पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/११०

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पर" पयोमुच् २८१६ पयोमुच -सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ बादल । २ मोथा। परंपरा-संशा स्त्री० [सं० परम्परा] १ एक के पीछे दूसरा ऐसा क्रम पयोर-सच्चा पु० [ स०] खैर का पेड । (विशेषत कालक्रम) । अनुक्रम । पूर्वांपर क्रम । चला आता हुप्रा सिलसिला । जैसे,—परपरा से ऐसा होता आ रहा है। पयोरय--सज्ञा पुं० [ सं०] जल की धारा । जल का वेग [को०] । यौ०--वंशपरपरा । शिष्यपरंपरा । पयोराशि-सज्ञा पुं० [सं०] जलराशि । समुद्र (को०] । २ वंशपरपरा । सतति । पोलाद । ३ वरावर चली आती हुई पयोलता-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] दूधविदारी कंद । रीति । प्रथा । परिपाटी। जैसे,—हमारे यहाँ इसकी परपरा पयोवाइ-सज्ञा पुं० [ स०] १ मेघ । वादल । २ मोथा । नहीं है। ४ हिंसा । वध । पयोव्रत-सञ्चा पु० [सं०] १ मत्स्यपुराण के अनुसार एक व्रत परपराक-सञ्चा पुं० [स० परम्पराक] यज्ञार्थ पशुहनन । यज्ञ के लिये जिसमे एक दिन रात या तीन रात केवल जल पीकर रहना पशुओ का वध । पडता है । २ भागवत के अनुसार कृष्ण का एक व्रत जिसमे बारह दिन दूध पीकर रहना और कृष्ण का स्मरण और परंपरागत–वि० [ स० परम्परागत ] परपरा से चला प्राता हुअा। जो सब दिन से होता पाता हो। जिसे एक के पीछे दूसरा पूजन करना होता है। बराबर करता आया हो । जैसे, परपरागत नियम । पयोष्णी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] विंध्याचल से निकलकर दक्षिण की परपरित--वि० [स० परम्परित ] परपरायुक्त । परपरागत। ओर को बहनेवाली एक नदी। परपरा पर आश्रित । पयोष्णीजाता-सझा स्त्री० [सं०] सरस्वती नदी। परपरित रूफ--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] रूपक अलंकार का एक भेद जिसमे परंच-अव्य. [ स० परञ्च ] १ और भी। २ तो भी। परंतु । किसी का प्रारोप दूसरे के आरोप का कारण होता है। लेकिन । परंज-सज्ञा पुं० [ सं० परञ्ज ] १ तेल पेरने का कोल्हू । २ दूरी परपरीण-वि० [स० परम्परीण] परपरा से प्राप्त । परपरागत [को॰] । का फल । ३. फेन । ४ शक्र का खड्ग [को०] । पर'--वि० [ स०] १ दूसरा । अन्य । और । अपने को छोड शेष । स्वातिरिक्त । गैर । परलोक । उ०—पर उपदेश कुसल बहु- परजन-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० परञ्जन] (पश्चिम दिशा के स्वामी) वरुण । तेरे । जे पाचरहि ते नर न घनेरे।—तुलसी (शब्द०)। परंजय-सज्ञा पुं० [स० परञ्जय ] १ शत्रु को जीतनेवाला। यौ०-परपीड़न । परोपकार । २ वरुण का एक नाम । २ पराया। दूसरे का। जो अपना न हो। जैसे, पर द्रव्य, पर परंजा-सज्ञा स्त्री० [ स० परजा ] उत्सवादि मे उपकरणो की ध्वनि [को०। पुरुष, पर पीडा । ३. भिन्न । जुदा। अतिरिक्त । ४ पीछे का । उत्तर । बाद का । जैसे, पूर्व और पर। ५ जो सीमा परंतप --वि० [सं० परन्तप] १ शत्रुनो को ताप देनेवाला । वैरियो के बाहर हो। को दु ख देनेवाला । २ जितेंद्रिय । यौ०-परब्रह्म । परंतप-सञ्ज्ञा पुं०१ चितामणि । २ तामस मनु के एक पुत्र । ६ आगे बढ़ा हुआ। सबके ऊपर । श्रेष्ठ । ७ प्रवृत्त । लीन । परतु-अव्य० [सं० पर+तु] एक शब्द जो किसी वाक्य के साथ तत्पर । जैसे, स्वार्थपर (केवल समास मे) उससे कुछ अन्यथा स्थिति सूचित करनेवाला दूसरा वाक्य पर-प्रत्य० [स० उपरि] सप्तमी या अधिकरण कारक का चिह्न । कहने के पहले लाया जाता है। पर। तो भी। किंतु । जैसे—(क) वह घर पर नहीं है । (ख) कुरसी पर बैठो। लेकिन । मगर । जैसे,—( क ) वह इतना कहा जाता है पर- सज्ञा पु० [ सं० पर ] १ शत्रु । वैरी । दुश्मन । परतु नहीं मानता। (ख ) जी तो नहीं चाहता है परतु यौ०-परंतप । जाना पड़ेगा। २ शिव । ३ ब्रह्म । ४ ब्रह्मा। ५ मोक्ष । ६ न्याय मे जाति परंद-सचा पुं० [फा०] दे० 'परिंदा' [को०] । या सामान्य के दो भेदो में से एक । द्रव्य । गुण और कर्म की परंदा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० परद (= चिड़िया)] १ चिडिया । पक्षी। वृत्ति या सत्ता । ७ ब्रह्मा की आयु (को०)। २ एक प्रकार की हवादार नाव जो काश्मीर की झीलो मे पर-अव्य० [ स० परम् ] १ पश्चात् । पीछे । जैसे,—इसपर वे चलती है। उठकर चले गए। ४ एक शब्द जो किसी वाक्य के साथ परद-सशा पुं० [सं० परम्पद ] १ वैकुंठ। २ मोक्ष। ३ उच्च उससे अन्यथा स्थिति सूचित करनेवाला वाक्य के कहने के स्थान (को०)। पहले लाया जाता है। परतु । किंतु । लेकिन । तो भी। परंपर-सज्ञा पुं॰ [ म० परम्पर ] एक के पीछे दूसरा ऐसा क्रम । जैसे,—(क) मैंने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानता। अनुक्रम । चला जाता हुआ सिलसिला । २ पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र (ख) तवीयत तो नही अच्छी है पर जायेंगे । आदि। बेटा, पोता, परपोता आदि । वश । सतति । ३ पर-सञ्ज्ञा पु० [ फा०] चिडियो का डेना और उसपर के धुए या मृगमद । कस्तूरी। रोएँ । पख । पक्ष। परपरया-क्रि० [स० परम्परया ] परपरा द्वारा । परपरा से। मुहा०—पर कट जाना = शक्ति या वल का आधार न रह जाना। अनुक्रम से (को०] । अशक्त हो जाना। कुछ करने घरने लायक न रह जाना। -