पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०५

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पन्नगकेसर २८१४ पन्हैयाँ पन्नगकेसर-सज्ञा पुं॰ [सं०] नागकेसर । जाता है। ३ देशी जूते के एक ऊपरी भाग का नाम जिसे पन्नगनाशन-सज्ञा पुं॰ [सं०] गरुड [को०] । पान भी कहते हैं। ४ आम प्रादि का पानक । पना । पन्नगपति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] शेषनाग। उ०—पन्नग प्रचड पति पन्निफ-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] दे० 'पनिक' । प्रभु की पनच पीन पर्वतारि पर्वत प्रभान मान पावई।- पन्नी'-सझा स्त्री॰ [हिं० पन्ना ( = पत्रा) ] १ रांगे या पीतल केशव (शब्द०)। के कागज की तरह पतले पत्तर जिन्हें सौंदर्य और शोमा के पन्नगारि-सक्षा पुं० [सं०] गरुड । उ०-पन्नगारि असि नीति श्रुति लिये छोटे छोटे टुकडों मे काटकर अन्य वस्तुमों पर समत सज्जन कहहिं ।-मानस, ७।६५ । चिपकाते हैं। पन्नगाशन-सज्ञा पु० [म.] गरुड [को०] । यौ०-पन्नीसाज ।-पन्नीसाजी। पन्नगिनि-मक्षा स्त्री० [सं० पन्नग+हिं० इनी (प्रत्य॰)] सपिणी । २ वह कागज या चमडा जिसपर सोने या चांदी का लेप किया नागिन । उ०-इक इक अलक लटकि लोचन पर, यह हुआ रहता है। सोने या चांदी के पानी मे रंगा हुआ कागज उपमा इकश्रावति । मनह पन्नगिनि उतरि गगन ते, दल या चमडा । सुनहला या रुपहला कागज । पर फन परसावति ।-सूर०, १०।१८०६ । पत्नी-सशा स्त्री० [हिं० पना ] एक भोज्य पदार्थ । उ०-पन्नी पन्नगो-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ नागिन । सपिणी । सांपिन । उ०- पूप पटकरी पापर पाक पिराक पनारी जी।--रघुनाथ मृगर्न नी बेनी निरख छवि छहरत बरजोर । कनकलता (शब्द०)। जनु पन्नगी विलसत कला करोर।-स० सप्तक, पृ० ३४६ । पन्नी--सज्ञा सी० [ देश०] १ बारुद की एक तौल जो प्राध सेर ४ एक बूटी। सपिणी। के वरावर होती है । उ०--तफन तोप खानै पुनि भूपा । पन्नद्धा, पन्नध्री-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] पदत्राण । जूता [को०] । गए लेख युग तोय अनूपा । रहै अठोरे पन्नी केरी। तिनहि पन्ना'-सञ्ज्ञा पुं॰ [म. पर्ण ] पिरोजे की जाति का हरे रंग का एक सराहत भो नृप ढेरी।-रघुराज (शब्द०)। २. एक रत्न जो प्राय स्लेट और ग्रेनाइट की खानों से निकलता है। लवी घास जिसे प्राय छप्पर छाने के काम मे लाते हैं। मरकत । जमुरंत । पन्नों-सज्ञा पुं॰ [देश॰] पठानो की एक जाति । विशेप-क्रोमियम नामक एक रगवर्धक तत्व के कारण अन्यसजा- पन्नीसाज-सज्ञा पुं० [हिं० पन्नी + फा० साज़ ( = बनानेवाला) ] तीय रत्नो की अपेक्षा इसका रग अधिक गहरा और नेत्राकर्षक वह मनुष्य जिसका व्यवसाय पन्नी वनाना हो । पन्नी वनाने होता है। जो पन्ना जितना ही गहरा हरा और आभायुक्त का काम करनेवाला। और बेदाग होता है वह उतना ही मूल्यवान समझा जाता है । पन्नीसाजी-सशा सी० [हिं० पन्नी+साज] पन्नी बनाने का काम । भूरे अथवा पीलापन या श्यामता लिए हुए टुकड़े अल्प मूल्य पन्नी बनाने का घधा । पेशा। समझे जाते हैं। सर्वोत्तम पन्ना दक्षिण अमेरिका की कोल- विया रियासत की खानो से निकलता है। भारत की पन्ना पन्नू-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक फूल का पौधा । एक पुष्पवृक्ष । रियासत की खानो से भी प्राचीन काल से पन्ना निकलता है। पन्यारी-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक जगली वृक्ष जो मझोले कद का भारतवासी बहुत प्राचीन काल से इसका व्यवहार करते पाए होता है। हैं। अर्थात् प्राचीन पुस्तको में मरकत शब्द और उसके पर्याय विशेष---यह वृक्ष सदा हरा रहता है और मध्यप्रदेश मे यह पाए जाते हैं । फलित ज्योतिष के अनुसार इसके अधिष्ठाता अधिकता से पाया जाता है। इसकी लकडी टिकाऊ और देवता बुध हैं। इसके धारण करने से उनकी कोपशाति चमकदार होती है। उससे गाडियां, कुर्सियां और नावें होती है। बनती हैं। वैद्यक में पन्ना शीतल, मधुर रसयुक्त, रुचिकारक, पुष्टिकर, वीर्य- पन्हाना -क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'पिन्हाना' । वर्धक और प्रेतवाघा, अम्लपित्त, ज्वर, वमन, श्वास, मदाग्नि, पन्हाना-क्रि० स० १ दे० 'पिन्हाना' । २ दे० 'पहनाना' । बवासीर, पाडुरोग और विशेष रूप से विष का नाश करने- पन्हारा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पान + हारा ] एक तृणधान्य जो गेहूँ के वाला माना गया है। खेतो मे आपसे पाप होता है । अंकरा। पर्या-मरकत । मरक्त । गारुस्मक । गारुमत । गरुढाश्य। पन्हिया -सच्चा स्त्री॰ [हिं० पनही ] जूता। उपानह । उ०-सत गरुडांकित । राजनील । अश्मगर्भ। हरिरमणि । रौहिणेय । जन पन्हिया ले खडा राहूँ ठाकुर द्वार। चलत पाछे हूँ फिरों सौपर्ण। गरुडोद्गीर्ण। बुधरत्न । अश्मगर्भज । गरलारि । रज उडत लेऊ सीर । दक्खिनी०, पृ० १०७ । वापयोल । गरुढ । गारुड । गारुडोत्तीर्ण । वाप्रबोल । पन्हैयाँ-सज्ञा स्त्री० [हिं० पनही ] दे० 'पनहीं' । उ०-पाए प्रभु, पन्ना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पर्ण ] १ पुस्तक प्रादि का पृष्ठ । वरक । टहलुवा रूप धरि द्वार पर, कटी एक कामरी पन्हैयां टूटी पत्र । २ भेडों के कान का वह चौडा भाग जहाँ का ऊन काटा पाय हैं।-भक्तमाल०, पृ०५६० ।