पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०६

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ची २८१५ पपीता पपची-सच्चा स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का पक्वान्न । छोटा ३. सोहन पपडी या अन्य कोई मिठाई जिसकी तह जमाई गई पपडा । उ०-माँ ने उस दिन कुछ पपची इत्यादि पक्वान्न हो। ४. छोटा णपट । आटा या बेसन प्रादि का नमकीन बनाए थे।-श्यामा०, पृ० ६३ । और पकाया हुमा खाद्य । (यौ०) । ५ वृक्ष की छाल की पपटा-सचा पुं० [ देश०] १ दे० 'पपडा' । २ छिपकली। ऊपरी परत जिसमें सूखने और चिटकने के कारण जगह जगह दरारें सी पडी हो । बना या घडा । त्वचा । पपड़ा-मज्ञा पुं॰ [स० पर्पट ] [ स्त्री० अल्पा० पपड़ी ] १ लकडी का रूखा करकरा और पतला छिलका । चिप्पह । पपड़ीला-वि० [हिं० पपड़ी+इला (प्रत्य०) ] जिसमे पपडी हो। पपडीदार। क्रि० प्र०-छुड़ाना। २ रोटी का छिलका। पपनी-सञ्चा खी० [देश॰] बरौनी । पलक के बाल । कि०प्र०-छुड़ाना। पपरिया कत्था-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पपडिया कत्था'। ३ एक प्रकार का पकवान जो मीठा और नमकीन दोनो होता पपरी-सज्ञा स्त्री० [सं० पर्पट ] १ एक पौधा जिसकी जड दवा के है। मीठा पपडा मैदे को शरबत मे घोलकर और नमकीन काम में पाती है। २ दे० 'पपडी'। पपडा वेसन को पानी में घोलकर घी या तेल मे तलकर पपहा-सचा पु० [देश०] १ एक कीडा जो धान की फसल को हानि बनाते हैं। पहुंचाता है। २ एक प्रकार का घुन जो जो गेहे आदि मे पपड़िया-वि० [हिं० पपड़ी+इया (प्रत्य॰)] पपडी सबधी। घुसकर उनका सार खा जाता है और केवल कार का छिलका जिसमें पपडी हो । पपडीदार । पपडीवाला। जैसे, पपडिया ज्यो का त्यो रहने देता है। कत्था । पपि-सज्ञा पुं० [ स०] चद्रमा [को०] । पपड़िया कत्था-सचा पु० [हिं० पपड़ी+कत्था ] सफेद कत्था । पपहिया-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] द० 'पपीहा' । उ०-घनघोर घटा के श्वेतसार । देखने से अभी तो प्यासे पपहिये के नयनो की प्यास भी न विशेष—यह कत्था साधारण कत्थे से अच्छा समझा जाता है बुझने पाई थी।-श्रीनिवास ग्र०, पृ०६४ । और खाने मे अधिक स्वादु होता है। वैद्यक मे इसको कडवा, पपिहरा-ज्ञा पुं० [हिं० पपीहा +रा ( स्वा प्रत्य० ) ] चातक । कसैला और चरपरा तथा व्रण, कफ, रुधिरदोष, मुखरोग, पपीहा । उ०—पिय पिय रटए पपिहरा रे, हिय दुख खुजली, विष, कृमि, कोढ और ग्रह तथा भूत की वाधा में उपजाव ।-विद्यापति, पृ० ३६४ । में लाभदायक लिखा है। पपिहा-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] दे॰ 'पपीहा' । पपड़ियाना-क्रि० अ० [हिं० पपड़ी+ना ( प्रत्य० ) ] १ किसी पपी-सशा पुं० [ देश० ] दे॰ 'पपीहा'। उ०-ज्यों पपी की प्यास चीज की परत का सूखकर सिकुड जाना। २ अत्यत सूख पीव रात भर रटी। अरी स्वाति विना वुद भोर भ्यान पी जाना । इतना सूख जाना कि ऊपर पपडी की तरह तह जम फटी।-तुरसी श०, पृ० ५। जाय । तरी न रह जाना । जैसे,—क्यारियां पपडिया गई। मोठ पपडिया गए । पपी२-पञ्चा पुं० [स०] १. चद्रमा । २ सूर्य [को०] । पपीता-सशा पु० [ ० या कन्नड पपाया ] एक प्रसिद्ध वृक्ष जो पपड़ी-सञ्चा स्त्री० [हिं० पपड़ा का अल्पा०] १ किसी वस्तु की बहुधा बगीचो में लगाया जाता है। पपया। अडखरबूजा। ऊपरी परत जो तरी या चिकनाई के प्रभाव के कारण कडी और सिकुडकर जगह जगह से चिटक गई हो और नीचे की वातकुभ । एरडचिभिट । नलिकादल । मवुकर्कटी। सरस और स्निग्ध तह से अलग मालूम होती हो। ऊपर की विशेष-इसका वृक्ष ताड की तरह सीधा बढ़ता है और प्राय सूखी और सिकुडी हुई परत । बिना डालियो का होता है । ऊंचाई २० फुट के लगभग होती है। पत्तियां इसकी अडी की पत्तियो की तरह कटावदार विशेष-वृक्ष की छाल के अतिरिक्त मिट्टी या कीचड की परत होती हैं। छाल का रग सफेद होता है। इसका फन प्रधिकतर और मोठ के लिये अधिकतर बोलते हैं। लबोतरा और कोई कोई गोल भी होता है। फल के ऊपर क्रि० प्र०-पढ़ना। मोटा हरा छिलका होता है। गूदा कच्चा होने की दशा में यौ०-पपड़ीदार । सफेद और पक जाने पर पीला होता है। वीचो बीच मे काले मुहा०-पपड़ी छोड़ना = (१) मिट्टी की तह का सूख और काले वीज होते हैं । वीज और गूदे के बीच एक बहुत पतली सिकुडकर चिटक जाना । पपडी पडना । (२) विलकुल सूख झिल्ली होती है, जो वीजकोष या बीजाधार का काम देती है जाना। तरी न रह जाना। रस का अभाव हो जाना। कच्चा और पक्का दोनो तरह का फल खाया जाता है । कच्चे जैसे,-चार दिन से पानी नही पडा है इतने ही मे क्यारियो फल की प्राय तरकारी पकाते हैं। पक्का फल मीठा होता है ने पपडी छोड दी। और खरबूजे की तरह यो ही या शकर प्रादि के साथ खाया २ घाव के ऊपर मवाद के सूख जाने से बना हुमा प्रावरण या जाता है। इसके गूदे, छाल, फल और पत्ते मे से भी एक परत । खुरड । प्रकार का लसदार दूध निकलता है जिसमे मोज्य द्रव्यो, कि० प्र०-छुदाना।-पढ़ना। विशेषतः मास के गलाने का गुण माना जाता है। इसी