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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/११५

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परज' २८२४ परत परज--वि० [सं०] परजात । दूसरे से उत्पन्न । परजापति, परजापती-सज्ञा पुं० [सं० प्रजापति ] १ राजा। परज२-सञ्ज्ञा पुं० कोकिल । नृपति । २ कुभकार । उ०—गुरु ज्ञाता परजापती सेवक परजन' मा पु० [म० परिजन ] दे० 'परिजन' । उ०-पाग मांटी रूप । रज्जव रज सू फेरि करि घडिले कुभ अनूप ।- मिरजई पहिनि, टेकि मसनद परजन पर ।-प्रेमघन० भा० रज्जव०, पृ०१६। १, पृ०१४॥ परजाय-सचा पुं० [ पर्याय ] दे० 'पर्याय'। परजन-सज्ञा पु० [ देश० ] डेढ दो हाथ ऊंचा एक प्रकार का पौधा परजौट-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हिं० परजा + औट या श्रीत (प्रत्य॰)] १ जो राजपूताने, पजाव और अफगानिस्तान की जोती वोई हुई घर बनाने के लिये सालाना किराए पर जमीन लेने देने का भूमि मे प्राय पाया जाता है। इसमें पीले रंग के बहुत छोटे नियम । जैसे,—यह जमीन मैंने परजौट पर ली है। २ वह छोटे फूल लगते हैं। सालाना कर जो मकान बनाने के लिये ली हुई जमीन पर लगे परजन'-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्वजन का उलटा । जो प्रात्मीय न हो। परठना+-कि० अ० [सं० प्र + स्थापन ] बनना। निर्मित परजरना-क्रि० अ० [स० प्रज्वलन ] १ जलना। दहकना । होना । स्थापित होना । उ०-साल्ह चलतइ परठिया प्रांगन सुलगना । २ क्रुद्ध होना । कुढना । उ०-सुनत वचन रावन वीडियहि । मो मई हियइ लगाडियाँ, भरि भरि मूठडि- परजरा । जरत महानल जन घृत परा।-तुलसी (शब्द॰) । याह । ढोला०, दू० ३६६ । ३ ईर्ष्या द्वेष से सतप्त होना । डाह करना । परणना-क्रि० स० [सं० परिणय ] व्याहना । विवाह करना। परजन्य पु-मज्ञा पु० [सं० पर्जन्य ] दे० 'पर्जन्य' । उ०-पर परिणय करना । उ०-परण पधारे राम जीत दुजराजन । कारज देह को धारे फिरौ परजन्य जथारथ ह दरसो।- तुरत करीजे त्यार सांमिलो साजन ।-रघु० ८०, पृ०६३ । घनानद, पृ० परणानाg+-क्रि० स० [सं० परिणय ] विवाह कराना। व्याह पर जवट-मशा पुं० [हिं० ] 70 'परजौट'। कराना। उ०-वारइ बहतई प्रापणइ, कुंवर परणावी, सोझउ वीद ।-यी० रासो, पृ०६। परजस्तापह्नुति-समाग्नी[सं० पर्यस्तापह्न ति] दे० पर्यस्तापह्न,ति' । उ०-धर्म और में राखिए धर्मी सांच छपाय । परजस्ताप- परतगण-सज्ञा पु० [सं० परतङ्गण ] महाभारत मे वरिणत एक देश ह्न ति कहत ताहि बुद्धि सरसाय ।-मति० प्र०, पृ० ३८० । का प्राचीन नाम। परजा-मुञ्चा स्त्री० [स० प्रजा ] १ प्रजा। रैयत । २ आश्रित जन । परतंगी-वि० [सं० प्रतिज्ञा ] प्रतिज्ञावाला। उ०-पहा कहाँ काम धधा करनेवाला । जैसे, नाई, वारी, धोवी इत्यादि । हरि केतिक तारे, पावन पद परतगी।-सूर०, ११२१ । ३ जमींदार की जमीन पर बसनेवाला या खेती आदि करने परतचा-मशा सी० [ स० प्रत्यञ्चा ] दे० 'प्रत्यचा'। उ०-इसका वाला । असामी। दुवला शरीर काम की परत चा उतारी हुई यमान है।- परजात'-पि० [म० ] दूसरे से उत्पन्न । परज । भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ३८१ । परजात'-सशा पुं॰ [स०] १ कोकिल । कोयल । २ दूसरी जाति परततर-वि० [ स० परतन्त्र ] पराधीन । परतत्र । का मनुष्य । दूसरी विरादरी का आदमी । जैसे,—परजात औरु सवै दुख भरे सरे अतर ही अतर । कालकूट से करे परे को न्योता देने का क्या काम ? छिन छिन परततर ।-नद० म०, पृ० २०५ । परजाता-सचा पुं० [ स० परिजात ] मझोले श्राकार का एक पेड परतत्र-वि० [सं० परतन्त्र ] पराधीन । परवश । जो भारतवप मे प्राय सवत्र होता है । हरसिंगार । परतत्र-मशा पुं० उत्तम शास्त्र । २ उत्तम वस्त्र । विशेप-इसकी पत्तियां पांच छह अंगुल लवी और चार अगुल परतत्र द्वैधीभाव-सज्ञा पुं० [सं० परतन्त्र द्वैधीभाव ] कामदक के चौडी होती हैं। ये आगे की ओर बहुत नुकीली होती हैं अनुसार दो प्रवल और परस्पर विरोधी राज्यो के बीच और इनके किनारे नीम की पत्ती के किनारो की तरह कुछ मे रहकर और किसी एक राज्य से कुछ धन या वार्षिक वृत्ति कुछ कटावदार होते हैं। यह पेड फूलो के लिये लगाया पाकर दोनो मे मेल बनाए रखना जैसे, युरोपीय महायुद्ध के जाता है जो गुच्छों मे लगते हैं । फूल छोटे छोटे और पहले अफगानिस्तान की स्थिति परतत्र द्वैधीभाव की थी, डाँडीदार होते हैं। डांडी पर युद्ध के पीछे अब स्वतत्र द्वेष भाव की स्थिति है। का रंग लाल या नारगी और दलो का रंग सफेद होता है। सूखी हुई डांडियों परत-श्रव्य० [सं० परतस् ] १. दूसरे से । अन्य से। २ पर से । को उबालकर पीला रग निकाला जाता है। परजाता शत्रु से । पश्चात् । पीछे । ४ परे। आगे। शरद ऋतु में फूलता है । फूल बरावर झडते रहते हैं, पेड मे परत प्रमाण-सचा पुं० [सं०] जो स्वत प्रमाण न हो। जिसे कम ठहरते हैं। पत्तियां दवा के काम आती हैं और बहुत दूसरे प्रमाणो की अपेक्षा हो। जो दूसरे प्रमाणों के अनुकूल गरम होती हैं । ज्वर मे प्राय लोग परजाते की पत्ती देते हैं। होने पर ही सबूत में कहा जा सके। इसे हरसिंगार भी कहते है। परत-ज्ञा स्त्री॰ [सं० पन्न, हिं० पचर वा से० पटल] १, मोटाई का परजाति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दूसरी जाति । फैलाव जो किसी सतह के ऊपर हो । स्तर । तह । जैसे,-