पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०७

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स्रोतक । पपोल २०१६ पबई वाग्रा इमो मान के नाच प्राय पकाते हैं। यहां तक पीता है, प्यास से मर जाने पर भी नदी, तालाव आदि माना जाता है कि यदि मांस घोडी देर तक इसके पत्ते में के जल मे चोच नहीं डुबोता। जब आकाश में मेघ छा रहे लपेटा ग्या रहे तो भी बहुन कुर गल जाता है। इसके अघ हो, उस समय यह माना जाता है कि यह इस माशा से पके फल में दूध एमत्र क- 'पपेन' नाम की एक औषध भी कि कदाचित् कोई वूद मेरे मुंह मे पड जाय, वरावर चोच बनाई गई है जो मदाग्नि मे उपकारक होती है। फल भी खोले उनकी ओर टक लगाए रहता है। बहुतो ने तो यहां पाचन-गुण-विशिष्ट नमभा जाता है और अधिकतर इसी तक मान रखा है कि यह केवल स्वाती नक्षत्र मे होनेवाली गुण के लिये उसे गाते है। वर्षा का ही जल पीता है, और गदि यह नभन न बरसे तो पपीते या देश दक्षिण अमेरिका है। अन्यान्य देशो मे यह साल भर प्यामा रह जाता है। इसकी बोली कामोद्दीपक पुर्तगालियो के सगं से पाया प्रो. कुछ ही वरसो में भारत मानी गई है। इसके अटल नियम, मेघ पर अनन्य प्रेम और के मधियाश में फैलार चान पहुंच गया। इस समय विपुवत् इसकी बोली की कामोद्दीपकता को लेकर सस्कृत और रेगा के ममीपस्थ नभी देशो मे इसके वृक्ष अधिकता से पाए भाषा के कवियो ने कितनी ही अच्छी अच्छी उक्तियां की जाते हैं । भारत में इसके दो भेद दिखाई पड़ते हैं । एक का हैं । यद्यपि इसकी बोली चैत से भादो तक बरावर सुनाई फत अधिया वसा और मीठा होता है, दूसरे का छोटा और पडती रहती है, परतु कवियो ने इसका वर्णन केवल वर्षा म मीठा । पहले प्रकार या पपीता प्राय पानाम के गोहाटी के उद्दीपनो मे ही किया है। और छोटा नागपुर विभाग के हजारीबाग स्थानो मे होता वैद्यक मे इसके मास को मधुर, कपाय, लघु, शीतल, कफ, पित्त, है। पैद्यक मे इसका मधुर, स्निग्ध, वातनाशक, वीर्य और और रक्त का नाशक तथा अग्नि की वृद्धि करनेवाला गफ या वढानेवाला हृदय को हितकर और उन्माद तथा लिखा है। वर्म रोगो का नाशक लिसा है। पर्या०-चातक । नोकक । मेघजीवन । शारंग । सारग। पपील- [मपिपीलक ] चीटी । उ०-गुनत लवन पपील मी बानी, तिनते का नोहाई।-जग० बानी, पृ० १११ । २ सितार के छह तारो मे से एक जो लोहे का होता है । पपीलि-सा मा. [सं० पिपीलिका ] चीटी । पिपीलिका । ३ पाल्हा के बाप का घोडा जिसे मांडा के राजा ने हर पपीलिका- मा. [ म० पिपीलिका ] 70 'पिपीलिका' । उ०- लिया था। ४ दे० 'पपैया'। पवीर पा घर सिजर पर, जहाँ सिलहली गैल । पांव न टिपिपीलिका पडित लाद बैल ।-रातवानी०, पृ० ३४ । पपु'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दूध पिलानेवाली गाय । पपीहरा-सा पुं० [हि० ] " पपीहा' । पपुर-वि० रक्षा करनेवाला । त्राता । पालक [को०) । पपैया-सज्ञा पु० [अनु०] १ सीटी। २ वह सीटी जिसे लडके पपीहा- पु. [ हिं० अनु० ] कोटे खानेवाला एक पक्षी जो वसत और वर्षा में प्राय ग्राम के पेठो पर बैठकर वडी सुरीली आम की प्रकुरित गुठली को घिसकर बनाते हैं। ३ प्राम का नया पौधा । प्रमोला। ध्वनि मे वोलता है। चातर । विशेप-देशभद से यह पक्षी कई रग, रूप और आकार का पपैया-सशा पुं० [हिं० ] दे० 'पपीहा'। उ०—अति विचित्र कियो पाया जाता है। उत्तर भारत में इसका डील प्राय श्यामा साज तो सो रंग रहेगो आज । दादुर, मोर, पपैया बोलत पक्षी के बगवर और रग हलगा काला या मटमैला होता फूले फूल द्रुम वाग । नद० ग्र०, पृ० ३५८ । है। दक्षिण भारत का पपीहा डील मे इममे कुछ वडा और पपोटन-सज्ञा स्त्री॰ [ देश ] एक पौधा जिसके पत्ते वांधने से फोडा रग मे चित्रविचित्र होता है। अन्यान्य स्थानो मे और भी पकता है । इसका फल मकोय की तरह होता है। गाई प्रसार के पपीह मिलते हैं, जो कदाचित् उत्तर और पपोटा-मसा [सं० प्र+पट ] अाँख के ऊपर का चमझे का वह दक्षिण के पपीही सवर सताने हैं। मादा का रंगरूप प्राय पर्दा जो ढेले को ढके रहता हैं और जिसके गिरने से भाख सयम पर ही गा होता है। पपीहा पेट से नीचे प्राय बहुत वद होती है भोर उठने से खुलती है । मग उतरता है और उसपर भी इस प्रकार छिपकर बैठा पपोरना -क्रि० स० [देश॰] अपनी बाहे ऐंठना और उनका भराव रहता है कि मनुष्य यो ष्टि कदाचित् ही उसपर पटती या पुष्टता देखना । ( इस क्रिया से वलाभिमान सूचित होता है। सी बोली बहुत ही रसमय होती है और उसमे कई है)। उ०~कस लाज भय गवंजुत चल्यो पपोरत वाह ।- बगे जावेश होता है। किती किसी के मत से इसकी व्यास (शब्द०)। चोली में गत की गोली से भी अधिक मिठाम है। हिंदी गयो ने मान -सा है शिवह अपनी बोली में 'पी कहाँ ? पपोलना-क्रि० अ० [हिं० पोपला ] पोपले का चुमलाना, चयाना पी रहाँ ?' प्रर्यान् प्रियतम यहाँ हैं?' वोलता है। या मुह चलाना । बिना दांत का चुभलाना या मुह चलाना । पानव में ध्यान देने मे सारी रागमन बोली में इस वाक्य पफ्ता-सग सी० [ श० [ वाम मछली । गु गवहरी । फे उच्चारण ये समान ही ध्वनि निकलती जान पटती है। पवई-सका सी० [देव० ] मैना की जाति का एक पक्षी, जिसका यह भी प्रयाद है कि यह फेवल वर्षा की वूद का ही जल वोली बहुत ही मोठी होती है।