पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५६

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परिवाही २६६५ परिवैण निकाला जाय । फालतू पानी निकालने का मार्ग । अतिरिक्त परिवृत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] ढकने, घेरने या छिपानेवाली वस्तु । पानी का निकास। वेष्टन । परिवाही-वि० [ स० परिवाहिन् ] [वि० सी० परिवाहिनी] उतरा- परिवृत्त'-वि॰ [ स०] १ घुमाया या लौटाया हुआ। २ उलटा- कर बहनेवाला। बाँध, मेंड आदि से छलककर बहनेवाला । पलटा हुआ । ३. घेरा हुआ । वेष्टित । ४ समाप्त । ५. परि- उबल या उफनकर वहनेवाला । वर्तित । बदला हुआ (को०)। परिवृत्त-सञ्ज्ञा पुं० प्रालिंगन । अंकवार (को०) । परिविंदक-सज्ञा पुं० [स० परिविन्दक ] वह व्यक्ति जो जेठे भाई से परिवृत्ति-राजा स्त्री० [स०] १. घुमाव । चक्कर । गरदिश । २. पहले अपना विवाह कर ले । परिवेत्ता। घेरा । वेष्टन । ३. अदला बदला। विनिमय । तवादला। परिचिंदन-सञ्ज्ञा पुं० [स० परिविन्दन ] परिवेत्ता। परिविदक । ४. समाप्ति । मत । ५ एक शब्द या पद को दूसरे ऐसे पान्द परिविरण-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'परिवित्त' [को०] । या पद से बदलना जिससे अर्थ वही बना रहे। ऐसा शब्द- परिवितर्क-सञ्ज्ञा पुं० [स०] प्रश्न । जिज्ञासा। परीक्षा । परिवर्तन जिसमें अर्थ मे कोई अतर न माने पावे | जैसे,- परिवित्त-सशा पु० [सं० ] वह मनुष्य जिसका छोटा भाई, उससे 'कमललोचन' के 'कमल' अथवा 'लोचन' को 'पर' या 'नयन' पहले अपना विवाह कर ले। से बदलना (व्याकरण)। परिवित्ति-सचा पुं० [स०] दे० 'परिवित्त' । परिवृत्ति-सञ्ज्ञा पुं० एक अलकार जिसमे एक वस्तु को देकर दूसरी वस्तु लेने अर्थात् लेनदेन या अदल बदल का कथन होता है । परिविद्ध'-वि० [ स०] भली भांति या सम्यक् रीति से विद्ध । सब मोर या सब प्रकार से विधा हुआ। विशेष-इस पल कार के दो प्रधान भेद हैं-एक सम परवृचि, परिविद्ध-सञ्ज्ञा पुं० कुबेर (देवता)। दूसरा विषम परिवृत्ति । पहले मे समान गुण या मूल्य की और दूसरे मे 'असमान गुण या मूल्य की वस्तुप्रो के अदल- परिविन्न-सज्ञा पुं॰ [सं० ] दे० 'परिवित्त' [को०) । वदल का वर्णन होता है। इन दोनो के दो दो अवातर भेद परिषिविदान-सज्ञा पु० [सं०] बडे भाई से पहले विवाह करनेवाला होते हैं। सम के प्रतर्गत एक उत्तम वस्तु का उत्तम से विनि- छोटा भाई। परिवेत्ता । मय, दूसरा न्यून वस्तु का न्यून से विनिमय है। इसी प्रकार परिविष्ट-वि० [सं०] १ घेरा हुआ। परिवेष्टित । २. परोसा विषम के प्रतर्गत उत्तम वस्तु का न्यून से और न्यून का उत्तम हुप्रा (भोजन) । ३. प्रकाशमडल से ( सूर्य से विनिमय होता है। जैसे,—(क) मन मानिक दीन्हो तुम्हे या चद्र)। लीन्हीं विरह बलाय । ( वि० परि०-उत्तम का न्यून से परिविष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ सेवा। टहल । परिचर्या । २ विनिमय ) (ख ) तीन मुठी भरि आज देकर अनाज प्रापु घेरा। वेष्टन। लीन्हो जदुपति जू सो राज तीनों लोक को ( वि० परि०- परिविहार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अानद से घूमना । जी भरकर न्यून का उराम से विनिमय)। घूमना [को०)। हिंदी कविता मे प्रायः विषम परिवृत्ति के ही उदाहरण मिलते परिवीक्षण-सञ्ज्ञा पुं० [ सं०] १ घिरा हुआ। लपेटा हुआ । २. हैं। कई प्राचार्यों ने इसी कारण न्यून या थोडा देकर उत्तम या अधिक लेने के कथन को ही इस अलकार का लक्षण ढका हुधा । छिपाया हुआ । पाच्छादित । मावृत्त । माना है, सम का सम के साथ विनिमय के कथन को नही। परिवीजित-वि० [ स० परिवीजन ] जिसे पखे से हवा की गई हो । परतु अन्य कई प्राचार्यों तथा विशेषत साहित्यदर्पण मादि पखा किया हुना। उ०-उच्च प्रसारो में लेटा छाया मर्मर साहित्य ग्रथो ने देनलेन या अदल बदल के कथन मात्र को इस परिवीजित । श्रात पाथ सा ग्रीष्म ऊंघता भरी दुपहरी में अलकार का लक्षण प्रतिपादित किया है। नित ।-प्रतिमा, पृ० १३७ । परिवृत्तिकाव्य-सज्ञा पु० [ स० परिवृत्ति+काव्य ] दूसरे की कविता परिवीत -वि० [सं०] १ घिरा हुा । लपेटा हुआ। छिपाया हुआ । को आधार बनाकर उसी शैली पर प्रस्तुत की गई हास्यप्रधान आच्छादित । पावृत्त। कविता जिसे अग्रेजी मे पैरोडी कहते हैं । व०-परिहास परिवीत-सज्ञा पु० ब्रह्मा का धनुष [को०] । करने के लिये इसी शैली पर जो रचना की जाती है उसे परिहित-वि० [सं०] दे० 'परिवृहित' । परिवृत्तिकाव्य कहते हैं।-स० शास्त्र, पृ०८१ । परिवृहित-सञ्ज्ञा पु० हाथी की चिग्घाड । हस्तिगर्जन [को०] । परिवृद्ध-वि० [स०] खूब बढ़ा हुमा। सब प्रकार वधित। परिवधित । परिवृद'-वि० [सं०] ढ़ । मजबूत (को०] । परिवृद्धि-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] सब प्रकार से वृद्धि । परिवर्घन । खूब परिवृढर-सज्ञा पु० मालिक । स्वामी । नेता । बढ़ती या वृद्धि। परिवृत'-वि. [ स०] १ ढका, छिपाया या घिरा हुषा । वेष्टित । परिवेण-सचा पुं० [पाली] १ बौद्ध विहार के भीतर बना हुआ मावृत्त । २ पूर्णत प्राप्त (को०) । ३. जाना हुआ। भिक्षुमो का कुटीर या भवन । उ०-( क ) मनाथ पिडिल परिचित । ज्ञात (को०)। । ने जैतवन मे विहार वनवाए, परिवेण वनवाए।-वै० न०, प्रावृत