोता लगाने जागती, प्रीसू प्रेम करत । एक दिवस निद्रा सवल सूती जाणि वाला । गोताखोर । निचत ।-ढोला०, दू० ३४२ । विशेष-पनडुब्वे प्राय कुएं या तालाव मे गोता लगाकर गिरी पनलगवा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पानी + लगाना] वह मनुष्य जो खेत में हुई चीज हूंढते अथवा समुद्र प्रादि मे गोते लगाकर सीप पानी सीचता या लगाता हो । पनकटा। और मोती आदि निकालते हैं। पनलगा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पनलगवा' । २. वह पक्षी जो पानी में गोता लगाकर मछलियाँ पकड़ता हो । पनलोहा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पानी + लोहा ? ] एक प्रकार का जल- ३ मुरगावी। ४ एक प्रकार का कल्पित भूत, सिसका निवास पक्षी जो ऋतु के अनुसार रग बदलता है। जलाशयो में माना जाता है मौर जिसके विषय मे लोगो का पनवो-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रणव ] दे॰ 'प्रणव' । यह विश्वास है कि वह नहानेवाले आदमियो को पकडकर डुबा पना-सञ्ज्ञा पु० [ हि० पान + वाँ (प्रत्य॰)] हमेल आदि में लगी हुई बीचवाली चौकी जो पान के आकार की होती है। पनडुव्धी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पानी + डूबना ] १ वह जलपक्षी जो टिकहा। पान । पानी में डुबकी लगाकर मछलियां आदि पकडता हो। २ पनवाड़ी-सचा स्त्री० [हिं० पान+वादी ] वह खेत जिससे पान मुरगावी। ३ एक प्रकार की नाव, जो प्राय पानी के पैदा होता है । वरेजा। अदर डूबकर चलती है। इसका अविष्कार अभी हाल में पनवाड़ी-मज्ञा पुं० [हिं० पान+वाला ] पान बेचनेवाला तमोली। पाश्चात्य देशों मे हुआ है । सबमेरीन । पनवार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पलवारा] दे० 'पनवारा'। उ०-कदली पनपथ-मज्ञा स्त्री० [हिं० पानी + पाथना ] वह रोटो जो बिना कर पनवार घराई । गज मुक्ताहल चौक पुराई । पर्थन के केवल पानी लगाकर वेली जाती है । पनेथी। पनवारा-सशा [हिं० पान + वार(प्रत्य॰)] पत्तो की बनी हुई पत्तल पनपना-क्रि० स० [स० पर्य+पर्ण (= पचा) वा पर्णय (= हरा जिसपर रखकर लोग भोजन करते हैं । उ०-अब केहि लाज होना ) ] १ पानी पाने के कारण फिर से हरा हो जाना। कृपानिधान परसत पनवारो टारो।--तुलसी । (शब्द॰) । पुन' प्रकुरित या पल्लवित होना । २ फिर से तदुरुस्त होना । मुहा०-पनवारा पड़ना = लोगों के खाने के लिये पत्तल विछाई रोगयुक्त होने के उपरात स्वस्थ तथा हृष्ट पुष्ट होना। जाना । उ०-सादर लगे परन पनवारे । —मानस, १२३३८ । पनपनाना-क्रि० अ० [अनु० पनपन ] साधारण सी बातों पर पनवारा लगाना-पत्तल पर खाना सजाना। तेजी दिखाना, झल्ला उठना या आवेश मे पाना । जैसे,—मेरी २. एक पत्तल भर भोजन जो एक मनुष्य के खाने भर को हो। वात पर वह पनपना उठा। ३ एक प्रकार का साँप । पनपनाहट-सञ्चा खी० [अनु० ] 'पन' 'पन' होने का शब्द जो प्राय पनवारी' सञ्चा स्त्री॰ [हिं० पान+वाड़ी] दे० 'पनवाडी" । वाण चलने के कारण होता है। पनवारी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पान+वाला ] दे० 'पनवाडी'२ । पनपाना-क्रि० स० [हिं० पनपना] पनपने का सकर्मक रूप । ऐसा पनस-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ कटहल का वृक्ष। २ कटहल का फल । कार्य करना जिससे कोई पनपे । ३ रामदल का एक बदर । ४ विभीषण के चार मत्रियों पनवट्टा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पान + बट्टा (= डिव्या ) ] वह छोटा में से एक । ५ कोटा । कटक । डिव्या जिसमे पान के लगे हुए बीसे रखे जाते हैं । पनसखिया-मक्षा सी० [हिं० पाँच+ शाखा] १ एक प्रकार का पनविछिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० पानी + घोछी ] पानी में रहनेवाला फूल । २ इस फूल का वृक्ष । एक प्रकार का कीडा जो डक मारता है । पनसतालिका-सचा पुं० [स०] कटहल । पनविच्छी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'पनविछिया' । पनसनामका-सज्ञा पुं॰ [सं०] कटहल । पनबुड़वा-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पनडुब्बा' । पनसल्ला-सचा स्त्री० [हिं० पानी+शाला ] स्थान जहाँ पर राह-