पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१७२

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पर्यवसित २५१ पर्यायोक्त खातमा। २ अतर्भाव । अतर्गत हो जाना। शामिल हो किसी एक व्यक्ति के बीच में ही आचमन कर लेने अथवा उठ जाना । स्वतत्र सत्ता का न रहना। ३ रोग। क्रोध। ४ खडे होने के वाद वच रहता है । ठीक ठीक अर्थ निश्चित करना । विशेष-ऐसा अन्न जूठा और दूषित समझा जाता है और खाने पर्यवसित-वि० [ स०] १ समाप्त । खत्म। उ०-सेवा ही नहीं योग्य नहीं माना जाता। चूडीवाली | उसमें विलास का अनत यौवन है, क्योकि केवल पर्याण-स्त्री० पु० [स०] घोडे की पीठ पर का पलान । ली पुरुष के शारीरिक वधन मे वह पर्यवसित नहीं है। पर्याप्त'-वि० [सं०] १. पूरा । काफी। यथेष्ट । २ प्राप्त । -प्राकाश०, पृ० १२२ । २ निर्णीत । निश्चित (को०) । २ मिला हुआ। ३ जिसमें शक्ति हो। शक्तिसपन्न । ४. जिसमे ध्वस्त । नष्ट [को०] । सामर्थ्य हो । समर्थ । ५ परिमित । ६ समग्र । पूर्ण (को०)। पर्यवस्था-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] विरोध । विरोध करना। खडन । ७ उचित । योग्य । लायक (को०)। ८. समाप्त । अवसित प्रतिवाद (को०)। (को०) । ६. विस्तीर्ण । विस्तृत (को॰) । पर्यवस्थाता-शा पुं० [ मं० पर्यवस्थातृ ] १ प्रतिवादी । प्रतिपक्षी । पर्याप्त-संञ्चा पुं० १ तृप्ति । सतोष । २ शक्ति । ३. सामर्थ्य । ४ २ विरोधी [को०] 1 योग्यता । ५ यथेष्ट होने का भाव । प्रचुरता। पर्यवस्थान-संज्ञा पुं० [सं०] १ प्रतिवाद । खहन । २ विरोध । ३ पर्याप्ति-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ अत। समाप्ति । २ प्राप्ति । तृप्ति । अच्छी अवस्थिति । सर्वतोभावेन अवस्थान को०] । सतुष्टि । सतोष । ३ गुणानुसार वस्तुप्रो का भेद । ४ पर्यवेक्षण-सज्ञा पु० [सं०] चतुर्दिक् देखना। समीक्षण । अवलोकन । निवारण। ५ रक्षा । ६ इच्छा । ७ योग्यता। क्षमता। उ०-शेक्सपीयर को इसका पता भी न था, छपाई के पर्य ८ यथेष्टता । प्रचुरता (को०)। वेक्षण की तो बात ही क्या।-पा० सा०सि०, पृ०१२ । पर्याय-ससा पुं० [म०] १ ममानार्थवाची शब्द । समानार्थक शब्द । पर्य श्र-वि० [स०] प्रांसू से पूर्ण। अश्रुपूर्ण । आसुश्रो से नहाया जैसे, 'इद्र' का पर्याय 'पाकशासन' और 'विष' का पर्याय हुमा (को०] । 'हलाल' । २ क्रम । सिलसिला। परपरा । ३ वह अर्था- लकार जिसमे एक वस्तु का क्रम से अनेक प्राश्रय लेना वरिणत यौर-पर्यश्रुनयन, पर्यश्रुनेत्र = आँसू भरी प्रांखवाला। जिसकी हो या अनेक वरतुनो का एक ही के आश्रित होने का वरनि आँखें प्रासू भरी हो। हो। जैसे,—(क) हालाहल तोहिं नित नए, किन सिखए ये पर्यसन-सज्ञा पु० [सं०] १. निकालना। २. फेंकना । क्षेपण । ३ ऐन । हिय अबुधि हरगर लग्यो, वसन अवै खल बैन । ( ख ) दूर करना (को०)। हुती देह में लरिकई, वहुरि तरुणई जोर । विरघाई आई पर्यस्त-व० [सं०] १ वाहर किया हुा । २ दूरीकृत । ३ चारो अबौं भजत न न दकिशोर । ४ प्रकार । तरह । ५. अवसर । पोर फैला हुआ । विस्तृत । ४ फेंका हुा । क्षिप्त । ५. मारा मौका। ६ बनाने का काम । निर्माण। ७ द्रव्य का धर्म। हुमा। हत [को०॥ ७. दो व्यक्तियो का वह पारस्परिक सबध जो दोनो के एक पर्यस्तापहु तिसञ्चा श्री० [ मं० ] वह अर्थालकार जिसमे वस्तु का ही कुल मे उत्पन्न होने के कारण होता है। गुण गोपन करके उस गुण का किसी दूसरे मे आरोपित किया यौ०-पर्यायक्रम । पर्यायच्युत = क्रम से भग्न । स्थान से च्युत । जाना वर्णन किया जाय । जैसे,-नही शक्र सुरपति अहै पर्यायवचन = समान अर्थबोधक शब्द पर्यायवाचक, सुरपति नदकुमार । रतनाकर सागर न है, मथुरा नगर पर्यायवाची = समानार्थक । तुल्यार्थक । पर्यायशब्द = दे० वाजार । दे० 'अपह्न.ति'। 'पर्यायवचन' । पर्यायशयन । पर्यायसेवा । पर्यस्ति-सज्ञा स्त्री० [स०] १ वीरासन मे वैठना । २. फेंकना [को०] । पर्यायक्रम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ मान या पद प्रादि के विचार से क्रम । पर्यस्तिफा-राशा सी० [सं०] १ वीरासन । २ पर्यफ । पलेंग। वढाई छोटाई आदि के विचार से सिलसिला। २ क्रम से पर्याकुल-वि० [म०] १ बहुत अधिक व्याकुल । बहुत घवराया वढ़ती । उत्तरोत्तर वृद्धि का विधान । हुश्रा । २. भरा हुमा । पूरित । जैसे, अश्रुपर्याकुल (फो०)। ३ पर्यायवृत्ति-सशा स्त्री॰ [स०] एक को त्यागकर दूसरे को ग्रहण करने अव्यवस्थित । वेतरतीव (को०)। ४ उत्तेजित (को०)। ५. को वृत्ति । एक को छोडकर दूसरे को ग्रहण करना। पकिल । मलिन । आविल । यथा, जल (को०) । पर्यायशः-क्रि० वि० [सं०] १ समय समय पर । नियत समय पर । पर्याकुलता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] पर्याकुल होने का भाव । व्याकुलता। २. क्रमानुसार । क्रमश । यथाक्रम [को०] । व्यग्रता [को०] । पर्यायशयन-सञ्ज्ञा पुं० [स] पहरेदारो आदि का क्रम से अपनी पर्याकुलत्व-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'पर्याकुलता' [को॰] । अपनी बारी से सोना। पर्यागत-वि० [सं० ] जिसका सासारिक महत्व या जीवन खत्म हो पर्यायसेवा-सशा पं० [सं०] क्रम से की जानेवाली सेवा को॰] । चुका हो । जो अपना चक्कर पूर्ण कर चुका हो (को०] । पर्यायान-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'पर्याचात' । पर्याचांत-सञ्चा पुं० [स० पर्याचान्त ] भोजन के समय पत्तलों पादि पर्यायिक-सचा पुं० [सं० ] सगीत या नृत्य का एक अग। पर रखा हुमा भोजन जो एक पक्ति में बैठकर खानेवालों में से पर्यायोक्त-सचा पुं० [सं०] एक शब्दालकार । दे० 'पर्यायोक्ति' [को०] ।