परीक्षित २०७३ परीयान हए। पीछे उसके गिटगिठाने पर उन्हे उसपर दया प्रा गई मरान बनवाया और उसके पागे पोर पन्दे मच्छे गर्ग-म- पौर उन्होंने उसके रहने के लिये ये स्थान यता दिए-जूमा, शाता मोर मुहरा रगनेवालों को तैनात कर दिया। समा सी, मध, हिंसा और सोना। इन पांच स्थानों को छोटकर पो जब यह मालूम हुमा नव यह पयगया। मन को परी- मन्यत्र न रहने की कलि ने प्रतिज्ञा की। राजा ने पाच स्थानो क्षित तक पहुंचने गा उसे एक उपाय सूझ पा । उसने एक के साथ साथ ये पांच वस्तुएँ भी उसे दे डाली-मिथ्या, पपने सजातीय सर्प को तपस्सी या पिदार उगणे हाथ में मद, काम, हिंसा और वैर । पुछ फल दे दिए और एक फल मे एक प्रति छोटे पीना इस घटना के कुछ समय बाद महाराज परीक्षित एक दिन भामेट रूप धरकर पाप जा बैठा । तपस्थी बना हमा गपं तशय के प्रादेश के अनुसार परीक्षित के उपर्युक्त सुरक्षित प्रामाद फरने निकले। कलियुग वरावर इस ताक में था कि किसी प्रकार परीक्षित ना खटका मिटाकर भकटक राज करें। तक पहुंचा। पहरेदागे ने इसे प्रदर जाने से रोगा, पर राजा के मुकुट मे सोना था ही, कलियुग उसमें घुस गया। राजा को सबर होने पर उन्होंने उसे अपने पास बुनवा राजा ने एक हिरन के पीछे घोडा डाला। बहुत दूर तक लिया और फल लेकर उसे विदा कर दिया । एक पीछा करने पर भी वह न मिता। थकावट के कारण उन्हें तपस्वी मेरे लिये यह फल दे गया है प्रत इस गाने से प्यास लग गई थी। एक वृद्ध मुनि मार्ग मे मिले । राजा ने अवश्य उपकार होगा, यह सोचकर उन्होंने पोर फल तो मपियो में वांट दिए, पर उसको अपने साने के लिये पाटा। उनसे पूछा कि बतायो, हिरन किघर गया है। मुनि मौनी थे, इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके। थके और उसमें से एक छोटा कोटा निगला जिसरा रंग तामटा और प्यासे परीक्षित को मुनि के इस व्यवहार से वहा क्रोध हुमा। पाखें पाली थी। परीक्षित ने मत्रियों ने कहा- सूर्य प्रस्त हो रहा है, अव तक्षक से मुझे कोई भय नहीं। परतु ग्राह्मण कलियुग सिर पर सवार था ही, परीक्षित ने निश्चय कर लिया कि मुनि ने घमा मारे हमारी बात का जवाब नहीं के शाप की मानरक्षा करनी चाहिए। इनलिये इस योटे से दिया है और इस अपराध का उन्हें कुछ दड होना चाहिए। डसने की विधि पूरी करा सेता हूँ। यह पहकर उन्होंने उस पास ही एक मरा हुना साप पड़ा था। राजा ने फमान की कोटे को गले से लगा लिया। परीक्षित के गले से स्पश होते नोक से उसे उठाकर मुनि के गले में डाल दिया और अपनी ही वह नन्हा सा कोटा भयकर सपं हो गया और उसके दशन राह ली । मुनि के शुगी नाम का एक महातेजस्वी पुत्र था । फे साथ परीक्षित का परीर भस्मसात् हो गया। वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में परीक्षित की मृत्यु के याद, कहते हैं, फिर फलियुग की रोक टोक उसने सुना कि पोई प्रादमी उसके पिता के गले में मृत सर्प वरनेवाला कोई न रहा और वह उसी दिन मे प्रगटफ भाव की माला पहना गया है। कोपशील शृगी ने पिता के इस से शासन करने लगा। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये अपमान की बात सुनते ही हाथ मे जल लेकर शाप दिया कि जनमेजय ने सर्पसत्र किया जिसमें सारे समार के सप मयस जिस पापात्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला से सिंच पाए और यज्ञ यो पग्नि में उनकी पाहुति हुई। पहनाया है, प्राज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम का सर्प २ कम का एक पुत्र । ३ अयोध्या का एक राजा। ४ मनस्य उसे डस ले। पाश्रम में पहुंचकर शृगी ने पिता से अपमान फा एक पुत्र। गरनेवाले को उपर्युक्त उन शाप देने की बात कही। पि को परीक्षितव्य-वि० [म०] १. परीक्षा फरने याम्य । जिसमा इसरान पुन के अयिवेक पर दुस हुमा भौर उन्होने एक शिष्य द्वारा या पाजमाइश या जांच की जा सके। २ जिसरी परीक्षा परीक्षित यो शाप का समाचार कहला भेजा जिसमे ये करना उचित या पतंव्य हो। सतर्क रहे। परीक्षित ने ऋषि के शाप को भटल समझार अपने सटगे जनमे- परीक्ष्य-० [सं०] १ जिनकी परीक्षा की जा सके। परीमा बरने योग्य । २ जिमीक्षा वरना उचित या जय पो राज पर बिठा दिया और सब प्रकार मरने के लिये गतव्य हो। तैयार होकर अनशन प्रत करते हुए श्रीशुनदेव जी से श्रीमद भागवत की पथा सुनी। सातवें दिन सदाक पाकर उन्हें परीखना-कि० ग० [सं० परीपणा, टस लिया पौर चिप की भयकर ज्याला से उनमा शरीर भस्म जाना। परीक्षा सेना । ८०-तुन दिपाए ना दिले हो गया। यहते हैं, तक्षक जय परीक्षित को उसने चला पारसि होमो पगरा। पालि समौटी पीरिए निर पोरी सय मार्ग मे उसे गश्यप ऋपि मिले। पूछने पर मालूम हुमा नीय।-पदमावत, पृ० २५६ । पिये उसके विप से परीक्षित की रक्षा करने जा रहे हैं। परीखाना-मा० [फा० परिगान] पग्यिो दे रहने रापा । राक्षय ने एम पुक्ष पर ति मारा, पर तलास जतफर भस्म हमीन लोगो या यामरपान हो गया। यध्यप ने अपनी विद्या से फिर उसे हरा कर दिया। परीन्छत - - [iस परीपित ] :- Rite'। 30- इसपर राक्षस ने बहुत सा पन दार उन्हें लौटा दिया। यो सुगदेव रही हग्निीमा। मुशी पाया गौना। देवी भागयत में लिखा है, पाप का समागार पाार परीक्षित -पोदार समि०प्र०, पृ० ३५२ । ने सक्षफ से अपनी रक्षा करने के लिये एक रात मंषि पा परोरवान-परीस्थान मंत्र मंत्र का परिवार परगना।
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