पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५५

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पवन परिवर्म २८६४ परिवाह जो उसके हट जाने पर विरहजल से हराभरा हो उठा था । उ०—चलु हँसा तह चरण समान । पहें दादू पहुंचे -इद्र०, पृ०७। परिवान । दादू०, पृ० ६७५ । परिवर्म-वि० [स०] वर्म से ढका हुआ। वक्तर से ढका हुआ। परिवानना-क्रि० स० [सं० प्रमाण ] दे० 'प्रमानना' । उ०- जिरहपोश । ग्यानी पुनि यह सुख नहिं जाने । नीरस निराकार परिवई-सज्ञा पुं० [सं०] चंवर, छत्र प्रादि राजत्व की सूचक परिवाने ।-नद०प्र०, पृ०२५१ । वस्तुएँ। राजचिह्न। शाही लवाजमा । २ घन । सपत्ति परिवाप-सज्ञा पुं० [सं०] १. वपन । वोना। २ मुडन । ३ स्थान । (को०) । ३ गृह की वस्तुएँ (को०) । जगह । ४. फरही। भुना हुमा चावल । लावा । खील । ५ परिवसथ-सञ्ज्ञा पु० [सं०] ग्राम । गाँव । घनीभूत दूध । जमाया हुआ दूध या छेना । ६. परिच्छद । परिवह-सज्ञा पुं० [सं०] सात पवनो में से छठा पवन । उपयोग की सामग्री । ७ जलाशय । ८ अनुचर वर्ग [को०] । विशेष--कहते हैं, यह सुबह पवन के ऊपर रहता है और परिवापन–सचा पु० [सं०] मु डन । मूडना [को०] । प्राकाशगगा को बहाता तथा शुक्र तारे को घुमाता है। परिपापित्त-वि० [सं०] मु हित । मूड़ा हुषा [को॰] । उ०-है याकी वह पवन जो परिवह जाति कहाय । वही परिवार-सज्ञा पुं० [०] १ कोई ढकनेवाली चीज । परिच्छद । नभगग कों नितप्रति रही बहाय। -शकुतला, आवरण । २ म्यान । नियाम । कोप । तलवार की खोली। पृ० १३३ । ३ वे लोग जो किसी राजा या रईस की सवारी में उसके २ अग्नि की सात जीभों में से एक । पीछे उसे घेरे हुए चलते हैं। परिषद् । ४ वे लोग जो अपने परिवहन-वज्ञा पु० [सं०] यात्रियों तथा माल को एक स्थान से भरण पोपण के लिये किसी विशेष व्यक्ति के आश्रित हो । दूसरे स्थान पर ले जाना । ढोना। उ०--व्यापारी अपना पाधित वर्ग। पोष्य जन । ५ एक ही में उत्पन्न भौर माल एक राज्य की सीमा से बाहर दूसरे राज्य में परिवहन परस्पर घनिष्ठ सवध रखनेवाले मनुष्यो का समुदाय । भाई, करने के इच्छुक होगे ।-- नेपाल०, २४० । बेटे आदि और सगे सवधियों का समुदाय । स्वजनो या परिवाँण -सक्षा पुं० [सं० प्रमाण ] इयत्ता। सीमा । अवधि । आत्मीयो का समुदाय । परिजनसमूह । कुट व । कुनवा । उ०—तुही ज सज्जण मित्त तू प्रीतम परिवाण । हियडइ खानदान । ६ एक स्वभाव या धर्म की वस्तुभों का समूह । भीतर तू वसइ भावह जोण म जाण ।-ढोला०, दू० १७५॥ कुल । उ०-अमिय मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भवरुज परिवाना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिमाण ] घेरा । विस्तार । परिमाण । परिवारू । -तुलसी (शब्द॰) । उ०--प्रथम हने रणधीर ने बहुरि सेन परिवान ।--ह. परिवारण-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] [वि० परिवारित] १, ढकने या छिपाने रासो, पृ० १६२। की क्रिया। आवरण। पाच्छादन। २ कोष । खोल । म्यान । परिवा--सशा स्त्री० [ सं प्रतिपदा, प्रा० पड़िया ] किसी पक्ष की परिवारवा-सद्या स्त्री० [सं०] अघोनता । भवलबन । प्राश्रय [को॰] । पहली तिथि । द्वितीया के पहले पडनेवाली तिथि । अमावस्या परिवारवान्-वि० [सं० परिवारवस्] जिसके परिवार हो । परिवार- या पूर्णिमा के दूसरे दिन की तिथि । पडिवा। वाला । जिसके बहुत से परिषद्, कुटु बी या आश्रित हों। परिषाद-सशा पु० [सं०] १. निंदा । दोषकथन । अपवाद । बुराई परिवारित-वि० [सं०] घेरा हुमा । प्रावृत्त [को०] । करना। २ मनुस्मृति के अनुसार ऐसी निंदा जिसकी प्राधारभूत घटना या तथ्य सत्य न हो। झूठी निंदा । ३ परिवारो-शा पुं० [सं० परिवार] परिवार में रहनेवाला । कुटुवी । लोहे के तारो का वह छल्ला जिससे वीणा या सितार वजाया परिवार का सेवक । अनुचर । उ०—जिस दिन सुना अकिंचन जाता है। मिजराव। परिवारी ने आजीवन दास ने रक्त से रंगे हुए अपने ही हाथों पहना है राज्य का मुकुट ।-लहर पृ० ८५ । परिदादक'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ परिवाद करनेवाला मनुष्य । निंदा करनेवाला व्यक्ति। वीनकार । ३. बीन बजानेवाला । परिवास-सज्ञा पुं० [सं०] १. ठहरना। टिकना। टिकाव । भव- स्थान । २ घर । गृह । मकान। ३. सुवास । सुगध । ४. परिवादक-वि० परिवाद करनेवाला । निंदक । बौद्ध संघ में से किसी अपराधी भिक्षु का बाहर किया जाना परिवादिनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह बीन जिसमें सात तार होते या वहिष्करण। हैं । २ परिवाद करनेवाली स्त्री (को॰) । परिवासन-सा पुं० [सं०] खड। टुकड़ा । परिवादी'-वि० [सं० परिवादिन् ] [ वि०सी० परिवादिनी ] निंदा करनेवाला । परिवाद करनेवाला। परिवाह-सचा पुं० [सं०] १ ऐसा प्रवाह या बहाव जिसके कारण पानी ताल तलाव आदि की समाई से अधिक हो जाता हो। परिवादी-सञ्ज्ञा पु० निंदक व्यक्ति । परिवादक । अपवाद या परि- उतराकर वहना। बांध, मेंह या दीवार के ऊपर से छलक- वाद करनेवाला। कर बना। २ [वि० परिवाहित] वह नाली या प्रवाह- परिवान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रमाण, हिं० परवान ] दे० 'प्रमाण' । मार्ग जिससे किसी स्थान का पावश्यकता से अधिक पस