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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०८

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पबना २०१७ पयन पवना-क्रि० स० [हिं० पाना ] प्राप्त करना । पमंगg-नज्ञा पुं॰ [ म० प्लवङ्ग ] घोडा । अश्व । उ०—पमग अग पाखरां परां गिरा कि पजरा।-रा० रू०, पृ० २६६ । पबमान-सशा पु० [म. पवमान] वायु । पवन । पमरा-पशा पी० [देश॰] शल्लुकी नामक सुगधित पदार्थ । पबलिक-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] सर्वसाधारण । जनता। आम लोग। जैसे,—अब पब्लिक को यह बात अच्छी तरह मालूम हो पमार'-लज्ञा पु० [ स० प्रमार ] अग्निकुल के क्षत्रियो की एक शाखा । प्रमार । पवार । दे० 'परमार'। गई है। पबलिक'–वि० सर्वसाधारण सवधी। सार्वजनिक । जैसे,—कल पमार-सचा पु० [ म० पामारि ] चकर्वेड । चक्रमर्दक । चकौटा। टाउनहाल मे एक पलिक मीटिंग होनेवाली है। पम्मन-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का गेहूँ जो वडा और बढिया पबलिक वर्क्स-सज्ञा पु० [अ०] १ निर्माण सबधी वे कार्य जो सर्व होता है । कठिया गेहूँ। साधारण के लाभ के लिये सरकार की ओर से किए जायें । पयबरा-सशा पु० [ फा० पैगम्बर ] दे० 'पैगवर' । उ०—तपाके पुल नहर आदि बनाने का कार्य । २ इजीनियरी का दिल से कीता अर्ज आकर । के ऐ सरदफ्तर पाल पयवर ।- दक्खिनी०, पृ० १६० । मुहकमा । पब्लिग -सक्षा स्त्री० [अ० पब्लिक ] दे० 'पवलिक' । पया-सज्ञा पु० [म.] पयस् शब्द वा वह रूप जो व्याकरण के नियमानुसार कुछ अक्षरो के पूर्व पाता है। पवारना -क्रि० स० [स० प्रवारण? ] फेकना । उ०-जोगी मनहिं प्रोहि रिसि मारहिं । दरव हाथ के समुद पवारहिं ।- पयःकंदा-सज्ञा जी० [स० पय कन्दा ] क्षीरविदारी । कुम्हडा । जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २२३ । पयःपयोष्णी-प्रज्ञा स्त्री॰ [स०] एक नदी का नाम । पबि-सशा पु० [स०] दे॰ 'पवि'। उ०-( क ) देखिमि प्रावत पय.पान-सशा पु० [ स० ] दुग्धपान । दूध पीना। पवि सम बाना। तुरत भएउ खल अतरघाना । -मानस पयःपूर-मा पु० [ स०] पुष्करिणी । छोटा तालाव । ६१७५ । ( ख ) असनि कुलिस निर्धात पवि वज्र सु तेरे पयःपेटी-सरा ली० [सं०] नारियल । नाहि। -अनेकाथ०, पृ०६०। पयःफेनी-सशा स्त्री० [सं०] दुग्धफेनी। यौ०–पविपात = वज्रपात । उ०—घहरात जिमि पविपात गर्जत पय-सज्ञा पु० [ स० पयस्] १ दूध । उ०-सत हस गुन गहहि जनु प्रलय के वादले ।-मानस, ६।४८। पय परिहरि वारि विकार ।-मानस, १६ । पवा-सञ्ज्ञा पु० [सं० पर्वत, प्रा० पव्बन, पव्वय ] पर्वत । उ०-पवे यौ०–पयनिधि । पयपयोधि - क्षीरसागर । दुग्धसमुद्र । सिखर इम गुपत किता गुण प्रोगुण कारक । -रा० रू०, उ०—पयपयोघि तजि अवध विहाई। जहँ सिय लखनु रामु पृ०६। रहे आई।-मानस०, २।१३० । पयमुल । पव्बय-सञ्ज्ञा पुं० [स० पर्वत, प्रा० पव्वय ] १ पहाड । उ०- २ जल । पानी। ३ अन्न । कमठ कसकि घसि मसकि धसय पव्वय पनाल कह। -१० पय-सज्ञा पु० [म० पद, प्रा०पय]पैर । चरण । उ०-जाल जलाखो रासो, पृ० १६८ । २ पत्थर । गोरही। सोवन पायल पय भलकति ।-बी० रासो, पृ०५४ । पब्बय-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक चिडिया का नाम । पयच-सञ्ज्ञा पु० [सं० प्रत्यञ्चा] दे॰ 'प्रत्यचा'। उ०-जानहु पब्बि-सज्ञा पु० [ स० पवि ] वज्र । पवि । काल जगत कहँ कढा । निसदिन रहै पयच जनु चढ़ा। पब्बीन-वि० [म० प्रवीण ] दे॰ 'प्रवीण'। उ०-सुने बीन -चित्रा०, पृ०७०। पव्वीन सुर नाम राग। रहे मोहि के माल डारे न भाग । पयजा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० प्रतिज्ना, प्रा० पइज्जा, पइज्ज ] ८० 'पैज'। -ह. रासो, पृ०३७ । उ०-परखत प्रीति प्रतीति पयज पनु रहे काज ठटु ठानि है। पव्वै-सज्ञा पुं० [म० पर्वत, प्रा० पव्यय ] १ पर्वत । पहाड । २ -तुलसी ग्र०, पृ० ३०६ । पत्थर । उ०—तिमि उडत कोट पब्बै सहित दल दचे तलछत पय-सज्ञा पु० [ स० पयोद] बादल । पयोद । उ०-नीच निरा- परे । हम्मीर०, पृ०४३ । वहि निरस तरु तुलसी सोचहि ऊख । पोषत पयद समान सव पब्लिक-सज्ञा पु० [अ० ] दे० 'पवलिक'। विष पियूष के रूख।-तुलसी ग्र०, पृ० १३४ । २, जिससे पय पब्लिक प्रासिक्यूटर-सज्ञा पु० [५० ] पुलिस का वह अफसर या अर्थात् दूध प्राप्त हो। स्तन । उ०-गोद राखि पुनि हृदय वकील जो सरकार की ओर से फौजदारी मुकदमो की पैरवी लगाए । नवत प्रेमरस पयद सुहाए। -मानस, २ । ५२ । करता है। पयदल-सज्ञा पुं० [ स० पदाति दल ] दे० 'पैदल' । उ-चले हयदल पब्लिशर-म पुं० [अ०] वह जो पुस्तक, समाचारपत्र आदि छपवा- पयदल सथ्थ रथ्थ ।-ह. रासो, पृ० ३५। कर प्रकट या प्रकाशित करे। प्रकट करनेवाला। प्रकाशित पयदा-सज्ञा पु० [ देश०] दे० 'प्यादा'। उ०-लक्षावधि पयदा क करनेवाला । पुस्तक प्रकाशक । प्रकाशक । शब्दवाद्य ।-कीर्ति०, पृ० ८४ । विशेष-कोई आपत्तिजनक चोज प्रकाशित करने के अभियोग पयधिल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पयोधि ] दे० 'पयोधि' । पर प्रिंटर और पब्लिशर दोनो गिरफ्तार किए जाते हैं। पयना-वि० [हिं०] दे० 'पैना'।