पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१३३

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परात्पर २८४२ परायची प्राखेट [को०] । महतत्व परे मूल माया परे प्रह्म, ताहि ते परातपर सुदर परापर-वि० [सं०] वैशेषिक फे अनुसार परत्व और अपरत्व गुणों से कहतु है।-सु दर० प्र० भा॰ २, पृ० ५६५ । युक्त [को॰] । परात्पर'-वि० [सं०] जिसके परे कोई दूसरा न हो। सर्वथेठ । परापरी@-सग त्री० [सं० परा+थपरा ] परत्व मौर मपरत्व । परात्पर-सज्ञा पुं०१ परमात्मा । २ विष्णु । विद्या और पविषा । शान और प्रशान-परापरी पास परास्त्रिय-सज्ञा पुं॰ [सं०] उलप नाम का तृण । एक घास जो कुश रहै, कोई न जाणं ताहि । सतगुर दिया दिखाइ परि, दादू की तरह की होती है और जिसमे जो या गेहूँ के से दाने पडते रह्या ल्यौ लाइ।-दादू०, पृ०८। हैं । इसकी वालो मे हूँड नही होते । परापिता-गरा सी० [२०] २० 'प्राप्ति' । उ०-धरम पंप छाडी परात्मा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० परात्मन् ] परमात्मा । परब्रह्म । जनि कोई। घरमहि सिद्धि परापित होई । -चित्रा०, पृ०४४। परादन-सशा पुं० [सं०] फारस का घोडा। पराधि-सञ्ज्ञा सी० [सं०] १. तीन मानसिक पीटा। २ मृगया। पराभव-गरा पुं० [सं०] १ पराजय । हार । क्रि० प्र०-फरना ।—होना । पराधीन–वि० [म०] परवश । जो दूसरे के अधीन हो । जो दूसरे के २. तिरस्कार । मानध्वस । ३ विनाश । ४ वैश्य युग के प्रतर्गत तावे हो। उ०-पराधीन सुख सपनेह नाही । -तुलसी पाँचवा वर्ष। (शब्द०)। विशेप-वृहत्सहिता के अनुसार इस वर्ष पग्नि, शस्त्र पीडा, रोग, पर्या०-परतत्र । परवश । मादि होते हैं पौर गो ग्राह्मण को विशेष भय होता है। पराधीनता-ज्ञा स्त्री० [सं०] परतयता । दूसरे की अधीनता । पराभिक्ष-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार के वानप्रस्य जो गृहस्यो के परान-सञ्ज्ञा पु० [स० प्राण, हिं० पराला] १० 'प्राण' । उ०- घर से थोडी भिक्षा लेकर वन में अपना पातक्षेप करते हैं। (क) वाणी विमल पच पराना। पहिली सीस मिले पराभूत-० [सं०] १ पराजित । हारा हुमा । २ ध्वस्त । नष्ट । अगवाना ।-दादू०, पृ० ६३८ । (ख) आजु कया पिंजर ३ अनारत । तिरस्कृत (को॰) । बघ टूटा । प्राजु परान परेवा छूटा ।-पदमावत, पृ० २४६ । पराभूति-सश सी० [०] दे० 'पराभव' [को०] । पराना-क्रि० अ० [सं० पलायन ] भागना। उ०-(क) पराभौ-मग पुं० [सं० पराभव] १ तिरस्कार । पनादर । उ०- आज जो तरवर चलमल नाही। प्रावहु यहि वन घांटि तव ली उवैने पाय फिरत पेट खलाय वाये मुह सहत पराभो पराही।--जायसी (शब्द॰) । (ख) भाई रे गैया एक देस देस को।-तुलसी ग्र०, पृ० २२८ । २. दे० 'पराभव' । विरचि दियो है भार अमर भो भाई। नौ नारी को पानी परामर्श-संशा पुं० [सं०] १ पकडना । खींचना। जैसे, केश परामर्श । पियत है तृषा तक न वुझाई । कोठा बहतरि औ लो लावे २ विवेचन । विचार। ३. निणंय । ४ भनुमान । ५ बज केवार लगाई। खूटा गाडि डोर ८ वाँधो तउ वह स्मृति । याद । ६ युक्ति । ७ ससाह । मयणा । उ०- तोरि पराई। कबीर (शब्द०)। (ग) देखि विकट तुम्हारा चित्त पुछ और ही परामर्श देता है। -अयोध्या भट बडि कटकाई। जच्छ जीव लइ गए पराई।-मानस, (शब्द०)। १।१७६ । (घ ) जासु देस नृप लीन्ह छोडाई। समर सेन क्रि० प्र०—करना ।--देना ।--लेना ।-मिलना।-होना। तजि गयउ पराई।-तुलसी (शब्द॰) । ८ व्याधिग्रस्त होना (को०)। ६ आक्रमण (को०)। १० स्पर्शन । परानी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्राणी ] दे० 'प्राणी' । उ०-यूझोरे नर ११ न्याय में व्याप्ति विशिष्ट पक्षधर्म का होना । परानी क्या सुपचे अधिकार । गण गधर्व मुनि देव ऋपि सव अनुमिति (को०)। मिलि कीन्ह प्रहार । -कवीर सा०, पृ० ५१ । परामर्शन–तशा पुं० [सं०] १ खोचना । २ स्मरण । चिंतन । ३ परान्न-सज्ञा पुं० [स०] पराया धान्य । दूसरे का दिया हुधा भोजन । विचार करना । ४ सलाह करना । मशवरा करना। परान्नभोजी-वि० [ सं० परान्नभोजिन ] दूसरे का दिया अन्न खा परामृत'- [सं०] लो मृत्यु प्रादि के बंधन से छूट गया हो । मुक्त। कर जीवनयापन करनेवा aloj 1 परापतिल-सज्ञा स्त्री प्राप्ति ] दे० 'प्राप्ति । उ०-जन परामृत-सज्ञा पुं० वर्पा । वर्षण [फो०] । रज्जव गुरु-फी दया ष्टि परापति होय । प्रगट गुपत पिछानिए परामृष्ट-वि० [सं०] १ पकडकर खोघा हुमा। २ पीडित । ३. विचारा हुमा । निर्णय किया हुआ। ४ जिसकी सलाह दी जिसहिं न दीख कोय । -रज्जव०, पृ०५। गई हो। ५ सबधयुक्त । सवद्ध (को०)। ६ चूमा हुआ। परापर'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] फालसा । स्पृष्ट (को०)। परापर-वि० [सं० परात्पर ] दे० 'परात्पर' । उ०-ग्रह्मसार परायचा-सा पुं० [ फा० पारचह (= कपडा)] १ पडो के कटे निराकार परापर नूर पियारो । वसो सर्वे जहँ वास नाथ निज टुक्रडो की टोपियाँ इत्यादि बनाकर बेचनेवाला। २ सिले माप नियारो।--राम धर्म०, पृ०१७३ । सिलाए कपड़े बेचनेवाला।