पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१३६

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परि३ १८४५ परिक्रमण परि@:-प्रत्य० [हिं० ] दे० 'पर' । उ०-बदन कमल परि घर परिफर्मा-सज्ञा पुं॰ [ स० परिक्रमा ] दे० 'परिक्रमा'। उ०- केस । देखि के गोरज छुभित सुवेस ।-नद० ग्र०, पृ० ३२१ । बार बार परिकर्मा दै के सु दर बदन बिलोकन के के। परिकंप-सज्ञा पुं० [स० परिकम्प ] १. भय । हर। २ कपन । -नद० ग्र०, पृ० २७४ । कॅपकपी [को०] । परिकर्मी-वि० [सं० परिकर्मिन् ] दास । सेवक [को०] । परिक-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] खराब चाँदी । खोटी चाँदी। (सुनार)। परिकर्ष, परिकर्षण-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ वृत्त। घेरा। २ बाहर परिकथा-सञ्ज्ञा श्री० [म०] एक कहानी के अंतर्गत उसी के सबध की निकालना । बाहर खीचना (को०] । दूसरी कहानी। पतर्कथा। परिकर्षित-वि० [स०] १ प्रीडित । उत्पीडित । २ खीचा हुमा। परिकर-मञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पर्यव । पलग । २ परिवार । उ०- कर्षित (को०] । भव भवा सबै परिकर समेत ।-ह. रासो, पृ० ६१ । ३ परिकलित'-वि० [स०] पाकलित । भूषित । अलकृत । उ०-जब बृद। समूह । ४ घेरनेवालो का समूह । अनुयायियो का तक काव्य भावना-परिकलित सहृदय सामाजिक का हृदय दल। अनुचर वर्ग । लवाजमा । उ०-श्री वृदावन राज है, स्वाभिमान की वासना से वासित नहीं होगा तब तक वह भाव जुगल केलि रस धाम । वहँ के परिकर प्रादि को, बरनत या भाव मात्र रह जाएगा। -सपूर्णा० अभि० ग्र०, पृ० ३११ । थल नाम । -भारतेंदु ग्रं०, भा० ३, पृ० ६४७ । ५ समारभ । परिकलित-सशा पु० अनुमान । प्राकलन को०] । तैयारी। ६ कमरवद । पटुका । उ०-मृग विलोकि कटि परिकर बांधा। करतर चाप रुचिर सर सांधा ।—मानस, परिकल्फन-सज्ञा पुं० [स०] प्रवचना । दगावाजी। ३।२७ । ७ विवेक । ५ एक अलकार जिसमें अभिप्राय परिकल्पन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [वि० परिकल्पित] १ मनन । चितन । भरे हुए विशेषणो के साथ विशेष्य प्राता है। जैसे- २. बनावट । रचना । ३ बटन । बांटना (को०) । ४ निश्चय हिमकरवदनी तिय निरखि पिय दृग शीतल होय । ६ करना । निश्चयन (को०)। नाटक मे भावी घटनाग्रो का सझेप मे सूचन जिसे वीज परिकल्पना-सञ्ज्ञा श्री० [ म० ] दे० 'परिवल्पन' । उ०—अब पुरा- कहते हैं (को०)। १० कार्य मे सहायक । सहकर्मी (को॰) । तत्ववेत्ताओ ने तदनुरूप स्थानो की खोज एव परिकल्पनाएँ ११ फैसला। निर्णय (को०)। कर ली हैं ।-पाधुनिक० (भू०)-क । परिफरमा-सञ्ज्ञा सो० [सं० परिक्रमा ] दे० 'परिक्रमा' । उ० परिकल्पित-वि० [स०] १. कल्पना किया हुआ। सोचा हमा। जप जोग दान विधान बहु विधि करे कर्म अनेक हो। सत २ मन में गढ़ा हुआ। मनगढत । ३ निश्चित । ठहराया कोटि तीरथ भूमि परिकरमा करि न पावै थेक हो ।—कबीर हुआ। ४ मन में सोचकर बनाया हुआ। रचित । ५ सा०, पृ० ४११ । विभक्त । प्रशो में वाँटा हुआ । ६ वाटा हुआ (को॰) । परिकरांकुर-सज्ञा पु० [ सं० परिकराकर ] एक अर्थालकार जिसमें परिकाक्षित-सचा पु० [ म० परिकाहि क्षत ] तपसी । भक्त [को०] । किसी विशेष्य या शब्द का प्रयोग विशेष अभिप्राय लिए हो। परिकोण-वि० [सं०] १ व्यास । विस्तृत । फैला हुआ। २ सम- जैसे,-वामा, भामा, कामिनी कहि बोलो प्रानेस । प्यारी पित । ३. परिवेष्टित (को०)। कहत लजात नहिं पावस चलत विदेस।-बिहारी। यहाँ वामा परिकीर्तन-भज्ञा पु० [सं०] १ चे स्वर से कीर्तन । खूब गाना। ( जो वाम हो ) आदि शब्द विशेष अभिप्राय लिए हुए हैं। २ गुणो का विस्तृत वर्णन । अधिक प्रशसा । ३ घोषित नायिका कहती है कि जब भाप मुझे छोड विदेश जा रहे हैं करना । घोषणा करना (को०)। तब इन्ही नामो से पुकारिए, प्यारी कहकर न पुकारिए। परिकर्तन-मज्ञा पुं० [सं०] १ काटना । कर्तन । २ शूल । पीडा । परिकीर्तित-वि० [स०] परिकीर्तन किया हुआ [को०] । ३ गोलाकार कर्तन । वृत्ताकार काटना को०] । परिकूट-सझा पु० [सं०] १ नगर या दुर्ग के फाटक पर की खाई। २. एक नागराज। परिकर्ता-सञ्ज्ञा पुं० [म० परिक] वह याजक या पुरोहित जो ज्येष्ठ के अविवाहित रहने पर कनिष्ठ का विवाह कराए [को०] ! परिकूल-सशा पु० [स०] किनारे की भूमि। तटवर्ती भूमि [को०] । परिकृश-वि० [सं०] अत्यत कृश या क्षीण । अत्यत दुबला परिकर्तिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] तीखा दर्द । चुभनेवाला तीक्ष्ण पतला को०] । परिकर्म-सञ्ज्ञा पुं० [ स० परिकर्मन् ] १ देह मे चदन, केसर, उबटन परिकोप-सज्ञा पुं० [ स०] अत्यत क्रोध । तीव्रतर कोप [को०] । प्रादि लगाना । शरीरसस्कार। २ पैर मे महावर आदि परिकम-संशा पु० [ स०] १ टहलना। घूमना। २ चारो और रचना (को०)। ३ गणित के पाठ अग या विभाग (को०)। घूमना । फेरी देना । परिक्रमा । ३ क्रम । श्रेणी । ४ प्रवेश । ४. पूजन । अर्चन (को०)। परिक्रमण-सज्ञा पु० [स०] १ टहलना। मन बहलाने के लिये परिकर्मा-शा पुं० [म० परिकर्मन् ] परिचारक । मेवक । घूमना । चारो ओर घूमना । फेरी देना । दे० 'परिक्रम' । शूल [को०)।