परावर्त्य २८४४ परि परावर्त्य-वि० [सं०] जो परावत्तित किया जा सके । पलटने के परासक्त–वि० [सं०] दूसरे पर आसक्त । दूसरे से बंधा हुआ। योग्य (को०] 1 किसी अन्य के वशीभूत । उ०-योग युक्ति करि याको पावै। यौ०-परावयं व्यवहार = दे० 'परावर्त व्यवहार'। परासक्त अपने वश लावै। -अष्टाग०, पृ० ८१ । परासचिता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रायश्चित्त ] दे० 'प्रायश्चित्त' । उ०- परावसु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शतपथ ब्राह्मण के अनुसार असुरों के पुरोहित का नाम । २ महाभारत के अनुसार रैभ्य मुनि के कुकर्म का परासचित तो करना ही पड़ता है। -गोदान, पृ० २२१ । एक पुत्र का नाम । ३ एक गधर्व का नाम । ४ विश्वामित्र परासन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] हत्या । वध । हनन [को०] । के एक पौत्र का नाम । ५ सवत्सर के साठ चक्रो मे से ४०वें सवत्सर का नाम (को०)। परासी-सशा जी० [ मे०] एक रागिनी का नाम । २० 'पलाथी'। पराषद-सज्ञा पुं० [म०] वायु के सात भेदो में से एक । परासु-वि० [सं०] जिमका प्राण निकल गया हो। मरा हुअा। मृत । परावाल-वि० [सं०] दे० 'पराया'। उ०-करहि मोहवस द्रोह परास्कदी-वि० [ स० परास्कन्दिन् ] चौर । स्तेन । चोर [को०)। परावा । सत सग हरि कथा न भावा । —मानस, ७ । ४० । परास्त–वि० [सं०] १, पराजित । हारा हुआ । २ विजित । पराविद्ध-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] कुबेर । यक्षपति को०] । ध्वस्त । ३ प्रभावहीन । दवा हुा । से, ज्ञान अज्ञान जैसे परावृत्त-वि० [स०] १ पलटा हुआ या पलटाया हुआ । फेरा परास्त हो गया । ४ जो स्वीकृत न हो । अस्वीकृत (को०)। ५ क्षिप्त । फेका हुमा (को०)। हुमा । २ वदला हुआ। परावृत्ति-सज्ञा मी० [म०] १ पलटने या पलटाने का भाव । परास्तता-संज्ञा स्त्री० [सं० परास्त+ता ] पराजय । हार । उ०- प्राई परास्तता कर्म भोग मे जिसके । -साकेत, पृ० २१८ । पलटाव । २ मुकदमे का फिर से विचार या फैसला । परावेदी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] कटाई । भटकटैया । पराह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म०] दूसरा दिन । वर्तमान के आगे या पीछे का पराव्याघ-शा पु० [सं०] पत्थर को फेकना । हाथ से प्रस्तर के दिवस [को०] । फेके जाने पर उसकी गिरने की दूरी या फासला [को०] । पराहत-वि० [सं०] १ पाकात । ध्वस्त । २ मिटाया हुआ। पराशर-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक गोत्रकार ऋषि जो पुराणानुसार दूर किया हुमा । ३ निराकृत । खडित । ४ जीता हुआ । वसिष्ठ और शक्ति के पुत्र थे। पराहति-सज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] प्रत्याख्यान । खडन (को०)। विशेष—इनके पिता का देहात इनके जन्म के पूर्व हो चुका था पराहृति-वि० [ स०] दूर किया या हटाया हुआ [को॰] । अत इनका पालन पोषण इनके पितामह वसिष्ठ जी ने किया पराह्न-वि० [सं०] अपराह्न । दोपहर के वाद का समय । तीसरा पहर । था । यही व्यास कृष्ण द्वैपायन के पिता थे। परिंद, परिदा-सञ्ज्ञा पुं० [ फ़ा० परिन्दह ] पक्षी । चिडिया । २ चरक सहिता के अनुसार आयुर्वेद के एक प्राचार्य का उ०--(क) हवा जो पधारी सनकती, वहकती परिंदों की नाम । ३ एक प्रसिद्ध स्मृतिकार । इनकी स्मृति पराशर टोली जो पाई चहकती। -अपलक, पृ० १२ । (ख) मेरे स्मृति के नाम से प्रख्यात है और कलियुग के लिये प्रमाणभूत प्राण परिदो से ही इव इव जाते रगो मे, सध्या के सौ रग मानी जाती है। ४ एक नाम का नाम । ५ ज्योतिष सौ तरह भर जाते मेरे प्रगो मे।-मिट्टी०, पृ० ७७ । (ग) शास्त्र के एक प्राचार्य जिनकी रची पराशरी सहिता है। ऐसी जगह ले चलो जहाँ परिंदा पर न मारता हो । फिसा०, ६ गृह्य सूत्रो मे से एक । भा०३, पृ०५४। पराशरी-सशा पुं० [सं० पराशरिन् ] १ भिक्षुक । २ सन्यासी [को०] । परि' -उप० [सं०] एक सस्कृत उपसर्ग जिमके लगने से शब्द पराश्रय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ दूमरे का सहारा । पराया भरोसा । मे इन अर्थो की वृद्धि होती है । दूसरे का अवलव । २ पराधीनता। १ चारो ओर । जैसे, परिक्रमण, परिवेष्टन, परि- पराश्रयः-सज्ञा पुं० पराश्रित । पराधीन (को०] । भ्रमण, परिधि । २ सर्वतोभाव । अच्छी तरह । जैसे, परिकल्पन, परिपूर्ण । पराश्रया-सहा सी० [सं०] बाँदा । बदाक । परगाया। ३ अतिशय । जैसे, परिवर्द्धन । पराश्रित-वि० [स०] १ जिसे दूसरे का ही पासरा हो । जिसका ४ पूर्णता । जैसे, परित्याग, परिताप । काम दूसरे से चलता हो । २ दूसरे के अधीन । ५ दोषाख्यान । जैसे, परिहास, परिवाद । परासग-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० परासन ] अन्य का आश्रय । पराश्रय [को॰] । ६ नियम । क्रम । जैसे, परिच्छेद । परास'-सज्ञा पु० [सं०] १ किसी स्थान से उतनी दूरी जितनी परि–व्य० [हिं०]प्रकार । भांति । तरह । उ०—(क) जब सोकै दूरी पर उस स्थान से फेंकी हुई वस्तु गिरे । २ टीन । तब जागवइ, जब जागू तव जाइ । मारू ढोलउ समरह, इणि परास२-सज्ञा पुं॰ [ स० पलाश ] दे० 'पलास' । उ०-जर परास परि रयण विहाइ । –ढोला०, दू० ७६ । ( ख ) सग सखी कोइला के भेसू । तव फूल राता होइ टेसू ।-जायसी ग्र० मील कुल वेस समाणी पेखि कली पदमिणी परि।-बेलि., (गुप्त), पृ० ३३० । दू०१४।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१३५
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