पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१६८

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परेस २८७७ परोल परेस--सञ्ज्ञा पु० [सं० परेश ] दे० 'परेश' । परोछल-अव्य० [स० परोक्ष ] दे० 'परोक्ष' । उ०-भीतम बिहारी परेह-सञ्ज्ञा पुं० दिश०] एक प्रकार की कढ़ी जो बेसन को खूब पतला प्यारी पेखे में परोछ दोक, प्रीति नाहिं जाहिर उजागा छये घोलकर और घी या तेल मे पकाकर बनाई जाती है। छये ।-नट०, पृ०६७। परेहा-सज्ञा पु० [ देश० ] वह जमीन जो हल चलाने के बाद सीची परोजना-सज्ञा पुं० [स० प्रयोजन ] दे० 'प्रयोजन'। गई हो। यौ०-काम परोजन = मगल कार्य । उत्सव । परैधिता- वि० [म.] अन्य द्वारा पालित । दूसरे के द्वारा परोटो-सशा स्त्री॰ [ स० परावर्तित या देश० ] परावर्तित करने पोषित [को। की चेष्टा। समझाना। उ०-मोटा वाली धीरज मोटी, परैधित—सशा पु० १ सेवक । नौकर । २ कोयल । कोकिल को०) । खावंद । कीध इती ते खोटी। पैली प्रगद कीघ परोटी, ताण परैना-मचा पु० [ देश० ] दे० 'पैना' । पछे किय तेह ।-रघु० रू०, पृ० २११ । परोपु+-क्रि० वि० [ स० परेश्व ] दे० 'परसो' । उ०-काल्हि परो परोढा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अन्य की विवाहिता स्त्री (को०] । फिर साजनी स्यान् सु प्राजु तो नैन सो नैन मिलाय ले । परोता'-सज्ञा पु० [ देश० ] १ एक प्रकार का टोकरा जो गेहूँ के -पद्माकर (शब्द०)। पयाल से पजाब के हजारा जिले में बहुत बनता है । २. प्राटा, परोक्त दोष-सञ्ज्ञा पुं० [स०] अदालत के सामने ठीक रीति से गुड, हल्दी, पान आदि जो किसी शुभ कार्य मे हजाम, भाट बयान न करने का अपराध । प्रादि को दिए जाते हैं। विशेष-जो प्रकरण में आई हुई वात छोडकर दूसरी बात परोता'-सज्ञा पुं॰ [ स० प्रपौत्र ] दे० 'पडपोता' । कहने लगे, पहले कुछ कहे पीछे कुछ, प्रश्न किए जाने पर परोत्कर्ष-सज्ञा पुं० [सं०] दूसरे की वृद्धि । पर वा अन्य की उत्तर न दे या दूसरे से पूछने को कहे, प्रश्न कुछ किया जाय बढती (फो०] । और उत्तर कुछ दे, पहले कोई बात कहकर फिर निकल जाय, साथियो के द्वारा कही बात स्वीकार न करे तथा अनुचित परोद्वह-सज्ञा पुं॰ [सं०] कोकिल [को०] । स्थान मे साथियो के साथ कानाफूसी करे, वह इस अपराध परोना-क्रि० स० [हिं० पिरोना ] दे॰ 'पिरोना' । का दोषी कहा गया है। परोपकार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह काम जिससे दूसरों का भला हो । परोक्ष'-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ अनुपस्थिति । अभाव । गैर हाजिरी । वह उपकार जो दूसरो के साथ किया जाय । दूसरो के हित उ०-सब सह सकता है, परोक्ष ही कभी नही मह सकता का काम। प्रम ।-पचवटी, पृ०१०। २ वह जो तीनो काल की बातें परोपकारक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दूसरो की भलाई करनेवाला। वह जो जानता हो । परम ज्ञानी । ३ व्याकरण मे पूर्ण भूतकाल । दूसरो का हित करे। परोक्ष-वि० [स०] १ जो देख न पडे। जो प्रत्यक्ष न हो। परोपकारी-सज्ञा पुं० [सं० परोपकारिन् ] [वि० श्री• परोपकारिणी] जो सामने न हो। २. गुप्त । छिपा हमा। ३ गैरहाजिर । दूसरों की भलाई करनेवाला । औरों का हित करनेवाला। अनुपस्थित । परोपकृत-वि० [सं०] दूसरे का भला करनेवाला । जो दूसरे की यौ०-परोक्ष बुद्धि । परोक्ष भोग । परोक्ष वृषि। भलाई करे। परोक्षत्व-सचा पु० [सं०] अदृश्य होने की क्रिया या भाव । परोक्ष परोपदेश-सज्ञा पुं० [सं०] पर उपदेश । दूसरे को समझाना [को०] । मे होने की क्रिया या भाव । परोपसर्पण-सञ्चा पु० [स०] अन्य के पास जाना। भिक्षाटन । भीख परोक्षभोग-सज्ञा पुं० [ स० ] किसी वस्तु का उपभोग जो उसके मांगना [को०)। स्वामी की अनुपस्थिति में किया जाय [को०] । परोमात्र-वि० [स०] अति विशाल । विस्तृत [को०। परोक्षवाद-सज्ञा पुं० [स०] परोक्ष सत्ता के प्रति विश्वास का सिद्धांत । मनुष्य की स्मृति और मन के पीछे छिपी हुई परोरजस्-वि० [सं०] शुद्ध । अन्य से निर्लिप्त या रहित [को०] । किसी महास्मृति या महामन को माननेवाला मत जिसके परोरना-क्रि० स० [2] अभिमत्रित करना । मत्र पढकर फूकना । अनुसार काव्य का लक्ष्य जगत् और जीवन से अलग हो जाता जैसे,-पानी परोरकर पिलाने से शीघ्र ही गर्भमोचन है । (अ० ऑकल्टिज्म)। परोक्षवृत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] अज्ञात जीवन । अप्रसिद्ध या गूढ़ परोरा-सशा पु० [ स० पटोल ] दे० 'परवल' । जीवन [को०]। परोल-सचा पुं० [अ० परोल ] वह सकेत का शब्द जिसे सेना का परोखा-वि० [सं० परोक्ष, प्रा० परोयख ] दे० 'परोक्ष' । उ० अफसर अपने सिपाहियो को बतला देता है और जिसके साजनि की कहब कान्ह परोख । बोलि न करिन वडा का बोलने से चौकी या पहरे पर के सिपाही बोलनेवाले को अपने दोख ।-विद्यापति, पृ० २६२ । दल का समझकर आने या जाने से नहीं रोकते । ६-२० होता है।